आज हमारे देश में निरंकुशता की वजह से अव्यवस्था का माहौल बना है. इसके चलते हमारी तमाम व्यवस्था मनमानेपन की शिकार हो रही है. प्रशासनिक अक्षमता और नियमों की जकड़न इसमें सहायक सिद्ध हो रही हैं. देश का आम नागरिक अव्यवस्था की चक्की में पिसने को मजबूर है. उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इसीलिए वह इससे बचने के लिए वह सहज और सरल मार्ग अपनाता है. यह अव्यवस्थाओं की जड़ को और अधिक मजबूत बनाता है. इससे देश में अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार को बढ़ावा ही मिल रहा है.
आज देश के राजनीतिक दल और सरकारें भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं को दूर करने के प्रयास में लगी हैं, लेकिन इसका खात्मा होने के बजाय दिनोंदिन इसमें बढ़ोतरी ही हो रही है. राजनेता हमें भाषणों की घुट्टी पिला कर अपना मतलब साध रहे हैं और हम उनके बहकावे में आकर देश में लोकतांत्रिक निरंकुशता को फैलाने में मदद कर रहे हैं. सरकार और सरकार से बाहर रहनेवाले लोग अपने दायित्वों का निर्वहन करने में कोताही बरत रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि देश में फैल रही अव्यवस्थाओं को कोई समझ नहीं रहा है. सभी इससे परिचित हैं, लेकिन कोई इसे समूल हटाने के पक्ष में नहीं है.
हां, इसके खात्मे का दिखावा जरूर किया जा रहा है. क्या आज देश के राजनेता इससे परिचित नहीं हैं? क्या भ्रष्टाचार को समाप्त करने का दावा करनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका आभास नहीं है. सभी जानते हैं, लेकिन किसी की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है. आज सरकारी दफ्तरों में जिसके खिलाफ शिकायत जाती है, वह बाद में और ज्यादा मजबूत हो जाता है. इससे लोकतंत्र का ही मजाक उड़ता है.
अंबिका प्रसाद, नरकटियागंज