डॉ गौरीशंकर राजहंस
पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत
अब उम्मीद है कि नये राष्ट्रपति तालिबान लड़ाकों पर नियंत्रण पा सकेंगे और वे सही अर्थ में सुरक्षा तथा आर्थिक विकास के मामलों में भारत का सहयोग लेंगे. हमें आशा करनी चाहिए कि नये राष्ट्रपति के चुनाव से भारत-अफगान संबंध मजबूत होगा.गत 5 अप्रैल को अफगानिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव निर्विघ्न संपन्न हुआ, जिससे भारत सहित इस क्षेत्र के सभी देशों ने राहत की सांस ली. डर था कि तालिबान इस चुनाव में बड़े स्तर पर खून-खराबा करेंगे और मतदान शांतिपूर्ण नहीं होने देंगे. परंतु अफगानिस्तान की बहादुर जनता ने तालिबान के खौफ की परवाह न करके बड़ी संख्या में मतदान किया. वहां 60 प्रतिशत मतदाताओं ने अपना मतदान किया, जो पिछले चुनाव की तुलना में दोगुना था. महिलाओं ने भी तालिबान की परवाह किये बिना बड़ी संख्या में मतदान किया. विदेशी प्रेक्षकों ने यह टिप्पणी की कि पिछले 100 वर्ष के अफगानिस्तान के इतिहास में पहली बार लोकतांत्रित तरीके से सत्ता का हस्तांतरण हो रहा है.
चुनाव आयोग के प्रमुख अहमद यूसुफ नूरिस्तानी ने कहा कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी जबरदस्त वोटिंग होगी. अनेक बूथों पर तो बैलेट पेपर ही खत्म हो गये. वोटरों की भारी संख्या को देख कर कई बूथों पर चुनाव का समय एक घंटा बढ़ा दिया गया. चुनाव परिणाम की घोषणा आगामी 24 अप्रैल को होगी. अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार जो प्रत्याशी 50 प्रतिशत या उससे अधिक मत प्राप्त करेगा, वही राष्ट्रपति होगा, अन्यथा दूसरे दौर का चुनाव मई के अंत में होगा.
अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक राष्ट्रपति नहीं रह सकता है. राष्ट्रपति पद के जो प्रमुख प्रत्याशी हैं, उनमें सबसे प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला हैं, जो करजई सरकार के मंत्री रह चुके हैं. 2009 में वे करजई के खिलाफ चुनाव में खड़े हुए थे और बहुत कम अंतर से हार गये थे. दूसरे प्रमुख प्रत्याशी जलमई रसूल और अशरफ गनी हैं.
अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने खुल कर कहा है कि पिछले चुनाव में करजई ने व्यापक पैमाने पर हेराफेरी की थी, जिससे वे जीत गये थे. परंतु इस बार उनके सशस्त्र कार्यकर्ता हर बूथ पर तैयार रहेंगे और हेराफेरी करनेवालों को मार भगायेंगे. करजई चाहते हैं कि रसूल अगले राष्ट्रपति हों, परंतु प्राप्त संकेतों के अनुसार उनसे अधिक मत अशरफ गनी को प्राप्त होनेवाले हैं. चुनाव परिणाम चाहे जो हो, एक बात तय है कि अफगान धीरे-धीरे तालिबानों के खौफ से बाहर निकलेगा.
पिछले कई वर्षो से राष्ट्रपति हामिद करजई का संबंध अमेरिका से अत्यंत कटु होता आ रहा था. करजई खुलेआम अमेरिका की आलोचना इसलिए कर रहे थे कि जब 2014 में अमेरिकी फौज अफगानिस्तान से निकल जायेगी और तालिबान का बोलबाला हो जायेगा, तब तालिबान उनको और उनके परिवार के लोगों को भरपूर सुरक्षा प्रदान करेंगे. परंतु तालिबान कभी उनका हितैषी नहीं हो सकता. अमेरिका का कहना था कि यदि नाटो फौज अफगानिस्तान से हट जाती है तो करजई देश का शासन संभाल नहीं पायेंगे और पूरे देश में तालिबान का बोलबाला हो जायेगा. इसलिए ओबामा बार-बार करजई से कह रहे थे कि वे अमेरिका के साथ एक संधि करें, परंतु करजई किसी भी हालत में इस संधि के लिए तैयार नहीं हुए. आजिज होकर ओबामा ने कहा कि अब अमेरिका यह संधि अफगानिस्तान के अगले राष्ट्रपति के साथ ही करेगा.
भारत के लिए खुशी की बात यह है कि इस क्षेत्र से धीरे-धीरे तालिबान का खौफ कम हो जायेगा. 2011 में करजाई ने भारत के साथ ‘स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट’ किया था, जिसके मुताबिक भारत सरकार इस बात के लिए तैयार थी कि भारत पर्याप्त संख्या में अफगानी सेना और पुलिस को प्रशिक्षित करेगा, जिससे अमेरिकी और नाटो फौजों के चले जाने के बाद वे देश को समुचित सुरक्षा प्रदान कर सकें. आशा है कि अगले राष्ट्रपति इस दिशा में भारत के साथ सुरक्षा-संबंधों को मजबूत करेंगे. भारत को डर था कि यदि राष्ट्रपति चुनाव में तालिबान ने व्यापक स्तर पर गड़बड़ी मचायी और कोई मजबूत व्यक्ति देश का राष्ट्रपति नहीं बन सका, तो उसका सीधा असर भारत पर पड़ेगा.
पिछले कई वर्षो से भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान का रोष ङोला है. फिर भी भारत वहां स्कूल, सड़क, पुल तथा दूसरे इन्फ्रास्ट्रर व्यापक पैमाने पर बना रहा है. कई बार तो तालिबान ने सड़क बनानेवाले भारतीय इंजीनियरों का अपहरण तक किया है, परंतु भारत इन घटनाओं से डर कर पीछे नहीं हटा और उसने अफगानिस्तान के गृहयुद्ध से पीड़ित जनता की भरपूर मदद की. भारत की बड़ी चिंता यह रही कि पाकिस्तान यह नहीं चाहता है कि भारत-अफगान के बीच दोस्ती बढ़े. खबर यह भी है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर के रास्ते घुस कर जो आतंकवादी भारत में आतंक फैलाते हैं, उसके पीछे पाकिस्तानी सेना के अफसरों का हाथ है. अब उम्मीद है कि नये राष्ट्रपति तालिबान लड़ाकों पर नियंत्रण पा सकेंगे और वे सही अर्थ में सुरक्षा तथा आर्थिक विकास के मामलों में भारत का सहयोग लेंगे. हमें आशा करनी चाहिए कि नये राष्ट्रपति के चुनाव से भारत-अफगान संबंध मजबूत होगा.