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खेती-किसानी पर ध्यान दे सरकार

* सूखे की आशंका झारखंड में सिर्फ 37 फीसदी भूमि खेती योग्य है. वहीं खनिज संपदा की भरमार है. इस हिसाब से कहा जा सकता है कि झारखंड कृषि प्रधान राज्य नहीं है. बावजूद इसके राज्य की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है. यहां खेती वर्षा आधारित ही होती है, लेकिन विडंबना है कि इस […]

* सूखे की आशंका

झारखंड में सिर्फ 37 फीसदी भूमि खेती योग्य है. वहीं खनिज संपदा की भरमार है. इस हिसाब से कहा जा सकता है कि झारखंड कृषि प्रधान राज्य नहीं है. बावजूद इसके राज्य की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है. यहां खेती वर्षा आधारित ही होती है, लेकिन विडंबना है कि इस राज्य में पिछले कई सालों से बारिश कम हो रही है या फिर समय पर नहीं हो रही.

लगातार झारखंड को सूखाग्रस्त घोषित करना पड़ रहा है. ऐसे में यहां के किसानों की हालत बहुत खराब है. इसके निदान के लिए सरकार ने अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है. राज्य गठन के बाद से ही सिंचाई की सुविधा पर पहल नहीं की गयी. सिंचाई के लिए बनी कई योजनाएं लंबित हैं.

इन परियोजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं. लेकिन खेतों तक इतना पानी नहीं पहुंच सका है कि इससे खेती हो सके. ऐसे में खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. लेकिन इस पर सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नयी सरकार में अब तक अलग से कोई कृषि मंत्री नहीं है.

कृषि मंत्रालय फिलहाल मुख्यमंत्री ही देख रहे हैं. वहीं झारखंड में हर बार सुखाड़ को लेकर राजनीति होती रही है. सरकार के दबाव में राज्य के कुछ जिलों को पहले सूखाग्रस्त घोषित किया जाता है. फिर जब बाद में बवाल होता है तो पूरे राज्य को सूखाग्रस्त घोषित किया जाता है. यहां पर ध्यान देने की बात यह है कि जिलों से कृषि विभाग द्वारा दी जा रही जानकारी भी दरकिनार कर दी जाती है.

किसी खास जिले में पर्याप्त बारिश होने के बाद भी उसे पहले सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है, क्योंकि वहां के मंत्री सरकार में ज्यादा ताकतवर हैं. सुखाड़ पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. खेती का सीधा संबंध किसानों से होता है. ये किसान अपनी जमापूंजी लगा कर खेती में रोपनी करते हैं. इसके बाद दिनरात कड़ी मेहनत कर अनाज उपजाने की कोशिश करते हैं. लेकिन बारिश के अभाव में खेतों में बिचड़ा ही नष्ट हो जाता है. ऐसे किसानों को सिर्फ हताशा हाथ लगती है.

क्या इनके बारे में सरकार को गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए? किसी भी राज्य का विकास कृषि पर निर्भर है. यदि अनाज की उपज नहीं होती है, तो दूसरे राज्यों से अधिक कीमत पर अनाज मंगाना पड़ता है. इससे महंगाई बढ़ती है, जिसमें सभी लोग पिसते हैं. आज समूचा विश्व समुदाय कृषि को बढ़ाने पर जोर दे रहा है. ऐसे में झारखंड क्यों पिछड़ा है? विकास चाहिए तो कृषि को बढ़ावा देना ही होगा.

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