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आत्मचिंतन करे पाकिस्तान
पड़ोसी देशों में आतंक और अशांति फैलाना पाकिस्तान की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा है. इमरान खान के नेतृत्व में बनी नयी सरकार से पाकिस्तान के इस रवैये में सुधार की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अलगाववादी और आतंकी गिरोहों के जरिये कश्मीर को तबाह करने की उसकी कोशिशें बदस्तूर […]
पड़ोसी देशों में आतंक और अशांति फैलाना पाकिस्तान की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा है. इमरान खान के नेतृत्व में बनी नयी सरकार से पाकिस्तान के इस रवैये में सुधार की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
अलगाववादी और आतंकी गिरोहों के जरिये कश्मीर को तबाह करने की उसकी कोशिशें बदस्तूर जारी हैं. घाटी में हो रहे पंचायत चुनाव के बीच बीते दिनों दो युवाओं की नृशंस हत्या कर दी गयी है. इसी महीने एक राजनीतिक कार्यकर्ता और उसके भाई को भी मार दिया गया था. अमन-चैन बहाल करने और विकास कार्यों को गति देने के लिए यह जरूरी है कि लोगों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जोड़ा जाए. स्थानीय निकायों के चुनाव इसी प्रक्रिया की महत्वपूर्ण कड़ी हैं.
पाकिस्तान और उसकी शह से सक्रिय आतंकी इस प्रक्रिया को बाधित करना चाहते हैं. पाकिस्तान की बौखलाहट का एक कारण यह भी है कि वह कश्मीर के बहाने अपनी अंदरूनी परेशानियों को छुपाने की कोशिश कर रहा है. पाक-अधिकृत कश्मीर में अनेक राजनीतिक और सामाजिक संगठन विनाशकारी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विरोध कर रहे हैं.
उनका आरोप है कि यह परियोजना सैन्य और सामरिक उद्देश्यों से प्रेरित है तथा उसका लक्ष्य स्थानीय लोगों का विकास नहीं है. इन कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान के अवैध और दमनकारी कब्जे को समाप्त करने की मांग भी की है. पाक-अधिकृत कश्मीर में अनेक स्थानों पर पाकिस्तानी सरकार सेवानिवृत्त अधिकारियों और कारोबारियों को बड़ी मात्रा में जमीन भी आवंटित कर रही है. आर्थिक गलियारे से न सिर्फ उस क्षेत्र के पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच सकता है, बल्कि इलाके में संसाधनों की लूट का रास्ता भी खुल सकता है.
इस क्षेत्र से पानी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी और सत्ताधीश अपने फायदे के लिए पहले से ही करते आ रहे हैं. पाकिस्तान की कश्मीर नीति के खिलाफ कई पाकिस्तानी अपनी आवाज उठाते रहे हैं. पिछले दिनों पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी शाहिद अफरीदी ने भी बयान दे दिया था कि पाकिस्तान से तो उसके अपने चार प्रांत भी संभाले नहीं जा रहे हैं.
पाकिस्तान की धरती से आतंकवाद और कट्टरपंथ फैलाने में लगे संगठनों और सरगनाओं पर भी नकेल लगाने में पाकिस्तान विफल रहा है, जबकि खुद उसके नागरिक भी उनका निशाना बनाते रहे हैं. इमरान सरकार ने तो मुंबई हमले की साज़िश रचनेवाले हाफिज सईद के गिरोहों को आतंक निगरानी सूची में भी नहीं डाला है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय मंचों से पाकिस्तान को अक्सर फटकार मिली है, पर कुछ बड़े देशों ने अपने स्वार्थ साधने के लिए उस पर समुचित दबाव बनाना तो दूर, उसकी मदद ही की है.
सुरक्षा परिषद में चीन ने आतंकी सरगना मसूद अजहर को पाबंदी से बार-बार बचाया है. भारतीय उपमहाद्वीप में शांति, सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए आतंकवाद पर नियंत्रण आवश्यक है. यह पाकिस्तान के हित में भी है और उसे आत्मचिंतन कर अपना सुधार करना चाहिए.
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