10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

वक्त की नजाकत और ‘आत्मचिंतन’!

बजट-सत्र शुरू में ही आत्मचिंतन के लिए छुट्टी पर जाकर राहुल गांधी ने भाजपा को फिर कहने का मौका दिया है कि संसद के कामकाज को लेकर कांग्रेस गंभीर नहीं है. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि राहुल की मौजूदगी से संसद की बहसों पर सचमुच कोई असर होता. पहली बात यह कि लोकसभा ने […]

बजट-सत्र शुरू में ही आत्मचिंतन के लिए छुट्टी पर जाकर राहुल गांधी ने भाजपा को फिर कहने का मौका दिया है कि संसद के कामकाज को लेकर कांग्रेस गंभीर नहीं है. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि राहुल की मौजूदगी से संसद की बहसों पर सचमुच कोई असर होता.
पहली बात यह कि लोकसभा ने औपचारिक तौर पर किसी को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी सौंपना उचित नहीं समझा है. यह बहुमत के वर्चस्व के आगे विपक्ष को नकारने जैसा है. दूसरी, सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकाजरुन खड़गे हैं, राहुल नहीं. इसलिए अगर बीजेपी किसी मुद्दे पर कांग्रेस से आलोचना या सलाह की उम्मीद रखती है तो खड़गे के रूप में पार्टी का प्रतिनिधि मौजूद है. तीसरी, राहुल यूपीए शासन में भी अपनी छवि किसी जुझारू या सचेत सांसद की नहीं बना पाये थे.
इक्का-दुक्का मौकों पर उन्होंने जरूर हस्तक्षेप किया, लेकिन कांग्रेस के भीतर सोनिया, राहुल और मनमोहन सिंह के रूप में शक्ति के एक से ज्यादा केंद्र होने की वजह से उनके हस्तक्षेप को पार्टी की नेतृत्व-विहीनता की स्थिति से जोड़ कर देखा गया. कांग्रेस और स्वयं राहुल का हालिया संकट इसी आखिरी तथ्य से जुड़ा है. कांग्रेस में बचे नेतागण अब भी यह जताने से नहीं चूकते कि राहुल पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं, पर स्वयं राहुल महत्वपूर्ण मौकों पर यही जताते प्रतीत होते हैं कि उनमें सत्ता की चाह नहीं है. सत्ता की ललक व्यक्ति को राजनीति के लिए प्रेरित करती है, यह बात अलग है कि लोकतांत्रिक राजनीति करते हुए सत्ता मिलने पर आप ताकत का इस्तेमाल किस रूप में करते हैं.
अभी संसद में महत्वपूर्ण अध्यादेशों पर बहस होनी है. भू-अधिग्रहण से जुड़े अध्यादेश ने तो संसद से सड़क तक विपक्ष को एकजुट होने का मौका दिया है. ऐसी घड़ी में राहुल बड़ी विपक्षी पार्टी के सदस्य के रूप में एक अग्रणी भूमिका निभाते हुए अपनी छवि एक सचेत नेता के रूप में गढ़ सकते थे. पर, महत्वपूर्ण समय की नजाकत को नहीं भांप पाये. कांग्रेस अपने किले हारती जा रही है और हर हार के बाद आत्मचिंतन की ओट लेती है. ऐसे में लोगों को शक होने लगा है कि कांग्रेस में चिंतन लायक कोई आत्म बची भी या नहीं. कांग्रेस के लिए यह वक्त आत्मचिंतन नहीं, संगठन और विचार के बिखराव को संभालते हुए सक्रिय राजनीति कर जनता के साथ जुड़ने का है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें