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इस बार राखी डोकलाम के नाम

तरुण विजय पूर्व सांसद, राज्यसभा राजनेताओं और राजनीतिक दलों की खुशी और उदासी आती-जाती रहती है. स्थायी यदि कुछ है, तो वह है हमारे वीर जवानों का शौर्य और उनका पराक्रम, जो वे सीमा पर दिखाते हैं. इस बार सिक्किम सीमा पर हमारे पड़ोसी चीन ने जिस प्रकार का आक्रामक तेवर दिखाया, उसका दृढ़ता और […]

तरुण विजय
पूर्व सांसद, राज्यसभा
राजनेताओं और राजनीतिक दलों की खुशी और उदासी आती-जाती रहती है. स्थायी यदि कुछ है, तो वह है हमारे वीर जवानों का शौर्य और उनका पराक्रम, जो वे सीमा पर दिखाते हैं. इस बार सिक्किम सीमा पर हमारे पड़ोसी चीन ने जिस प्रकार का आक्रामक तेवर दिखाया, उसका दृढ़ता और हिम्मत के साथ सामना कर रहे हमारे वीर जवानों को हमारे प्रणाम लिए देश के कोने-कोने से राखियां सिक्किम और सियाचिन भेजी जा रही हैं.
गौरतलब है कि अनेक बहनों, विद्यालयों और विश्वविद्यालयों के छात्रों ने यह एक नायाब तरीका ढूंढ़ा है. देहरादून से आर्यन स्कूल की मृदुला, जो उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में से एक है, ने अपने भाई सन्नी गुप्ता के साथ मिल कर बच्चों से इतनी सुंदर राखियां और जवानों को नन्हीं-नन्हीं चिट्ठियाें वाले ग्रीटिंग कार्ड बनवाये कि देखनेवाला हैरत में पड़ जाये.
सनातन धर्म विद्यालय की इंदु दत्ता, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की निधि त्रिपाठी, केरल विश्वविद्यालय की हरिशिव प्रिया, गुवाहाटी विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई विद्यापीठ, जम्मू विश्वविद्यालय के अलावा भी देश के अन्य हिस्सों से छात्राएं राखियां बना कर भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष, रक्षा मंत्री तथा सेना मुख्यालय भेज रही हैं और अनेक संगठनों ने ‘सिस्टर्स फाॅर जवान्स’ के नाम से सोशल मीडिया अभियान भी शुरू किया है. इस अभियान में सैनिकों की बेटियां, अन्य छात्राएं और नौजवान शामिल हो रहे हैं.
आखिर ये लड़कियां क्यों कर रही हैं ये सब? जब राजनीतिक दल और नेता अपने-अपने हिसाब-किताब में लगे हुए हैं, तब ये नौजवान लड़कियां अपना वक्त राखियां बना कर सिक्किम और सियाचिन क्यों भेज रही हैं?
उत्तराखंड से एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी की बेटी सिमरन थपलियाल का कहना है- ये राखियां नहीं हैं, बल्कि ये मिसाइल हैं, जो हम अपने जवानों की कलाइयों पर बांध रही हैं. उनकी रक्षा के लिए और दुश्मन के खात्मे के लिए. ‘सिस्टर्स फाॅर जवान्स’ के नाम से सोशल मीडिया अभियान में जुटी प्रण्या जैन ने कहा, जिस कठिन परिस्थिति में हमारे जवान सरहद पर ड्यूटी कर रहे हैं, उसकी कल्पना करना भी उन शहरवालों के लिए मुश्किल होता है, जो जरा सी गर्मी-सर्दी सहन नहीं कर सकते हैं और जस्टिन बीबर जैसों के संगीत कार्यक्रम में एक घंटे के टिकट के लिए पचास हजार रुपये खर्च कर देते हैं. हमारी राखी संदेश देगी कि पूरा देश हर वीर सैनिक के साथ है.
रक्षाबंधन सिर्फ भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा का त्योहार नहीं, बल्कि बहनों द्वारा भाइयों की रक्षा का भी एक संकल्प है. अरुणाचल से लेकर केरल तक, लेह से लेकर जम्मू तक और असम तथा महाराष्ट्र से नीचे जाकर तमिलनाडु तक उन वीर जवानों की बहनें, मां-पिता, पत्नी और बच्चे हर दिन, हर सांस उनकी न सिर्फ सकुशल घर लौटने की प्रतीक्षा करते रहते हैं, बल्कि यह भी चाहते हैं कि राखी, दुर्गा पूजा, पोंगल, ओणम भी उनके साथ मनायें. लेकिन, कई बार वे घर लौटते तो हैं, पर दुखद कि तिरंगे में लिपटे हुए.
जब श्रीनगर में लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को धोखे से कायर आतंकवादियों ने मारा, तो उस वीर के घर की ईद तो मातम में बदल गयी. ऐसे में राखी का त्योहार डोकलाम के नाम करने का एक विशेष संदेश है, और वह संदेश किसी विश्वविद्यालय में टैंक रखने से भी ज्यादा मजबूत है.
उस जवान की खुशी की कल्पना करिये, जिसे देश के एक अनजान कोने से, एक अनाम, अनचीन्ही बहन की भावभीनी राखी उसे डोकलाम, सियाचिन या जैसलमेर की सरहद पर मिलेगी, तो उसे महसूस होगा कि सिर्फ गांव में बैठी उसकी बहन ही नहीं, बल्कि सवा अरब भारतीयों की शक्ति उसकी कलाई पर बंधी है.
ऐसा विश्वास है कि पटना, मुजफ्फरपुर, धनबाद, रांची से लेकर जालंधर, लुधियाना और अमृतसर होते हुए जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, जबलपुर, बेंगलुरु तथा कोलकाता तक से बहनाें की राखियां डोकलाम में एक सामाजिक संदेश भी हैं, वो यह कि देश केवल युद्ध एवं विपरित परिस्थितियों में ही नहीं, बल्कि हर पल, हर काल, हर परिस्थिति में सैनिकों के साथ खड़ा रहना है.
पिछले दिनों एक पूर्व सेनाध्यक्ष से डोकलाम पर चर्चा हो रही थी. वे दुख के साथ बोले कि सामान्य भारतीय की देशभक्ति टीवी स्क्रीन वाली देशभक्ति होती है. आम जीवन में भारत के धनी, राजनेता, बड़े अफसर अपने बेटे-बेटियों को सेना में भेजते ही नहीं. 542 सांसदों और तीन हजार के लगभग विधायकों में से कितने माननीयों ने अपने बच्चे सेना में भेजे हैं?
मंत्री, सांसद का बेटा मंत्री, सांसद ही बनता है. विदेशों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सिनेटर, अनेक एजेंसियों के अध्यक्ष पूर्व सैनिक भी होते हैं. इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू गुरिल्ला सैनिक रह चुके हैं. वहां बाजार, हवाई अड्डे से लेकर हर सरकारी दफ्तर में सैनिकों के प्रति सामान्य नागरिकों में स्वत:स्फूर्त सम्मान भरा शिष्टाचार दिखायी देता है. बिना कानून के अनेक कार्य को प्राथमिकता मिलती है. लेकिन, भारत में ऐसा नहीं दिखता है.
‘सिस्टर्स फाॅर जवान्स’ एक अनूठा और वर्तमान संदर्भों में प्रेरणाप्रद अभियान है. यह अपनेपन का धागा है, भाई की सलामती और खुशी का पैगाम देता धागा, हिंदू-मुसलिम-सिख-ईसाई को एक स्नेह के तार में पिरोता धागा, भारत के तिरंगे की आन-बान-शान को लपेटे हुए दुर्गा की शक्ति का धागा. यही धागे देश की राष्ट्रीयता का वस्त्र बुनते हैं? यह धागा अापके मन को भी डाेकलम और सियाचिन से लेकर जैसलमेर और राजौरी-पूंछ तक बैठे जवानों के हृदयों से जोड़े, तो यह रक्षाबंधन सच में गणतंत्र का उत्सव बन जायेगा.

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