यह तथ्य सर्वविदित है कि हमारी संसद और विधानसभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे जनप्रतिनिधि हैं, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं. देश में भ्रष्टाचार के सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा होने के बावजूद दागियों को पार्टियां मैदान में उतार रही हैं.
लगभग हर राजनीतिक दल का यही हाल है. एक ओर पार्टियां भ्रष्टाचार और अपराध को नियंत्रित करने के बड़े-बड़े वादे कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों को संसद में भेजने की कोशिश भी कर रही हैं. जब उम्मीदवार तय करते समय यह स्थिति है, तो चुनाव के बाद सरकार और सदन में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का क्या होगा? राजनीति में शुचिता का महत्वपूर्ण स्थान है. पैसे और बाहुबल के दखल से लोकतंत्र कुछ लोगों के लोभ-लालच की पूर्ति का औजार बन जाता है. जिम्मेवारी हमारी है कि लोकतंत्र के मंदिर को दागदार होने से रोकें.
अभिमन्यु पांडेय, हीरापुर, धनबाद