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दिन महीने साल गुजरते जायेंगे..

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची दिन महीने साल गुजरते जायेंगे, अब अच्छे दिन नहीं, अच्छे साल आयेंगे.. पिछले कुछ दिनों से हमारे एक सहकर्मी इसी तरह भुनभुना (गुनगुना) रहे हैं. आखिर छह महीनों से टीवी, मीडिया में अच्छे दिन की लोरियां सुनने का साइड इफेक्ट तो होना ही था. गाने का मतलब पूछने पर पहले […]

लोकनाथ तिवारी

प्रभात खबर, रांची

दिन महीने साल गुजरते जायेंगे, अब अच्छे दिन नहीं, अच्छे साल आयेंगे.. पिछले कुछ दिनों से हमारे एक सहकर्मी इसी तरह भुनभुना (गुनगुना) रहे हैं. आखिर छह महीनों से टीवी, मीडिया में अच्छे दिन की लोरियां सुनने का साइड इफेक्ट तो होना ही था. गाने का मतलब पूछने पर पहले तो बिदक उठे. फिर शांत हुए तो कहा कि अब अच्छे दिन की बात भूल जाइए. 2019 में ‘अच्छे साल आयेंगे’ का नारा बुलंद होगा, उसके बारे में सोचिए. बढ़ती महंगाई पर बेवजह चिंचियाइए नहीं, कुछ दिनों बाद इसकी आदत पड़ जायेगी.

रेल किराया बढ़ा कर अच्छे दिन की सरकार इसी आदत को पुख्ता करना चाहती है. अब देखिए, रेल बजट में किराया नहीं बढ़ा तो कैसा फील गुड हो रहा है. हमारे अच्छे दिनवाले नेताजी तो इस रेल बजट पर दार्शनिक हो उठे. कहा कि पिछले कुछ दशकों से भारतीय रेल में एक बिखराव महसूस होता था. टुकड़ों में सोचा जाता था. पहली बार रेल बजट में समग्रता दिखी है. और तो और, हमारे काका भी बजट के बाद से बेचैन हैं. उनको कुछ सूझ नहीं रहा है कि चाय चौपाल में रेल बजट की कौन सी बात का बखान करें. काका की छोड़िए, हमारे बॉस को भी नहीं सूझ रहा था कि हेडलाइन क्या बनायी जाये. हालांकि अखबारनवीसों के लिए यह कोई बड़ी समस्या नहीं है.

कई बार अनाप-शनाप बकनेवाले नेताओं के बयान का भी ऐसा शीर्षक लगा देते हैं कि अगले दिन नेताजी अखबार पढ़ कर अपनी पीठ ठोकने लगते हैं. इस बार भी कुछ नहीं मिला तो दार्शनिक अंदाज में कुछ तुक्का छोड़ दिया गया. रही बात काका की तो उनको अभी रेल किराये में वृद्धि की बात भूली नहीं है. रेल बजट में किराया नहीं बढ़ाया गया जैसी बात भी हजम नहीं की जा सकती. नयी ट्रेन, बुलेट ट्रेन, वाइ-फाइ और हाई स्पीड ट्रेन के बारे में तो आम लोग वैसे ही नहीं सोचते. अब एक नया शगूफा छोड़ दिया गया है कि रेलवे किराया कभी भी बढ़ाया जा सकता है. यानी रेल का टिकट न हुआ आलू-प्याज हो गया. हर दिन बाजार जाते समय सोचना पड़ता है कि आज सौ ग्राम प्याज खरीदना है कि पचास ग्राम. काका को जब पता चला कि अब ट्रेन का किराया भी हर महीने बढ़ेगा, तब कुछ पल के लिए उनको भी काठ मार गया.

थोड़े सचेत हुए तो सिर आसमान की ओर करके सोचने लगे. हर समस्या का चुटकियों में समाधान करनेवाले काका से बड़ी उम्मीद थी कि इस बार भी कुछ सटीक फरमायेंगे. आखिर उन्होंने सुझाया, लेकिन उस पर अमल करने की अब न तो उमर रही और ना ही वह जोश रहा. काका ने कहा कि किराया बढ़े या घटे, इसकी फिकर और हिसाब करने की जरूरत उसे न पड़ेगी, जो टिकट कटा कर सवारी करेगा. 14 फीसदी किराया बढ़े या दोगुना हो जाये, अब तो हमें भी तथाकथित स्टूडेंट बनकर ही सफर करना होगा. न टिकट कटायेंगे और न ट्रेन का क्लास देख कर सवारी करेंगे.

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