।।जोनाथन मार्कस।।
सीरिया और इराक के संयुक्त संकट से अब एक नये ‘राष्ट्र’ के उदय की संभावना बन गयी है, जो प्रू्वी सीरिया और पश्चिमी इराक से बना होगा. यह वह इलाका है जहां आइएसआइएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट) से जुड़े जिहादियों का प्रभाव है. यह जो कुछ हो रहा है, इसका इस क्षेत्र की भौगोलिक राजनीति एवं उसके बाहर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. इराक एक के बाद दूसरे संकट में फंसता जा रहा, लेकिन इसके लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं?
अमेरिका के जरिए सद्दाम हुसैन को सत्ता से बाहर करने का सबसे बड़ा विद्रूप इस इलाके में ईरान के प्रभुत्व में बढ़ोतरी के रूप में सामने आया. ईरान इराक के शियाओं को एक व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष में अपने सहयोगी के तौर पर देखने लगा. संभव है कि, ईरान से मिले समर्थन के कारण सत्ता में आये इराकी प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी के शिया वर्चस्ववादी रवैये ने बहुत से सुन्नियों को नाराज किया हो जिससे देश में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी.
आधुनिक मध्य-पूर्व क्षेत्र की सीमा रेखा कमोबेश पहले विश्व युद्ध के दौरान की विरासत है. तुर्की के महान ऑटोमन साम्राज्य की पराजय और बिखराव के बाद उपनिवेशवादी शक्तियों ने ये सीमाएं तय की थीं. अब ये दो कारणों से संकट में हैं- पहला, सीरिया में लगातार जारी हिंसा और विभाजन. दूसरा, इराक में आइएसआइएस की तरफ से किये जा रहे हमले. हां, अगर आइएसआइएस को मिली सैन्य बढ़त को पलट दिया जाता है, तो तसवीर कुछ अलग हो सकती है. जो भी हो, यह बात तय है कि इराक को पहले इतना खतरा कभी नहीं था.
सीरिया और इराक के संयुक्त संकट से अब एक नये ‘राष्ट्र’ के उदय की संभावना बन गयी है, जो प्रू्वी सीरिया और पश्चिमी इराक से बना होगा. यह वह इलाका है जहां आइएसआइएस (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट) से जुड़े जिहादियों का प्रभाव है. यह जो कुछ हो रहा है, इसका इस क्षेत्र की भौगोलिक राजनीति एवं उसके बाहर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. इराक एक के बाद दूसरे संकट में फंसता जा रहा, लेकिन इसके लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं, आइए जानते हैं इनके
बारे में :
1. स्थापना से ही गड़बड़
कुछ लोगों के लिए इराक की समस्याओं की शुरुआत आधुनिक इराक की स्थापना के साथ हो गयी थी. उपनिवेशवादी शक्ति रहे ब्रिटेन ने यहां हाशमाइट साम्राज्य की स्थापना की थी. यह साम्राज्य शिया और कुर्द जैसे दूसरे समुदायों के प्रति ज्यादा ध्यान नहीं देता था. इराक के उथल-पुथल भरे इतिहास में यह समस्या बार-बार सिर उठाती रही है.
राजशाही का समापन एक सैन्य तख्तापलट से हुआ. यह तख्तापलट मिस्र में हुए नासिर के तख्तापलट जैसा ही था. तख्तापलट करने वाले धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रवादी और आधुनिकता के पैरोकार थे. इसी सिलसिले में अंततोगत्वा सद्दाम हुसैन सत्ता में आये जिनके सुन्नी प्रभुत्ववाले शासन में शियाओं और कुर्दो के साथ कड़ा बरताव किया गया. सद्दाम हुसैन के शासन काल में हुए ईरान-इराक युद्ध के दौरान पश्चिमी शक्तियों से उन्हें मिले समर्थन ने उनके क्रूर शासन को मजबूती प्रदान की.
2. ऑपरेशन इराकी फ्रीडम
बाथ पार्टी (सद्दाम हुसैन के राजनीतिक दल का नाम) की सरकार को सन 2003 में अमेरिका और ब्रिटेन की सेना के हमले ने खत्म कर दिया. सद्दाम हुसैन को गद्दी से हटा दिया गया, और इराक़ी सरकार ने उन पर मुकदमा चला कर उन्हें फांसी दी. इराक की सैन्य शक्ति को लगभग विघटित कर दिया गया और उसकी जगह एक नये सुरक्षा बल का गठन किया गया.
इराक में हुए युद्ध को कुछ नव-रूढ़िवादी अमेरिकी इस क्षेत्र में लोकतंत्र बहाल करने के लिए उठाया गया कदम मानते हैं. लेकिन इस युद्ध ने यहां के राजनीतिक समीकरण बदल दिये जिसके तहत सभी समुदायों को एक करने की बात की गयी, लेकिन असलियत में एक ऐसा राज्य बना जिसमें बहुसंख्यक शिया समुदाय का ज्यादा प्रभाव हो गया.
कई लोगों को इस बात पर अब संदेह हो गया है कि इराक को अखंड राष्ट्र के रूप में बचाया जा सकता है, क्योंकि देश के उत्तरी कुर्द बहुल इलाके ने काफी हद तक पहले ही स्वायत्तता हासिल कर ली थी.
3. अमेरिकी सेना का जाना
अमेरिकी सेना ने दिसबंर 2011 में इराक छोड़ दिया. पहले अमेरिका इराकी सेना की मदद के लिए कुछ सैन्य टुकिड़यां छोड़ने वाला था, लेकिन दोनों देशों के बीच इसे लेकर सहमति नहीं बन सकी थी. उसके बाद से इराक की सुरक्षा पूरी तरह से इराक की सेना के हवाले रह गयी जो कि बहुत ज्यादा सक्षम नहीं है.
अमेरिका अल-कायदा समर्थक जिहादी चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए कई सुन्नी समूहों को अपने साथ लाने में सफल रहा था. अमेरिकी सेना के जाने के बाद यह व्यवस्था शीघ्र ही समाप्त हो गयी. शिया प्रभुत्व वाली सरकार के शासन में सुन्नियों को सुरक्षा बलों की ज्यादतियों का शिकार होना पड़ रहा था. बहुत संभव है कि इराकी सेना के उत्पीड़नकारी रवैये ने ही आइएसआइएस के लिए नये लड़ाकों को संगठन में शामिल करना आसान बना दिया हो.
4. नये इराक में सांप्रदायिकता
अमेरिका के जरिए सद्दाम हुसैन को सत्ता से बाहर करने का सबसे बड़ा विद्रूप इस इलाके में ईरान के प्रभुत्व में बढ़ोतरी के रूप में सामने आया. ईरान इराक के शियाओं को एक व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष में अपने सहयोगी के तौर पर देखने लगा. संभव है कि, ईरान से मिले समर्थन के कारण सत्ता में आये इराकी प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी के शिया वर्चस्ववादी रवैये ने बहुत से सुन्नियों को नाराज किया हो जिससे देश में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी.
5. आर्थिक और सामाजिक विफलता
अलगाववाद और शिया-सुन्नी विभेद को बहुत से राजनीतिक टिप्पणीकार मुर्गी और अंडे वाली स्थिति मानते हैं. क्या अलगाववाद के कारण उपजे मतभेद देश की असल समस्या हैं? या इराक की आर्थिक और सामाजिक विफलता ने समाजिक विभेद को बढ़ावा दिया है? तेल के समृद्ध भंडार होने के बावजूद इराकी जनता गरीबी की मार ङोलती रही है. देश में भ्रष्टाचार का स्तर भी काफी ऊपर रहा है.
6. क्षेत्रीय हालात
मध्य-पूर्व में कुछ भी यूं ही नहीं होता. इराक की जनता अपनी समस्याओं के बीच फंसी रही, लेकिन उसने देखा कि अरब में आयी ‘यासमीन क्रांति’ आयी भी और चली भी गयी, मिस्र की राजनीतिक स्थिति कमोबेश गोल-गोल घूमती रही, और सबसे महत्वपूर्ण पड़ोसी सीरिया में उथल-पुथल मची हुई है. इराक में जिहादी उभार का असर उसके पड़ोसी देशों पर भी पड़ना तय है.
खाड़ी देशों के कट्टर सुन्नी लड़ाकों से मिले समर्थन ने आइएसआइएस जैसे मजबूत संगठन के उभरने और संगठित होने में मदद की और इसे एक व्यापक क्षेत्रीय उद्देश्य उपलब्ध कराया है.
सीरिया की असल सरकार और जिहादियों के बीच सीधी टक्कर को प्रमाणित करना मुश्किल है. ऐसी खबरें आती रही हैं कि सीरिया की सेना को ऐसे संगठनों पर कम और अधिक उदार पश्चिमी समर्थक लड़ाकों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है. इसकी वजह से आइएसआइएस को इस इलाके में अपनी प्रशासकीय व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिली है.
(बीबीसी हिंदी से साभार)