पिछले दिनों संपादकीय पन्ने पर पंकज चतुर्वेदी जी के मार्मिक लेख ‘मुरली के मरने की चिंता किसे है’ ने सभी सियासी दलों पर सवाल खड़ा कर दिया है. इसके लिए प्रभात खबर को साधुवाद. जिस देश को कृषि प्रधान देश का दर्जा दिया गया हो, वहां के किसानों की यह दुर्दशा विधायिका और कार्यपालिका के कार्यो की कलई तो खोलती ही है, साथ ही देश के वास्तविक स्थिति से भी रू-ब-रू करवाती है.
केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना, किसानों की कर्ज माफी, किसानों को सस्ते ब्याज दर पर कर्ज देने, खाद-बीज, कृषि उपकरण, कीटनाशक पर सब्सिडी देने जैसे योजनाओं की जमीनी हकीकत है मुरली कुशवाहा की आत्महत्या. आजादी के बाद ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देशवासियों को देनेवाले की आत्मा कितनी कचोटती होगी इस घटना के बाद, आप अंदाजा लगा सकते हैं. भोजन के गारंटी कानून बनानेवालों! किसानों के उत्पादन के उचित मूल्य की गारंटी करो. उनके उत्पाद गांव में ही बिकने की गारंटी करो.
उनके उत्पाद को गांव में ही सुरक्षित भंडारण की गारंटी करो. प्राकृतिक मार से हुए नुकसान की उचित भरपाई की गारंटी करो. खेती-किसानी को उद्योग का दर्जा देने की गारंटी करो. यदि देश के अन्नदाता की हालत ऐसी ही रही तो तुम्हारे भोजन की गारंटी भी नहीं रहेगी. देश के 64 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में खेती-किसानी से लगे हैं और जब देश का इतना विशाल हिस्सा ही मुफलिसी में रहेगा तो देश मजबूत कैसे होगा?
सिर्फ पाकिस्तान और चीन को आंख दिखाने और पृथ्वी मिसाइलों के सफल परीक्षण से काम नहीं चलेगा. रक्षा बजट में अंधाधुंध वृद्धि से ऐसे सवाल हल नहीं होंगे. पूंजीपतियों को सस्ते दर पर जमीन देने से किसानों का कभी भला नहीं होगा. अब भी समय है, चेत जाओ.
गणेश वर्मा, ई-मेल से