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लाखाें आदिवासी जंगल से होंगे बेदखल

सर्वोच्च न्यायालय ने हािलया आदेश में कहा है कि वन भूमि पर अपने दावे को साबित करने में असफल रहे अनुसूचित जनजातियों और वनवासियों को जमीन से बेदखल किया जाये. इस आदेश का असर लगभग 21 राज्यों के 23 लाख आदिवासियों और वनवासियों पर पड़ेगा और उन्हें जमीन छोड़नी पड़ेगी. विभिन्न रिपोर्टों में फैसले से […]

सर्वोच्च न्यायालय ने हािलया आदेश में कहा है कि वन भूमि पर अपने दावे को साबित करने में असफल रहे अनुसूचित जनजातियों और वनवासियों को जमीन से बेदखल किया जाये. इस आदेश का असर लगभग 21 राज्यों के 23 लाख आदिवासियों और वनवासियों पर पड़ेगा और उन्हें जमीन छोड़नी पड़ेगी.

विभिन्न रिपोर्टों में फैसले से प्रभावित लोगों का आंकड़ा लगभग एक करोड़ तक बताया जा रहा है. तमाम आदिवासी संगठनों का कहना है कि मामले से संबंधित कई तथ्यों को अदालत में पेश नहीं किया गया था, इसलिए वे इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग भी कर रहे हैं.

क्या है पूरा मामला
इसी 20 तारीख को उच्चतम न्यायालय ने लिखित आदेश जारी कर 16 राज्यों को कहा है कि वे 10 लाख से अधिक जनजातीय और वन निवासियों को 27 जुलाई से पहले जंगल से बाहर निकालें. इस आदेश के मुताबिक, जिन परिवारों के वनभूमि स्वामित्व के दावों को खारिज कर दिया गया था, उन्हें राज्यों द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई से पहले तक बेदखल कर देना है.
उच्चतम न्यायालय का यह फैसला वन अधिनियम 2006 के विरुद्ध डाली गयी याचिका के पक्ष में आया है. न्यायालय ने जिन राज्यों को यह आदेश दिया है, उनमें आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल शामिल हैं.
तेइस लाख से अधिक लोग होंगे प्रभावित
जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एकत्रित ताजा आंकड़े (दिसंबर 2018 तक) बताते हैं कि जनजातीय व वनवासियों द्वारा दाखिल 42.19 लाख दावों में से केवल 18.89 लाख ही स्वीकार किये गये थे. इस लिहाज से देखा जाये तो उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद 23 लाख से अधिक जनजातीय व वनवासी परिवार इससे प्रभावित होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के प्रमुख बिंदु
आदेश के अनुसार, राज्य सरकारों के मुख्य सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि खारिज किये जा चुके दावेदारों को जंगल से बेदखल किये जाने की कार्रवाई मामले की अगली सुनवाई ( 27 जुलाई, 2019) तक पूरी हो जानी चाहिए. अदालत खुद इसका संज्ञान लेगी.
जिन राज्यों में सत्यापन, पुनर्सत्यापन और समीक्षा की प्रक्रिया लंबित है, राज्य सरकार को आदेश की तारीख से चार महीनों के अंदर आवश्यक कदम उठाने होंगे और इसकी रिपोर्ट अदालत को सौंपनी होगी.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया को सेटेलाइट सर्वे करना होगा, जिससे अतिक्रमण के स्थानों का रिकार्ड लिया जा सके तथा उन स्थानों को भी दर्शाये जहां से आदिवासियों और वनवासियों को बेदखल किया जा चुका है.
मामले से संबंधित आवश्यक हलफनामे 12 जुलाई 2019 तक जमा कर दिये जाएं.
भारतीय वन अधिनियम 1927
भारतीय वन अधिनियम (1927) के तहत सरकार और वन विभाग को वनों के किसी भी क्षेत्र को रक्षित (रिजर्व्ड) व संरक्षित करने के लिए अधिसूचित करने का अधिकार है. इसी कानून के तहत रक्षित वनों को छोड़कर राज्य सरकार किसी भी वन भूमि को ‘संरक्षित वन (प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट्स)’ घोषित कर सकती है.
इस प्रकार इन वनों के संसाधनों के इस्तेमाल राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित हैं. जो वन ग्रामीण समुदाय के नियंत्रण में हैं, इस कानून के तहत उन वनों को ‘ग्राम वन (विलेज फॉरेस्ट)’ माना गया है. वनों के संरक्षण को लेकर वर्ष 1980 तक वन अधिनयम (1927) ही चलन में था. लेकिन जब वनों की कटाई बहुत ज्यादा बढ़ गयी तो इसे रोकने के लिए इस अधिनियम में बदलाव की मांग उठने लगी.
फलस्वरूप वन संरक्षण अधिनियम 1980 का मसविदा तैयार हुआ. हालांकि इससे भी अधिकांश लोग नाखुश थे और वर्ष 2005 तक यह मसविदा संसद में पेश नहीं हो सका. बाद में इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया. मई 2006 में समिति की रिपोर्ट आने के बाद इस अधिनियम में अनेक संशोधन कर दिसंबर 2006 में इसे ‘अनसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता)’ कानून नाम से पारित कर दिया गया. 1 जनवरी, 2008 से यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर भारत के सभी राज्यों में लागू हो गया.
प्रभावित राज्यों का आंकड़ा
  • झारखंड में 27,809 आदिवासी और 298 वनवासियों के दावे खारिज.
  • मध्य प्रदेश के 2,04,123 आदिवासियों और 1,50,664 वनवासियों के दावे खारिज.
  • ओड़िशा के 1,22,250 आदिवासियों और 26,620 वनवासियों के दावे खारिज.
  • आंध्र प्रदेश की 1,14400 एकड़ जमीन से 66351 दावे खारिज.
  • तेलंगाना के 82,075 आदिवासियों के दावे खारिज हुए हैं.
  • त्रिपुरा के 34,483 आदिवासियों और 33,774 वनवासियों के दावे खारिज.
  • पश्चिम बंगाल के 50, 288 आदिवासियों और 35,856 वनवासियों के दावे खारिज.
  • महाराष्ट्र के 13,712 आदिवासियों और 8,797 वनवासियों के दावे खारिज.
  • कर्नाटक के 35,521 आदिवासियों और 1,41,019 वनवासियों के दावे खारिज.
  • असम के 22398 आदिवासी और 5136 पांरपरिक जंगल निवासियों के दावों को खारिज किया गया है.
  • बिहार के 4354 आदिवासियों के दावों को खारिज कर दिया गया है.
  • छत्तीसगढ़ के 20,095 आदिवासियों के दावों को खारिज किया गया है और 4830 पर कार्रवाई हो चुकी है.
  • उत्तर प्रदेश में 20,494 आदिवासियों और 38,167 वनवासियों के दावे खारिज.
  • राजस्थान में 36,492 आदिवासियों और 577 वनवासियों के दावे खारिज.
  • तमिलनाड़ु 7,148 आदिवासियों और 1881 वनवासियों के दावे खारिज.
  • केरल में 893 आदिवासियों के दावे खारिज.
  • उत्तराखंड में 35 आदिवासियों और 16 वनवासियों के दावे खारिज.

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