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चालान-कर्ज की इएमआइ
आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com मैंने सुझाव दिया बैंक अधिकारी मित्र को- इश्तिहार में यह लिखवाओ कि वाहन कर्ज के साथ अब वाहन चालान चुकाने के लिए भी कर्ज देते हैं- सस्ती इएमआइ पर. बैंक अधिकारी मित्र उत्साहित होकर बोला- ग्रेट आइडिया, तुम बैंकिंग में आ जाओ. मैंने इनकार कर दिया- बैंकिंग जैसे नॉन सीरियस […]
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
puranika@gmail.com
मैंने सुझाव दिया बैंक अधिकारी मित्र को- इश्तिहार में यह लिखवाओ कि वाहन कर्ज के साथ अब वाहन चालान चुकाने के लिए भी कर्ज देते हैं- सस्ती इएमआइ पर. बैंक अधिकारी मित्र उत्साहित होकर बोला- ग्रेट आइडिया, तुम बैंकिंग में आ जाओ. मैंने इनकार कर दिया- बैंकिंग जैसे नॉन सीरियस काम हम ना करते, हम सबसे सीरियस काम करते हैं- व्यंग्य लिखते हैं. व्यंग्य में बताये गये आइडिया जब मंजूर होने लगें, तो मानना चाहिए कि व्यंग्य सार्थक हो रहा है.
मंदी से जूझती सरकार के लिए आइडिया है कि हर चौराहे, हर क्रॉसिंग के पास दारू का ठेका खोला जाये. बंदा दारू पीकर जैसे ही रेड लाइट क्राॅस करे, एक लाख रुपये का फाइन लगा दिया जाये. इधर नये मोटर ह्वीकल एक्ट के नये फाइन का ऐसा आतंक फैला है कि दारू पीकर रेड लाइट टापने के दंड-शुल्क के रूप में कोई भी रकम बताओ, बंदा मान जायेगा.
जिस हिसाब से ट्रैफिक पर फाइन चल रहे हैं, उस हिसाब से लगता है कि पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी तो खड़ी हो जायेगी. हर ट्रैफिक हवलदार की हैसियत बढ़ जायेगी. कस्टम वाला बतायेगा- मैंने एक फार्महाऊस खरीद लिया.
इनकम टैक्सवाला बतायेगा- मैंने तो आॅस्ट्रेलिया में फार्महाऊस खरीद लिया. पीडब्लूडी वाला बतायेगा- मैंने तो पूरा शहर ही खरीद लिया. ट्रैफिक वाला बतायेगा- ओय चुप्प कर, मैंने तो पूरा देश ही खरीद लिया है. एक हफ्ते की वसूली रकम जमा हो गयी थी. देश का वित्तीय भविष्य तभी शानदार हो पायेगा, जब अनाड़ी नौसिखिये ड्राइवर अपनी गाड़ियों को सड़कों पर लायेंगे और खजाना भरेंगे.
सरकार पब्लिक को ड्राइविंग सिखाने में रुचि नहीं लेती, क्योंकि उसे फाइन से रकम इकठ्ठी करनी है. अभी मुल्क के अधिकांश ड्राइविंग लाइसेंस देनेवाली अथॉरिटी का हाल यह है कि कुछ रकम देकर आप एक साथ टू व्हीलर और कार का लाइसेंस ले सकते हैं, भले ही आपको साइकिल चलानी ना आती हो. इस आशय का विमर्श एक लाइसेंस अधिकारी से हो रहा था, तो उसने जवाब दिया- आप जिन्हें पांच साल देश चलाने का लाइसेंस अपने वोट से देते हैं, क्या उन्हें देश चलाना आता है? इस बात में दम थी.
आइडिये और भी हैं. कंसेशन में चालान, यानी छह के रेट पर बारह चालान कटवा लीजिये, बाद में आराम से कानून तोड़ते रहिये. एक के साथ एक फ्री की योजना भी चलायी जा सकती है- एक चालान कटा और एक बार फिर से बेखौफ होकर रेड लाइन क्राॅस कर लीजियेगा. लेकिन, जिस हिसाब से चालान, फाइन से कमाई कर रहे हैं ट्रैफिक वाले, उस हिसाब से तो लगता है कि जल्दी ही एक बजट ‘ट्रैफिक चालान बजट’ भी अलग से बनना शुरू हो जायेगा. मंदी के मौसम में ही ट्रैफिक बजट अलग से बनाने की शुरुआत की जा सकती है.
इस वक्त सरकार की बड़ी दिलचस्पी फाइन इकठ्ठा करने में है. क्योंकि अगर आप लोगों को ढंग से ड्राइविंग सिखाने में सरकार की रुचि होती, तो ड्राइविंग लाइसेंस बांटनेवाले तमाम दफ्तरों का हाल वह ना होता, जो आज है.
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