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खाटू धाम में श्री श्याम प्रभु के नाम से पूजे जाते हैं महादानी बर्बरीक

सुरेश चंद्र पोद्दार पांडव कुल शिरोमणी मोर्वी कुमार वीर बर्बरीक श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय थे. स्कंद पुराण में उल्लेखित आख्यान के अनुसार पांडव पुत्र भीमसेन कुमार घटोत्कच अपने पुत्र बर्बरीक के साथ द्वारका में यदुवंशियों की सभा में पहुंचे. सभा में श्रीकृष्ण के साथ बलराम, उग्रसेन, अक्रूर व बसुदेव सहित कई यदुवीर विराजमान थे. बर्बरीक […]

सुरेश चंद्र पोद्दार
पांडव कुल शिरोमणी मोर्वी कुमार वीर बर्बरीक श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय थे. स्कंद पुराण में उल्लेखित आख्यान के अनुसार पांडव पुत्र भीमसेन कुमार घटोत्कच अपने पुत्र बर्बरीक के साथ द्वारका में यदुवंशियों की सभा में पहुंचे.
सभा में श्रीकृष्ण के साथ बलराम, उग्रसेन, अक्रूर व बसुदेव सहित कई यदुवीर विराजमान थे. बर्बरीक ने बुद्धि एवं समाधि द्वारा श्रीकृष्ण को वंदन करते हुए कहा- हे माधव! लोक कल्याण के लिए मुझे ऐसा मार्ग व कर्म बताएं, जिस पर चल कर अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा कर सकूं.
श्रीकृष्ण ने कहा- हे वीर चूंकि तुम क्षत्रीय वंश में जन्मे हो, इसलिए धर्मानुसार सर्वप्रथम बल की प्राप्ति करो, जिससे तुम दुष्टों का दमन एवं धर्म की रक्षा कर सको और इसके लिए तुम महीसागर संगम तीर्थ पर जाकर वहां नारद जी द्वारा आमंत्रित नौ दुर्गाएं विराजमान हैं, उनकी अराधना व तपस्या करो. (महीसागर संगम श्रेष्ठतम तीर्थ होने के बावजूद ब्रह्मा जी के ज्येष्ठ पुत्र धर्म द्वारा शापित होने के कारण गुप्त क्षेत्र के नाम से विख्यात हुआ. पुन: कार्तिकेय जी के आग्रह पर ब्रह्मा पुत्र धर्म के अनुनय पर स्वयं ब्रह्मा जी ने वहां अर्घ्य देकर महीसागर संगम को श्रेष्ठतम तीर्थ होने का वरदान दिया.)
महीसागर संगम पर तीन वर्षों तक बर्बरीक की घोर तपस्या व समर्पण भाव के वंदन से प्रसन्न होकर नौ देवियों ने साक्षात प्रकट होकर आशीष वर्षा करते हुए बर्बरीक को ऐसा बल प्रदान किया जो तीनों लोकों में किसी के पास नहीं था.
गुप्त क्षेत्र में रहकर ऋषि-मुनियों के यज्ञों की रक्षा करते हुए विजय के यज्ञ को विध्वंश करने आये पलासी नामक दैत्य व उसके सहयोगी समस्त दैत्यों का वध कर बर्बरीक ने उस क्षेत्र को दैत्य विहीन कर दिया.
बर्बरीक के इस कृत से प्रसन्न होकर बासुकी आदि सभी नाग देवताओं व नाग कन्याओं ने उपस्थित होकर बर्बरीक पर पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद दिया. तदुपरांत वहां नागों के राजा महात्मा शेष द्वारा स्थापित शिव के महालिंग की विधिपूर्वक पूजा कर बर्बरीक दिव्य भस्म से युक्त तीन बाण लेकर महालिंग के उत्तर की ओर महात्मा तक्षक द्वारा बनाये मार्ग पर बढ़ चला- यह मार्ग पृथ्वी लोक में कुरुक्षेत्र की ओर जाता है.
कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव एवं पांडवों के बीच महाभारत के भीषण युद्ध की पटकथा लिखी जा चुकी थी- कौरव सेना का नेतृत्व भीष्म पितामह कर रहे थे. जबकि पांडवों की सेना का नेतृत्व श्रीकृष्ण के पास था.
इसी बीच युद्ध स्थल पर नीले घोड़े पर सवार एक कांतियुक्त वीर पहुंचा, जिसके तरकस में तीन बाण शोभायमान थे. युगदृष्टा श्री कृष्ण द्वारा परिचय पूछने पर उक्त वीर ने अपना नाम बर्बरीक बताते हुए कहा कि मेरा एक बाण ही युद्ध का फैसला कर सकता है. श्रीकृष्ण द्वारा बर्बरीक के बल की परीक्षा लेकर संतुष्ट होने के पश्चात कहा- हे वीर, रण भूमि लोक कल्याण के लिए एक शीश का दान मांग रही है.
वीर बर्बरीक ने श्री कृष्ण की याचना पर युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व फाल्गुन शुक्ला एकादशी को संपूर्ण रात्रि पूजन कर वंदन करने के पश्चात फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को अपने शीश का दान दिया और त्रयोदशी से युद्ध प्रारंभ होकर 18 दिनों तक चला. बर्बरीक के शीश दान के पश्चात पांडव सेना अत्यंत व्याकुल हो गयी एवं पांडव वीर अत्यंत शोक मग्न हो गये. इसी समय सिद्धाम्बिका सहित चौदह देवियां वहां प्रकट हुईं.
चंडिका ने घटोत्कच सहित सभी पांडव वीरों से कहा- भगवान विष्णु ने कलियुग में पृथ्वी का भार उतारने हेतू इस प्रकरण की रचना की है- बर्बरीक का यही शीश कलियुग में अवतार लेकर तीनों लोकों के कष्ट का निवारण करेगा. श्रीकृष्ण ने चंडिका से कहा- इस शीश को अमृत से सींच कर अजर-अमर करो. चंडिका द्वारा अमृत से सिंचित शीश जीवित होकर श्रीकृष्ण को प्रणाम कर युद्ध देखने की अभिलाषा प्रकट की.
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को पर्वत पर विराजमान करते हुए वरदान दिया कि जब तक पृथ्वी, नक्षत्र, सूर्य, चंद्रमा रहेंगे तब तक तुम मेरे श्याम नाम से तीनों लोकों में पूजित होगे तथा कलियुग में अवतार लेकर धर्म की रक्षा कर दीन-दुखियों के कष्ट हरोगे. नभ से देवताओं ने पुष्प की वर्षा की व पृथ्वी लोक में बर्बरीक की जय-जयकार हुई. युद्ध समाप्ति के पश्चात बर्बरीक के धड़ का अंतिम संस्कार किया गया तथा श्रीकृष्ण ने अपने हाथों से आशीष वर्षा करते हुए बर्बरीक के शीश को रूपावती नदी में प्रवाहित किया और अपने धाम में प्रस्थान किया.
खाटू धाम में श्री श्याम प्रभु
प्रकांतर में बर्बरीक का शीश तत्कालीन खट्वांग राज्य (राजस्थान) के खाटू में शुभ समय आने पर प्रकट हुआ. जहां शीश प्रकट हुआ था, वहां आज श्याम कुंड अवस्थित है. खाटू नगर में अत्यंत श्रद्धापूर्वक मंदिर बनवा कर शीश को विराजमान कर नित्य पूजा प्रारंभ की गयी. वर्तमान में श्री श्याम प्रभु का खाटू धाम देश-विदेश के करोड़ों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है. फाल्गुन मास में यहां विशाल उत्सव आयोजित होता है, जिसमें लगभग 50 लाख भक्त अपने ईष्टदेव का दर्शन कर धन्य हो जाते हैं.

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