।।विवेक शुक्ला।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
बिहार की समृद्घ सांस्कृतिक परंपरा की कोई भी चर्चा बोधगया के बिना पूरी नहीं होती. दुनिया को शांति का दिव्य ज्ञान प्रदान करनेवाले भगवान बुद्घ को खुद यहीं ज्ञान प्राप्त हुआ था. यहां महाबोधि मंदिर में स्थित वह पीपल का पेड़ आज भी दुनिया की आस्था का केंद्र बना हुआ है, जिसके नीचे सिद्घार्थ को बुद्घत्व की प्राप्ति हुई और वे बुद्घ बन गये. महाबोधि मंदिर का यह आकर्षण हर साल बिहार आनेवाले सात लाख से अधिक विदेशी सैलानियों को बोधगया खींच लाता है. यही कारण है कि महाबोधि मंदिर में सीरियल बम धमाकों की खबर से देश ही नहीं, पूरी दुनिया सन्न है. कई देशों के प्रमुखों ने इस घटना की निंदा की है.
खबरों के मुताबिक, आइबी ने इस हमले की आशंका पहले ही जता दी थी. हाल के वर्षो में पकड़े गये कई आतंकियों ने भी यह बताया था कि कुछ आतंकी गुट महाबोधि मंदिर की शांति भंग करने की फिराक में हैं. लगातार मिले खुफिया इनपुट के बावजूद इस हमले को नहीं रोक पाना हमारे तंत्र की दोहरी नाकामी को उजागर करता है. पहला, खुफिया इनपुट पर कार्रवाई का कारगर तंत्र हम अब तक विकसित नहीं कर पाये हैं. दूसरा, अति विशिष्ट धार्मिक स्थलों की सुरक्षा कर पाने में भी हम पिलपिले ही साबित हुए हैं. तो क्या इस घटना के बाद भी आतंकियों की हरकतों की निंदा करने, घटनास्थल पर सुरक्षाकर्मियों की अतिरिक्त तैनाती करने और जांच की कुछेक प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद हम उसी तरह शांत पड़ जायेंगे, जैसा पहले के आतंकी धमाकों के बाद करते आये हैं?
आंतरिक सुरक्षा मामलों के जानकार और देश की सबसे बड़ी निजी सुरक्षा एजेंसी एसआइएस के अध्यक्ष आरके सिन्हा कहते हैं, ऐसी घटना के बाद सिर्फ घटनास्थल पर पहुंचने से बात नहीं बनेगी. हो सकता है कि आप कुछ आरोपियों को पकड़ भी लें. लेकिन जब तक आप खुफिया इनपुट को नजरअंदाज करते रहेंगे, तब तक ऐसे हमले होते रहेंगे. इसी कड़ी में सुरक्षा और आतंकनिरोधक मामलों के एक्सपर्ट ब्रिगेडियर पवनजीत आहलूवालिया कहते हैं, महाबोधि मंदिर तक को यदि हम नहीं बचा सकते, तो फिर यह हमारे सुरक्षा तंत्र की काबिलियत पर बड़ा सवाल है. ऐसे स्थलों की सुरक्षा तो इतनी चाक-चौबंद होनी चाहिए, कि कोई वहां नापाक हरकत के बारे में सोच भी न सके.
बौद्ध धर्म को माननेवालों में दक्षिण-पूर्व एशिया, श्रीलंका, जापान वगैरह के पर्यटकों के लिए बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट भारत का सबसे खास पर्यटन स्थल है. ऐसे में महाबोधि मंदिर पर आतंकी हमले के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं. ऐसे समय में, जब केंद्र और बिहार सरकार की ख्वाहिश है कि दुनियाभर में फैले बौद्घ धर्म के करीब 50 करोड़ अनुयायियों को भारत के प्रमुख बौद्घ तीर्थ स्थलों की तरफ लाया जाये, यह घटना अतिरिक्त चिंता पैदा करती है. इसलिए देखना होगा कि संबंधित महकमों के अधिकारी किस तरह अतिरिक्त कदम उठा कर विदेशी पर्यटकों का विश्वास बहाल कर पाते हैं.
बोधगया आनेवाले पर्यटक सारनाथ अवश्य जाते हैं. सारनाथ में बुद्घ ने बुद्घत्व प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था. वे राजगीर भी जाते हैं, जहां से बुद्घ ने आगे की यात्र की. यूं तो ये साल भर आते रहते हैं, पर अक्तूबर से मार्च तक उनकी आमद सबसे अधिक रहती है. बोधगया और उससे सटे बुद्घ सर्किट के शहरों-राजगीर और नालंदा का दौरा करने वाले पर्यटक राजस्व का स्नेत हैं. पिछले दो-तीन सालों से पर्यटकों की बढ़ती संख्या की वजह से थाई एयरवेज, मिहिन लंका, भूटान की ड्रक एयर, म्यांमार एयरवेज आदि बोधगया के लिए उड़ानें भर रही हैं. विदेशी पर्यटकों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सड़क मार्ग को भी सुधारा गया है. जब से बौद्घ सर्किट से जुड़े स्थानों को बेहतर बनाने का सिलसिला शुरू हुआ है, तब से थाईलैंड, श्रीलंका, द कोरिया, जापान और दूसरे बौद्घ देशों से आनेवाले पर्यटकों की तादाद में इजाफा हुआ.
जापान के पर्यटकों के लिए तो विशेष रूप से कहा जाता है कि वे उन जगहों में जाने से खासतौर पर परहेज करते हैं, जिधर गड़बड़ी की आशंका होती है. चूंकि जापानी महाबोधि और बौद्घ सर्किट से जुड़े दूसरे तीर्थ स्थलों पर जाना खासतौर पर पसंद करते हैं, इसलिए नयी स्थितियों मे यह देखना होगा कि कितनी जल्दी हमारी सुरक्षा एजेंसियां विश्वास का भाव पैदा करती हैं, ताकि विदेशी पर्यटकों को लगेगा कि अब सब कुछ ठीक हो गया है. कम से कम इस घटना के बाद तो देश, सरकार और सुरक्षाबलों को जागना ही होगा.