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90 के दशक की बेरोजगारी

आज भारत बेरोजगारी के उस बंजर चोटी पर पहुंच गया है जहां से रोजगार युक्त हरियाली धुंधली प्रतीत होती है. समयचक्र फिर घूमा है और आज फिर 90 के दशक वाले हालात सामने आ खड़े हुए हैं. स्थिति यह है कि आज देश में एमए, बीए, बीएड, एलएलबी यहां तक कि डॉक्टर की डिग्री धारकों […]

आज भारत बेरोजगारी के उस बंजर चोटी पर पहुंच गया है जहां से रोजगार युक्त हरियाली धुंधली प्रतीत होती है. समयचक्र फिर घूमा है और आज फिर 90 के दशक वाले हालात सामने आ खड़े हुए हैं.
स्थिति यह है कि आज देश में एमए, बीए, बीएड, एलएलबी यहां तक कि डॉक्टर की डिग्री धारकों तक कांस्टेबल की दौड़ में शामिल होना पड़ रहा है. चुनाव के समय बेरोजगारी को हटाने के नाम पर ही वोट बटोरते हैं और जब जीत जाते हैं, तो बेरोजगारी पर एक ट्वीटर कमेंट की भी उम्मीद नहीं कर सकते. एक तो बेरोजगारी और उसपर हर चीज पर टैक्स. बेरोजगारी और मंहगाई तो अपने चरम पर है.
चुनाव जीतने के बाद नेताओं ने चार वर्ष के कार्यकाल में अब तक छह बार अपना वेतन बढ़ा लिया है. बेरोजगारी की तो उन्हें चिंता ही नहीं. अभी भी समय है सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और नियुक्ति प्रक्रिया तेज करनी चाहिए.
दीक्षा कुमारी, इमेल से

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