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भ्रष्टाचार का आर्थिक पहलू

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।(अर्थशास्त्री)यदि घूस लेनेवाले और गलत नीतियां बनानेवाले के बीच चयन करना हो तो मैं घूस लेनेवाले को पसंद करूंगा. कारण यह कि घूस में लिया गया पैसा अर्थव्यवस्था में वापस प्रचलन में आ जाता है. लेकिन गलत नीतियों का प्रभाव दूरगामी और गहरा होता है. जैसे ईमानदार नेता विदेशी ताकतों के […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
(अर्थशास्त्री)
यदि घूस लेनेवाले और गलत नीतियां बनानेवाले के बीच चयन करना हो तो मैं घूस लेनेवाले को पसंद करूंगा. कारण यह कि घूस में लिया गया पैसा अर्थव्यवस्था में वापस प्रचलन में आ जाता है. लेकिन गलत नीतियों का प्रभाव दूरगामी और गहरा होता है. जैसे ईमानदार नेता विदेशी ताकतों के साथ गैर-बराबर संधि कर ले अथवा गरीब के रोजगार छीन कर अमीर को दे दे, तो देश की आत्मा मरती है और देश अंदर से कमजोर हो जाता है.

साधारणत: माना जाता है कि भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है. मसलन, भ्रष्टाचार के चलते सड़क कमजोर बनायी जाती है, जिससे वह जल्दी टूट जाती है. इस फॉर्मूले के अनुसार भारत और चीन की विकास दर कम होनी चाहिए थी, क्योंकि ये देश ज्यादा भ्रष्ट हैं. परंतु वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है. भारत और चीन की विकास दर अधिक है. भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि भ्रष्टाचार से प्राप्त रकम का उपयोग किस प्रकार किया जाता है.

मान लीजिए एक करोड़ रुपये के सड़क बनाने के ठेके में से 50 लाख रुपया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया. सड़क घटिया बनी. प्रश्न उठता है कि घूस की 50 लाख की रकम का उपयोग किस प्रकार हुआ. यदि इस रकम को शेयर बाजार में लगाया गया तो भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव कुछ घटता है.

दक्षिणी अमेरिकी देशों एवं भारत में यह अंतर साफ है. दक्षिण अमेरिका के नेताओं ने घूस की रकम को स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा करा दिया. नतीजा विकास में गिरावट आयी. परंतु भारतीय नेताओं ने स्विस बैंकों में जमा कराने के साथ-साथ घरेलू उद्यमियों के पास भी रकम जमा करायी. यदि घूस की रकम का निवेश किया जाये, तो अनैतिक भ्रष्टाचार का आर्थिक सुप्रभाव भी पड़ सकता है. मान लीजिए सरकारी निवेश में औसतन 70 फीसदी रकम का सदुपयोग होता है, जबकि निजी निवेश में 90 फीसदी का. ऐसे में यदि एक करोड़ रुपये को भ्रष्टाचार के माध्यम से निकाल कर निजी कंपनियों में लगा दिया जाये, तो 20 लाख रुपये का निवेश बढ़ेगा.

अर्थशास्त्र में एक विधा ‘बचत की प्रवृत्ति’ के नाम से जानी जाती है. अपनी अतिरिक्त आय में से व्यक्ति कितनी बचत करता है उसे ‘बचत की प्रवृत्ति’ कहा जाता है. गरीब की 100 रुपये की अतिरिक्त आय हो, तो वह 90 रुपये की खपत करता है और 10 रुपये की बचत. तुलना में अमीर को 100 रुपये की अतिरिक्त आय हो, तो वह 10 रुपये की खपत करता है और 90 रुपये की बचत करता है.

मान लीजिए अमीर इंजीनियर ने गरीब किसान से 100 रुपये की घूस ली. गरीब की आय में 100 रुपये की गिरावट आयी, जिसके कारण बचत में 10 रुपये की कटौती हुई. परंतु अमीर इंजीनियर ने 100 रुपये की घूस में 90 रुपये की बचत की. इस प्रकार घूस के लेनदेन से कुल बचत में 80 रुपये की वृद्घि हुई. अमीर द्वारा गरीब का शोषण सामाजिक दृष्टि से गलत होते हुए भी आर्थिक दृष्टि से लाभकारी हो गया.

इस विश्लेषण का उद्देश्य भ्रष्टाचार को सही ठहराना नहीं है. निस्संदेह भ्रष्टाचार अनैतिक है. यहां हमारा चिंतन इस मद्दे पर है कि भ्रष्ट होने के बावजूद हमारी विकास दर ऊंची क्यों है? इसका उत्तर है कि हमारी मानसिकता भ्रष्टाचार से मिली रकम को निवेश करने की है. इस कारण भ्रष्टाचार का आम जनता पर दुष्प्रभाव पड़ने के बावजूद अर्थव्यवस्था पर सुप्रभाव पड़ता है.

हर व्यक्ति में कुछ कमजोरियां होती हैं. हमें कमजारियों पर अधिक ध्यान नहीं केंद्रित करना चाहिए. जैसे युधिष्ठिर को जुआ खेलने का शौक था. फिर भी उनकी अत्यधिक प्रशंसा की जाती है. बड़े गुण के सामने छोटे अवगुण को नजरंदाज कर देना चाहिए. वर्तमान समय में हमने इस फार्मूले को पलट दिया है. एक छत्रप जिसका हृदय सही स्थान पर है और जिसने पार्टी को राज्य में खड़ा किया उसे परिजनों को लाभ पहंचाने के कारण पदच्युत कर दिया गया है. ऐसा करने से हमें दूसरे नेता को स्वीकार करना पड़ा है जो कि अक्षम है. नतीजा यह होता है कि ईमानदार नेता देश को गड्ढे में ले जाता है, क्योंकि उसकी क्षमता ही नहीं है.

भ्रष्ट एय्याशी की तुलना में भ्रष्ट निवेश अच्छा है और भ्रष्ट निवेश से ईमानदारी अच्छी है. हमारा फोकस इस बात पर ज्यादा होना चाहिए कि नेता द्वारा बनायी गयी नीतियां देश हित में हैं या नहीं? तत्पश्चात यह देखना चाहिए कि वह भ्रष्ट है या ईमानदार. मेरा स्पष्ट मानना है कि देश हित में नीतियां बनाने वाला नेता सर्वोत्तम है, वह भले ही व्यक्तिगत मामलों में भ्रष्ट क्यों न हो. देश के प्रति उसका ईमानदार होना अनिवार्य है.

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