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टूटना ही था कांग्रेस व झामुमो गंठबंधन
झामुमो, कांग्रेस (साथ में राजद व जदयू) का गंठबंधन टूट गया. बार-बार भले ही बात हो रही थी लेकिन यह तय था कि कांग्रेस और झामुमो यह चुनाव साथ-साथ नहीं लड़ सकते. साथ में सरकार भले ही चल रही है, लेकिन झारखंड कांग्रेस नहीं चाहती थी कि चुनाव साथ लड़ें. सीटों का बंटवारा आसान नहीं […]
झामुमो, कांग्रेस (साथ में राजद व जदयू) का गंठबंधन टूट गया. बार-बार भले ही बात हो रही थी लेकिन यह तय था कि कांग्रेस और झामुमो यह चुनाव साथ-साथ नहीं लड़ सकते. साथ में सरकार भले ही चल रही है, लेकिन झारखंड कांग्रेस नहीं चाहती थी कि चुनाव साथ लड़ें.
सीटों का बंटवारा आसान नहीं है. संताल और कोल्हान में झामुमो का अच्छा-खासा प्रभाव है. झामुमो यहां की अधिकांश सीटें अपने हिस्से में रखना चाहता था. लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर के बावजूद झामुमो ने दो सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस को यह बता दिया था कि उसे विधानसभा चुनाव में कम न आंका जाये. यहां यह देखना होगा कि झामुमो के कई नेताओं ने लगातार पार्टी छोड़ी, उसके बावजूद पार्टी की सेहत पर बहुत फर्क नहीं पड़ा.
इससे झामुमो के अंदर यह विश्वास जागा कि उसका अपना वोट बैंक है, जिसे आसानी से इधर-उधर नहीं किया जा सकता. हेमंत सोरेन की अगुवाई में हाल में झामुमो ने संगठन को पहले की अपेक्षा मजबूत किया है. हाल के दिनों में जिस तरीके से भाजपा ने जेवीएम के कई विधायकों को तोड़ा, उसके बाद झारखंड की राजनीतिक स्थिति बदली. जेवीएम के बारे में यह धारणा बनने लगी कि भाजपा का मुकाबला वह नहीं कर सकती.
ठीक इसके विपरीत झामुमो ने जोबा माझी, हरिनारायण राय जैसे अपने क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं को अपने पाले में किया. झामुमो ने हिसाब-किताब लगा कर देख लिया कि गंठबंधन करें या नहीं, फर्क नहीं पड़ता. वह 40-41 सीटों से कम पर नहीं मानने वाला नहीं था. कई ऐसी सीटें हैं जहां झामुमो और कांग्रेस दोनों का दावा था.
हो सकता है कि झामुमो को सभी 81 सीटों पर दमदार प्रत्याशी न मिलें, लेकिन 45-50 सीटें ऐसी हैं जहां झामुमो के प्रत्याशी दमदार साबित होंगे. इसी लिए झामुमो ने यह जोखिम लिया. वैसे भी अगर प्रदेश कांग्रेस गंठबंधन के खिलाफ है तो दिल्ली से निर्णय सौंपने का लाभ किसी को नहीं मिलता.
अब नये गंठबंधन में (जो तय लगता है) कांग्रेस, राजद व जदयू को ज्यादा दिक्कत नहीं होनी चाहिए. बिहार में यही फामरूला चल रहा है. इससे कांग्रेस, राजद व जदयू को पहले से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा. कांग्रेस में नाराजगी कम होगी. इसलिए गंठबंधन टूटना दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के हित में है.
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