पिछले दिनों प्रभात खबर में नीलांजन के तट पर कविता का दीपदानह्ण लेख में डॉ बुद्धिनाथ मिश्र के विषय चयन व लेखन शैली ने फिर से प्रभावित किया. बुद्धिनाथ जी ने सही ही कहा है कि हास्य कविता को भात-दाल में चटनी की मात्रा भर स्थान मिलता था.
हमारे जमाने में कवि सम्मेलन की सूचना हमें सबसे पहले अपनी कक्षा में हिंदी और अंगरेजी के प्राध्यापकों से मिलती थी. रात भर कविता सुनना एक स्फूर्ति जगाता था.
हम अपनी पसंद से कई-कई दिनों तक कविताओं को गुनगुनाते रहते थे. किसी खास पंक्ति से अपनी नोट बुक या अपने पत्र शुरू करते थे. आज हिंदी कवि सम्मेलन का अर्थ है हास्य कवि सम्मेलन. कविता कम और भद्दे लतीफे अधिक हैं. हल्कापन है विचारों में और खुद की ही पीठ थपथापने का प्रयास. ऐसे में बुद्धिनाथ जी का लेख सकारात्मकता फैलाता है.