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डेटा खपत में बढ़त

दुनियाभर में डेटा आधारित व्यवस्थाओं में बढ़ोतरी के साथ भारत में भी डेटा उपभोग में वृद्धि दिख रही है.एसोचैम-पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 तक भारत में डेटा उपभोग के मामले में संयुक्त वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से 72.6 प्रतिशत की वृद्धि हो जायेगी और यह साल 2017 की 71 लाख मिलियन एमबी की […]

दुनियाभर में डेटा आधारित व्यवस्थाओं में बढ़ोतरी के साथ भारत में भी डेटा उपभोग में वृद्धि दिख रही है.एसोचैम-पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 तक भारत में डेटा उपभोग के मामले में संयुक्त वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से 72.6 प्रतिशत की वृद्धि हो जायेगी और यह साल 2017 की 71 लाख मिलियन एमबी की खपत से बढ़कर लगभग 11 करोड़ मिलियन एमबी हो जायेगी. भारत में डेटा और वायस कॉल की लागत विश्व में सबसे कम है. डेटा टैरिफ बेहद सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं. फिलवक्त, देश की 40 फीसदी से अधिक आबादी स्मार्टफोन चला रही है. ऑनलाइन माध्यमों से पैसे का लेन-देन आसान हुआ है.

कल्याणकारी योजनाओं व सेवाओं की जानकारी आसानी से नागरिकों तक पहुंच रही है. प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में सूचना का प्रसार तेजी से हो रहा है और राहत कार्यों में बड़ी मदद भी जुटायी जा रही है. आज मोबाइल द्वारा कृषि व अन्य व्यवसायों का संचालन तक संभव हो गया है. ज्यादातर आबादी अपने स्मार्टफोन पर ही सिनेमा देखने के लिए एप का सहारा ले रही है. हर व्यक्ति इंटरनेट द्वारा संचालित फेसबुक, व्हॉट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपनी बात रखने के लिए बेहतर मंच के रूप में देख रहा है.

हालांकि, सोशल मीडिया माध्यमों के अराजक इस्तेमाल ने नकारात्मक असर भी छोड़ा है. भाग-दौड़ भरे जीवन में हर सेकंड एक ‘पोस्ट’ के रूप में हो रही अभिव्यक्ति के साथ संदर्भ जांचने का समय किसी के पास नहीं है, जिससे फेक न्यूज चलन में है. देश में मोबाइल व मोबाइल कलपुर्जे निर्माता कंपनियों की संख्या भी बढ़कर 268 हो गयी है. अब उपभोक्ता बातचीत की सेवाओं से ज्यादा खर्च डेटा सेवाओं पर कर रहे हैं.

इसके चलते, साल 2022 तक इंटरनेट की पहुंच देश की लगभग 60 फीसदी आबादी तक होगी. हालांकि, इंटरनेट उपयोग बढ़ने के साथ डेटा सुरक्षा का मसला भी बढ़ा है. ऑनलाइन धोखाधड़ी गिरोह पूरे देश में सक्रिय हैं और आये-दिन लोगों के बैंक खातों से उनकी जमापूंजी उड़ा रहे हैं. गांवों में खराब डेटा स्पीड और कनेक्टिविटी की समस्या बनी हुई है. शहरी इलाकों की तुलना में वहां ‘कॉल ड्रॉप’ की समस्या भी ज्यादा सामने आती रही है.

देश की टेलीकॉम कंपनियों को इन चुनौतियों से पार पाना है. लगभग 70 फीसदी ग्रामीण आबादी वाले देश के गांवों की उपेक्षा ये कंपनियां नहीं कर सकतीं. दुनिया में अब नयी-नयी तकनीकें मौजूद हैं, जिनसे डेटा व कॉलिंग सेवाओं को लगातार बेहतर किया जा रहा है. वहीं 5जी नेटवर्क का आगमन भी होनेवाला है.

मोबाइल डेटा उपभोग के मामले में विश्व में सबसे आगे खड़े भारत को भी बेहतर तकनीक-आधारित प्रयासों को लागू करने की जरूरत है. आनेवाली दुनिया डेटा प्रधान होगी. केंद्र सरकार अगले पांच वर्षों में एक लाख ‘मोबाइल ग्राम’ स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है. भविष्य में भी वैश्विक पटल पर अग्रणी बने रहने के लिए भारत को ऐसी कई योजनाओं की जरूरत होगी.

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