भारत एक ऐसा देश है, जहां हर पांच-सात किलोमीटर पर भाषा की भिन्नता पायी जाती है और इस कारण भारतीय संस्कृति को समझने के लिए बहुभाषीय होना आवश्यक है.
अफसोस है कि इस विषय पर नेतृत्व व नीति निर्माताओं के पास कोई ठोस विचार नहीं है एवं रुचि भी नहीं है. देश के कई राज्यों में भाषा अध्ययन केंद्र या भाषा अकादमियां हैं, पर झारखंड के 17 साल बीत जाने और कई सरकारोंं के आने-जाने के बाद भी इस पर ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका.
राज्य भाषा का दर्जा तो दर्जनों भाषाओं को दिया गया, पर भाषा अध्ययन केंद्र या भाषा अकादमी की स्थापना नहीं की गयी है. बिरहोर जनजाति की भाषा को यूनेस्को द्वारा मृत भाषा का दर्जा दिया गया, पर झारखंड सरकार उस भाषा को जीवंत रखने का कोई प्रयास नहीं कर रही है.
ऐसी कई भाषाएं झारखंड से लुप्त होती जायेंगी. आशा है, सरकार इस पर गंभीरता दिखायेगी. भाषा अकादमी की स्थापना शीघ्र होनी चाहिए और संस्कृति संरक्षण के क्रम में यह महत्वपूर्ण कदम उठानी चाहिए.
डॉ मनोज ‘आजिज’, इमेल से