सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
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वह बाबा है. बाबा भी साधारण नहीं, बल्कि बंगाली. बंगाली बोंधु क्षोमा करें, यहां बंगाली से मतलब ‘बंगाल का’ नहीं है. ‘बंगाली बाबा’ बंगाल का हो भी सकता है और नहीं भी. ज्यादातर तो वह बंगाल का न होकर यूपी-बिहार का ही होता है. कहता फिर भी अपने को बंगाली है. बंगाली कहने से बाबागिरी में एक खास इफेक्ट जो आता है. और वह इफेक्ट आता है बंगाली जादू से.
बंगाल का जादू बहुत प्रसिद्ध रहा है. उसे काला जादू भी कहते हैं. बंगाल के जादू को काला जादू कहे जाने के बहुत-से कारण बताये जाते हैं, जिनमें से मुख्य कारण मेरे खयाल से उसका काला होना है.
एक कारण यह भी बताया जाता है कि चूंकि उस जादू का इस्तेमाल काले लोगों द्वारा ही किया जाता है, इसलिए उसे काला जादू कहा जाता है. वे काले लोग तन-मन दोनों से काले होने चाहिए और किसी वजह से तन से काले न भी हों, तो भी मन से जरूर काले होने चाहिए. कारण, मन से काले होने पर उसका असर तन पर भी आ जाता है और मन का काला व्यक्ति तन से भी जल्दी ही काला दिखने लगता है.
वैसे जादू केवल बंगाल का ही नहीं, पूरे पूर्वी भारत का प्रसिद्ध है. उत्तर-पूर्व में तो औरतें भी जादू जानती रही हैं. कहते हैं कि परदेस से वहां जानेवाले पुरुषों को वे भेड़ा बनाकर रख लेती हैं. भेड़ा उनके किस काम आता होगा, यह अलबत्ता सोचने की बात है.
कहानियों में उनके द्वारा पुरुषों को मक्खी बनाकर दीवार पर चिपका देने के मामले भी सुनने में आते हैं. जब चाहा, उन मक्खियों को फिर से पुरुष बना लिया और यथोचित सेवा लेने के बाद फिर से मक्खी बनाकर दीवार पर चिपका दिया.
बंगाली बाबाओं के मामले में जिस तरह उनका बंगाली होना जरूरी नहीं, उसी तरह उनका बाबा होना भी जरूरी नहीं. जवान लोग भी इस धंधे में आकर बाबा कहलाते हैं. ज्यादातर तो जवान ही इस धंधे में आते हैं. यहां आकर वे उसी तरह बारोजगार हो जाते हैं, जिस तरह पकौड़े-समोसे बनानेवाले हो जाते हैं. रोजगार, रोजगार है, और हर रोजगार सरकार का दिया हुआ है.
वह पंजाबी युवक भी ऐसा ही एक बंगाली बाबा है. अपने निजी तरीकों से, जिनके लिए कि बाबा बंगाली जाने जाते हैं, वह नि:संतान लोगों को संतान, निर्धनों को धन, बेरोजगारों को रोजगार, प्रेमियों को प्रेम में सफलता, दुश्मनों के खात्मे आदि में मदद करता है.
नि:संतानों को संतान दिलाने में उसे महारत हासिल बतायी जाती है और कहते हैं कि संबंधित स्त्री की एक रात की ही पूजा-अर्चना से वह यह करामात कर देता है. पत्रकारिता का मेरा धंधा भी अपने धंधे जितना ही गिरा हुआ समझते हुए वह मुझसे विशेष स्नेह रखता है और किसी को न बताने की शर्त पर मुझे बताता है.
आज मिला, तो बहुत परेशान दिखा. बोला, ये नेता लोग भी अगर विरोधी नेताओं को मारने के लिए मारक शक्ति का प्रयोग करने लगेंगे, तो उस जैसे बंगाली बाबा कहां जायेंगे? अगर राजनीति में भी तंत्र-मंत्र का ही जोर रहना है, तो वे खुद क्यों न राजनीति में पहुंच जायें?