अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आये उछाल से वैश्विक आर्थिक वृद्धि को आधार तो मिला है, पर अन्य देशों का हिस्सा कमतर हो गया है. चीन के साथ जारी व्यापारिक युद्ध की स्थिति में जी-7 के सदस्यों में अब अमेरिका अकेला ऐसा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है. इस बढ़ोत्तरी का एक आयाम यह भी है कि डॉलर का मूल्य बढ़ने और ब्याज दरों को बढ़ाने के बाद भारत और चीन समेत अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएं गिरावट पर हैं.
वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी संभावनाओं से बेहतर प्रदर्शन कर रहे देशों की भागीदारी पिछले साल 60 फीसदी के स्तर पर रही है, जो साल 2016 में 80 फीसदी थी. वित्तीय बाजारों में समानांतर वैश्विक उछाल के खत्म होने का असर दिखायी देने लगा है. अनेक जानकारों का मानना है कि आर्थिक वृद्धि में अनियमितता आगे भी जारी रहने की आशंका बनी हुई है.
वैश्विक आर्थिक वृद्धि में 45 फीसदी की हिस्सेदारी रखनेवाले भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के बारे में भी ऐसे ही संकेत हैं. भारतीय परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो मार्च में जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर भारी शुल्क लगाने का आरोप लगाया था, उसके बाद से भारत ने चीन के साथ अमेरिका से भी कूटनीतिक तौर पर संपर्कों को सघन किया है.
इसके बावजूद इस महीने रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले 70 के पार पहुंच गयी है. अमेरिका के साथ वाणिज्यिक तनातनी ने चीन की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर डाला है. तुर्की की मुद्रा लीरा में भारी गिरावट भी चिंता का बड़ा कारण है.
आर्थिक सर्वेक्षण जापान और यूरोप की हालत के बारे में नकारात्मक रुझान इंगित कर रहे हैं. जर्मन फैक्ट्री आॅर्डर ने जून में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वे पिछले दो वर्षों की सबसे बड़ी सालाना कमी का सामना कर रहे हैं. भारत, ताईवान, ब्राजील और दक्षिण कोरिया में किया गया एक हालिया सर्वे भी गौरतलब है. इसके अनुसार, सीमा पर संचालित होनेवालीं वित्तीय और व्यापारिक गतिविधियां कमजोर हुई हैं.
इसके परिणामस्वरूप ये देश साल-दर-साल पांच फीसदी की दर से नुकसान में जा सकते हैं. ऐसे अनिश्चित माहौल में वैश्विक वृद्धि को चलायमान रखने के लिए विभिन्न देशों को अमेरिका की बढ़ती अर्थव्यवस्था के सामने टिके रहने की चुनौती है. इसके लिए अमेरिकी आर्थिक नीतियों के समानांतर वैश्विक आर्थिक एकजुटता की दरकार है.
यह आशंका जतायी जा रही है कि अगर अमेरिका अपनी घोषणा के मुताबिक आयात पर 10 फीसदी शुल्क बढ़ा देता है और उसके साथ कारोबार कर रहे देश भी प्रतिक्रिया करते हैं, तो साल 2020 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में आधी फीसदी की गिरावट हो सकती है. ऐसे में यह जरूरी है कि भारत समेत विभिन्न देशों के नीति निर्धारक बहुपक्षीय एवं संतुलित वैश्विक व्यापार की स्थितियां बेहतर करने और आर्थिक सहभागिता मजबूत करने के उपायों पर विचार करने के लिए समुचित पहल करें.