झारखंड विकास मोरचा (झाविमो) के चार विधायक भाजपा में शामिल हो गये हैं. इससे पहले एक पूर्व विधायक भी भाजपा में शामिल हो चुके हैं. भाजपा का दावा है कि अभी कई और विधायक व प्रमुख नेता भाजपा में शामिल होंगे.
दरअसल, यह कोई वैचारिक हृदय-परिवर्तन नहीं, बल्कि चुनाव से पहले मची भगदड़ है. चुनाव के ठीक पहले दल बदलने का इतिहास रहा है. हालिया आम चुनावों में भाजपा के जबरदस्त प्रदर्शन ने उसके पक्ष में एक माहौल बना दिया है. अब वह दूसरे दलों के विधायकों को शामिल करके अपने प्रतिद्वंद्वियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में जुटी है.
कई दलों के नेताओं को यह लग रहा है कि आगामी विस चुनाव में भाजपा के साथ रहना फायदेमंद रहेगा, इसलिए वे उधर खिंचे चले जा रहे हैं. यह भी सच है कि आज की राजनीति में दलीय प्रतिबद्धता नहीं रह गयी है, सिद्धांत की राजनीति नहीं रह गयी है. अब जाति-धर्म और सीटों को जीतने की राजनीति होती है.
जो भी हो, इतना तय है कि चार विधायकों के भाजपा में जाने से झाविमो को तात्कालिक झटका तो लगेगा. यह भी सच है कि आज हर दल अंदरूनी संकट से जूझ रहा है. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा बहुत बढ़ती जा रही है. हर व्यक्ति को अपने लिए, पत्नी-बेटे के लिए सीट चाहिए. इससे राजनीति की दिशा ही बदल गयी है.
लोकसभा चुनाव में इसी कारण कई नेताओं ने पार्टियां छोड़ीं, क्योंकि उनके परिजनों को टिकट नहीं मिला था. जिस तरीके से दूसरे दलों के लोग भाजपा में जा रहे हैं, अगर उन्हें बहुत तरजीह मिलेगी, तो इसका असर भाजपा के पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं पर पड़ेगा. जब उन्हें लगेगा कि उनकी उपेक्षा हो रही है तो नाराजगी दिखेगी. इसका फायदा दूसरे दल उठायेंगे.
दल बदलने में जिस तरीके से तेजी आयी है, उससे झारखंड में विधानसभा चुनाव की आहट साफ सुनी जा सकती है. विधायकों के पास अब कम समय बचा है. उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के मतदाताओं को चुनाव में जवाब देना होगा. जिन विधायकों ने काम किया है, वे काम के बल पर चुनाव में जायेंगे. जिन्होंने नहीं किया है, उन्हें यह डर सता रहा है कि जनता को क्या जवाब देंगे. इसलिए आनेवाले दिनों में भी पार्टी छोड़ने, नयी पार्टी में जाने की गति तेज होने के आसार हैं.