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डिजिटल एप के खतरे

बच्चों की ऑनलाइन सक्रियता और उसके नुकसान को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है. कुछ दिनों पहले इसी वजह से मद्रास उच्च न्यायालय ने एक लोकप्रिय वीडियो एप पर पाबंदी लगा दी थी, जिसे बीते हफ्ते कानूनी आधारों पर सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया. लेकिन इस अदालत ने बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए 1998 […]

बच्चों की ऑनलाइन सक्रियता और उसके नुकसान को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है. कुछ दिनों पहले इसी वजह से मद्रास उच्च न्यायालय ने एक लोकप्रिय वीडियो एप पर पाबंदी लगा दी थी, जिसे बीते हफ्ते कानूनी आधारों पर सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया.
लेकिन इस अदालत ने बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए 1998 के अमेरिकी कानून की तर्ज पर भारत में भी कानून बनाने की सलाह दी है. इस मुकदमे की सुनवाई से इंगित होता है कि मौजूदा कानूनों में बदलाव की जरूरत है. अक्सर सोशल मीडिया और एप कंपनियां यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं कि किसी गड़बड़ी या अपराध की जिम्मेदारी इस्तेमाल करनेवालों की है, न कि उनके प्लेटफॉर्म की.
प्रस्तावित व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा कानून में भी इन्हें जवाबदेह ठहराने का प्रावधान नहीं है. सूचना तकनीक कानून, 2000 में प्लेटफॉर्म द्वारा आपत्तिजनक सामग्री हटाने और निगरानी करने की व्यवस्था है, किंतु उसमें भी बच्चों की सुरक्षा के लिए समुचित निर्देश नहीं हैं. वर्ष 2011 के नियमों में गलत आचरण करने पर प्लेटफॉर्म द्वारा यूजर को हटाने का उल्लेख तो है, पर यह बाध्यकारी नहीं है.
कोई भी कायदा बनाने में यह भी ध्यान रखना होता है कि इंटरनेट की आजादी बाधित न हो और कंपनियों पर सरकार का बेजा दखल न हो. लेकिन, इसके लिए बच्चों के हितों और उनकी सुरक्षा के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है. भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग ऑनलाइन हैं और यह तादाद तेजी से बढ़ रही है.
इस कारण हमारा देश डिजिटल एप के कारोबार का बड़ा बाजार है, जिसकी निगरानी का कोई तंत्र नहीं है. हालांकि, सरकार के लिए प्रभावी ढंग से ऐसा कर पाना बहुत मुश्किल भी है, लेकिन यदि कड़े कानून लागू हों, तो गड़बड़ एप बनाने और इस्तेमाल करने पर कुछ रोक लगायी जा सकती है या दंडित किया जा सकता है. सरकार, समाज और एप कंपनियों को इस दिशा में सहयोग से पहलकदमी करनी चाहिए.
कुछ वीडियो गेम और मैसेजिंग एप पर कार्रवाई तब हुई, जब उनके खतरनाक नुकसान हो चुके थे. ताजा मामले में भी अदालत को समस्या का संज्ञान लेना पड़ा है. अनेक एप ऐसे हैं, जो न सिर्फ आपत्तिजनक सामग्री का प्रसार कर रहे हैं, बल्कि इस्तेमाल करनेवालों के डेटा और बैंक खातों में भी सेंधमारी कर रहे हैं. ऑनलाइन धोखाधड़ी, ब्लैकमेल, आक्रामकता, ट्रोलिंग आदि बड़ी समस्या बन चुके हैं. पश्चिमी देशों, रूस और चीन की तुलना में भारत में कमजोर नियमन भी है और डिजिटल कारोबारी मनमाने ढंग से लोगों का दोहन कर रहे हैं.
बच्चों से लेकर वयस्क तक किसी-न-किसी रूप में अराजक ऑनलाइन गतिविधियों और सामग्रियों से परेशान हैं. ऐसे में सरकार को न्यायालयों के ताजा निर्देशों पर गंभीरता से अमल करना चाहिए. पश्चिम के अनुभव इसमें बहुत मददगार हो सकते हैं. डेटा सुरक्षा और इंटरनेट की अराजकता पर सभी संबद्ध पक्षों को खुले मन से सोच-विचार करने की जरूरत भी है.

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