बगैर किसी एलान के एक अलग किस्म की आलमी जंग जारी है. उसमें आसमान, समंदर या जमीन पर कहीं कोई सेना नहीं लड़ रही है, भौगोलिक सीमा-रेखाओं का कोई अतिक्रमण नहीं हो रहा है. कोई रक्तपात होता नजर नहीं आ रहा है, तो भी आधुनिक सभ्यता को जारी रखने के लिए जरूरी हर गतिविधि- चाहे वह बीमार के उपचार का काम हो या फिर बंदरगाहों से सामान भेजने की मशक्कत- सब कुछ थोड़े अंतराल के बाद ठप्प होने के कगार पर आ जाता है.
और, इससे भी ज्यादा बुरी बात यह है कि किसी व्यक्ति या वैश्विक संस्था को इस जंग से बचने की कोई कारगर युक्ति नजर नहीं आ रही है. यह विज्ञान की फंतासी पर आधारित किसी किताब की बात नहीं है, बल्कि हमारे रोजमर्रा की जिंदगी की सच्चाई है और इस सच्चाई का सबसे त्रासद पहलू यह है कि किसी युद्ध की ही तरह इस आफत को खुद ही हमने बुद्धि-कौशल के जोर से आमंत्रित किया है. बार-बार होते साइबर हमले और उन पर अंकुश न लगा पाने की मजबूरी की खबरों का एक संदेश यह भी है.
बीते मई महीने में 150 देशों के लाखों कंप्यूटर वानाक्राइ नाम के वायरस की चपेट में आ गये थे. वानाक्राइ कंप्यूटरों को बंधक बनानेवाली एक साइबर तरकीब थी. इसके जरिये दूर बैठे कुछ बेनाम या बेपता लोग डाटा पर कब्जा करके फिरौती साइबर मुद्रा बिटक्वाइन में वसूल रहे थे. फिर जून के पहले हफ्ते में दुनिया के 25 करोड़ कंप्यूटरों पर साइबर-युक्ति फायरबॉल का हमला हुआ. इस हमले के चपेट में आये सारे कंप्यूटरों की हर गतिविधि चीन के एक डिजिटल कंपनी रोफोटेक के निर्देशों पर होने लगती थी.
अब जून के आखिरी हफ्ते में वानाक्राइ जैसे ही हमले की खबर फिर से आयी है. भारत सहित दुनिया के कई देशों में कामकाज प्रभावित हुआ है. मुंबई के जवाहर पोर्ट के तीन टर्मिनलों में से एक पर काम बंद करना पड़ा है. वैश्वीकृत दुनिया का सपना सूचना-प्रौद्योगिकी के इंटरनेटीकरण से संभव हुआ है और इंटरनेटीकरण ही इस वैश्वीकृत दुनिया का सबसे प्रबल शत्रु साबित हो रहा है.
डिजिटल इंडिया के मिशन पर चल चुके भारत के लिए ऐसे साइबर हमले विशेष चिंता की बात हैं, क्योंकि वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के उसके सपने को चीन और पाकिस्तान जैसे देश एक तरफ जमीनी घेरेबंदी से चुनौती दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ भारत को वैश्विक आतंकवाद और आर्थिक अपराधों के तंत्र से भी अपने को महफूज रखना है. सरकार को बहुत जल्दी साइबर सुरक्षा का कोई कारगर तंत्र विकसित करना चाहिए.