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विकास योजनाओं को अमली जामा पहनाना कई कारकों पर निर्भर करता है. समुचित धन की कमी, संबंधित संस्थाओं में तालमेल का अभाव, तकनीकी और वित्तीय मदद का ठीक से हासिल न होना, कमजोर राजनीतिक संकल्प-शक्ति तथा नौकरशाही की लापरवाही परियोजनाओं व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में बाधक होते हैं. शहरी विकास, स्वच्छता तथा आवास से जुड़ी […]

विकास योजनाओं को अमली जामा पहनाना कई कारकों पर निर्भर करता है. समुचित धन की कमी, संबंधित संस्थाओं में तालमेल का अभाव, तकनीकी और वित्तीय मदद का ठीक से हासिल न होना, कमजोर राजनीतिक संकल्प-शक्ति तथा नौकरशाही की लापरवाही परियोजनाओं व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में बाधक होते हैं.

शहरी विकास, स्वच्छता तथा आवास से जुड़ी महत्वपूर्ण योजनाएं इन्हीं अवरोधों का सामना कर रही हैं. संसद की स्थायी समिति (शहरी विकास) की रिपोर्ट के मुताबिक छह महत्वाकांक्षी परियोजनाओं- अमृत (पेयजल आपूर्ति और नालियों का निर्माण), हृदय (ऐतिहासिक धरोहरों को केंद्र में रखकर शहरी विकास), स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, राष्ट्रीय शहरी जीविका मिशन तथा प्रधानमंत्री आवास योजना में धन की कमी और उपलब्ध धन के इस्तेमाल में ढीलापन से निर्धारित अवधि में लक्ष्य हासिल कर पाने की संभावना नहीं है.

इन छह योजनाओं के लिए करीब साढ़े 48,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी थी, पर अभी तक 36 हजार करोड़ रुपये से कुछ अधिक राशि ही जारी हुई है. उसमें से भी मात्र 21.6 फीसदी (7850.72 करोड़ रुपये) ही खर्च हो सका है. रिपोर्ट में स्मार्ट सिटी मिशन के क्रियान्वयन की आलोचना करते हुए कहा गया है कि शहरी विकास की शेष योजनाओं की तुलना में स्मार्ट सिटी मिशन की गति ज्यादा धीमी है.

इसके लिए अब तक 9943 करोड़ रुपये जारी हुए हैं, पर खर्च महज 1.83 फीसदी (182 करोड़ रुपये) ही हुआ है. स्थायी समिति की रिपोर्ट से असहमत सरकार का तर्क है कि खर्च हुई राशि के आधार पर क्रियान्वयन की गति का आकलन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि खर्च का पक्का हिसाब योजना पूरी होने पर ही किया जा सकता है और इस बाबत परियोजनाओं के प्रबंधक प्रमाणपत्र जारी कर दें. तकनीकी तौर पर यह तर्क सही है.

किसी परियोजना का क्रियान्वयन कर रही कंपनी को पूरा भुगतान अंतिम तौर पर काम की समाप्ति के बाद ही होता है. लेकिन, यह जानना भी जरूरी है कि कोई विकास योजना चरणबद्ध तरीके से पूरा हो रही है या नहीं. योजना के अंतर्गत नियत लक्ष्य को तय समय सीमा के भीतर हासिल करने के लिहाज से समय-समय पर आकलन और अंकेक्षण भी जरूरी है. अंकेक्षण (ऑडिट) का एक प्रचलित तरीका है योजना पर खर्च की गयी वास्तविक राशि को मूल्यांकन का आधार बनाना. भारत में शहरीकरण की गति बहुत तेज है.

तकरीबन 32 प्रतिशत आबादी अब शहरों में रहती है. इसमें बड़ा हिस्सा उन लोगों का है, जो बेहतर शिक्षा, रोजगार और सुविधाओं के लिए शहरी इलाकों में बसना निश्चित करते हैं. ऐसे लोगों में अधिकतर बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. इस वंचना का समाधान मानव विकास के लिहाज से देश के सामने एक चुनौती है.

उम्मीद की जानी चाहिए कि आनेवाले महीनों में केंद्र सरकार बेहतर प्रबंधन और पूंजी उपलब्धता के जरिये महत्वाकांक्षी योजनाओं के अमल में आ रही बाधाओं को दूर करने के कदम उठायेगी.

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