।। भरत झुनझुनवाला ।।
(अर्थशास्त्री)
अमेरिका के यूनाइटेड स्टेट्स चैंबर ऑफ कॉमर्स समेत 16 औद्योगिक संगठनों ने राष्ट्रपति ओबामा को भेजे ज्ञापन में शिकायत की है कि बीते वर्ष में भारत के न्यायालयों तथा सरकार ने ऐसे कदम उठाये हैं, जिनसे भारतीय व्यापारियों को लाभ व अमेरिका को नुकसान हो रहा है. ज्ञापन का केंद्र, पेटेंट कानून पर भारत का रवैया है. कहा गया है कि वैश्विक मान्यता वाले अधिकारों को भारत ने नकार दिया है.
ज्ञात हो कि पिछले सौ वर्षो में विश्व के प्रमुख तकनीकी आविष्कार अमेरिका में ही हुए हैं. अमेरिकी कंपनियां इन पेटेंटीकृत माल को महंगा बेचती हैं. अमेरिका की 40 प्रतिशत आय और 74 प्रतिशत निर्यात इस प्रकार की ज्ञान एवं पेटेंट आधारित उत्पादों से हो रही है. अमेरिका तकनीकों के आविष्कार में आगे है. नये आविष्कारों को महंगा बेच पाने के लिए जरूरी है कि पेटेंट कानूनों को सख्ती से लागू किया जाये. जैसे पाइरेटेट वर्जन बाजार में बिकें तो माइक्रोसॉफ्ट पेटेंटीकृत विंडोज सॉफ्टवेयर की बिक्री से होनेवाले लाभ से वंचित हो जाती है. अपने लाभ के इस आधार को अमेरिका खिसकते देख रहा है. भारत द्वारा पेटेंट निरस्त करने से दूसरे देशों का मनोबल बढ़ेगा. वे भी पेटेंट निरस्त कर सकते हैं. इससे अमेरिका को बड़ा झटका लगेगा. इसलिए अमेरिकी उद्यमी मांग कर रहे हैं कि अमेरिकी सरकार द्वारा भारत पर दबाव डाला जाये कि वह पेटेंट कानून को कमजोर न करे.
प्रश्न है कि पेटेंट माल के कंपल्सरी लाइसेंस अथवा गैर कानूनी उत्पादन से विश्व अर्थव्यवस्था को लाभ होगा या हानि? अमेरिकी कंपनियों को स्पष्ट रूप से लाभ कम मिलेंगे. जैसे असली विंडोज-8 सॉफ्टवेयर का दाम करीब छह हजार रुपये है, पर देसी कंप्यूटर दुकान ढाई हजार में इसका पाइरेटेड वर्जन इंस्टाल कर देती हैं, साथ में एक वर्ष तक कंप्यूटर के रखरखाव का जिम्मा भी लेती है. प्रत्येक पाइरेटेड वर्जन के उपयोग पर माइक्रोसॉफ्ट को छह हजार रु का नुकसान होता है. लाभ के अभाव में माइक्रोसॉफ्ट के लिए नये सॉफ्टवेयर में निवेश करना कठिन होगा. चैंबर आफ कॉमर्स का कहना है कि नयी तकनीकों के अविष्कार के अभाव में विश्व अर्थव्यवस्था मंद पड़ेगी. यह भी कहा जा रहा है कि पेटेंट की चोरी होने से भारतीय वैज्ञानिकों के लिए भी नये अविष्कार का प्रोत्साहन नहीं रह जायेगा, क्योंकि उनके आविष्कार की भी चोरी हो जायेगी.
मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूं. तर्क में इस बात को नजरअंदाज किया जा रहा है कि सस्ता सॉफ्टवेयर उपलब्ध होने से भारतीय अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी और भारत में ज्यादा संख्या में लोग कंप्यूटर का उपयोग कर सकेंगे. अत: माइक्रोसॉफ्ट कंपनी का घाटा और भारत के लाभ साथ-साथ चलेंगे. समग्र रूप से विश्व अर्थव्यवस्था पर इस चोरी का प्रभाव लाभप्रद भी हो सकता है.
विषय का दूसरा पक्ष नये अविष्कारों का है. बीते समय में बड़ी कंपनियों द्वारा निवेश करने से कई नये उत्पादों का अविष्कार हुआ है, परंतु पेटेंट कानून बनाये जाने के पहले भी संसार में तमाम अविष्कार होते आये हैं. कुछ अध्ययनों में पेटेंट कानून का अविष्कारों पर सकारात्मक प्रभाव पाया गया है, पर दूसरे अध्ययनों में शून्य या नकारात्मक प्रभाव पाया गया है. कारण यह कि पेटेंट कानून के अभाव में जानकारी तमाम लोगों को उपलब्ध हो जाती है, जिससे वे नये अविष्कार कर सकते हैं. जैसे मुफ्त उपलब्ध लाइनेक्स सॉफ्टवेयर पर तमाम लोग शोध कर रहे हैं.
अविष्कार दोनों तरह से होते हैं. पेटेंट लागू होने से चुनिंदा कंपनियों द्वारा भारी निवेश से अविष्कार होते हैं. पेटेंट निरस्त होने से बड़ी संख्या में लोग अविष्कार में लग जाते हैं. अत: यह तर्क स्वीकार नहीं है कि पेटेंट की चोरी करने से नये अविष्कार बाधित ही होंगे. अत: अमेरिकी व्यापारियों द्वारा भारत की नीतियों को विश्व अर्थव्यवस्था के लिए हानिप्रद बताना सही नहीं है. पेटेंट की चोरी या कंपल्सरी लाइसेंसिंग से अमेरिकी कंपनियों को नुकसान होगा, पर विश्व अर्थव्यवस्था को होनेवाला लाभ इससे ज्यादा हो सकता है.
अत: हमें अपनी नीतियों पर न सिर्फ बने रहना चाहिए, बल्कि पेटेंट कानून तोड़ने के प्रयास और तेज करने चाहिए, ताकि अविष्कार के दायरे का फैलाव हो. हमें चाहिए कि चीन, ब्राजील व दूसरे विकासशील देशों के साथ मिल कर पेटेंट कानून को डब्ल्यूटीओ से बाहर लाने की मुहिम छेड़ें. हमारी सरकार का सीधा उद्देश्य अपनी जनता के हित को हासिल करना होना चाहिए. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विकासशील देशों की सरकारें अमेरिका के चक्रव्यूह में फंस कर अपने हित गंवाती आयी हैं. अब इस दुष्चक्र से निकलना जरूरी है.