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1857 की क्रांति का गवाह है दानापुर कैंट का आरा बैरक

अनुराग प्रधानपटना : दानापुर छावनी में प्रथम स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत सिपाहियों के विद्रोह के रूप में 25 जुलाई 1857 को हुई. आजादी में दानापुर छावनी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. आजादी के दीवानों ने इसी छावनी से 1857 में विद्रोह का बिगुल फूंका था. बाबू कुंवर सिंह की अगुवाई में आरा नगर […]

अनुराग प्रधान
पटना :
दानापुर छावनी में प्रथम स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत सिपाहियों के विद्रोह के रूप में 25 जुलाई 1857 को हुई. आजादी में दानापुर छावनी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. आजादी के दीवानों ने इसी छावनी से 1857 में विद्रोह का बिगुल फूंका था. बाबू कुंवर सिंह की अगुवाई में आरा नगर पर कब्जा कर लिया था. बताया जाता है कि दानापुर छावनी की नींव वर्ष 1765 में पड़ी थी. पश्चिम बंगाल स्थित बैरकपुर के बाद दानापुर ही देश की दूसरी सबसे पुरानी छावनी है. बिहार से लेकर बंगाल तक के विद्रोह पर काबू पाने के लिए दानापुर छावनी को ही बेस बनाया गया था. तब इस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल फौज स्वेज नहर के पूर्व सबसे बड़ी सैनिक टुकड़ी थी. बंगाल फौज की सबसे बड़ी टुकड़ी मेरठ में थी. यही सबसे पहले 10 मई 1857 को विद्रोह में उठ खड़ी हुई थी. दानापुर छावनी के सिपाहियों ने ब्रिटिश हुक्कामों के खिलाफ सबसे आखिर में विद्रोह किया. पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने दानापुर छावनी में खतरे को भांप लिया और कमांडेंट जनरल लॉयड को सिपाहियों से हथियार ले लेने को कहा. लेकिन जनरल इतना बड़ा कदम उठाने में हिचक रहा था. 24 जुलाई 1857 को लॉयड ने बीच का रास्ता अपनाया.

थोड़े बल प्रयोग से वे सिपाहियों को अपमानित किये बिना उनसे मैगजीन की कैप मांगने में सफल रहा. स्वयं को सफल मानकर उन्होंने बैरकों में यूरोपीय सैनिक भेज दिये और अपने अफसरों को सिपाहियों से कैप इकट्ठा करने का आसान कार्य देकर वहां से चला आया. आरा बैरक में तैनात तीनों देशी इन्फैंट्री रेजिमेंटों ने कैप देने से इनकार कर दिया. 25 जुलाई 1857 को यूरोपियनों के खिलाफ हथियार उठा लिये. यूरोपियन अस्पताल के पहरेदारों ने अफसरों को भागते देखा और सिग्नल बंदूकें दाग दी.

यूरोपीय मरीज छत पर चढ़ गये और उन्होंने गोली चलायी जिसमें करीब दर्जन भर सिपाही मारे गये. शुरुआत में ज्यादा सिपाही लड़ाई में शामिल नहीं हुए थे, लेकिन इस हमले की खबर सुन कर सभी इसमें शामिल हो गये. इस विद्रोह में जो अंग्रेज मारे गये थे, उन्हें दानापुर छावनी में ही दफनाया गया था. इसके बाद उत्पन्न अराजकता में सिपाही आरा(तत्कालीन शाहाबाद जिले का मुख्यालय) की ओर चल पड़े. उनमें से अधिकांश इसी क्षेत्र के थे. अपने विशाल प्रांगण में आरा बैरक आज भी खड़ा है. अभी वहां पर स्कूल चल रहे हैं. भारतीय सेना के बिहार, झारखंड, ओड़िशा सब एरिया का मुख्यालय इसी के एक भाग में है. यहां के दोनों चर्च और अस्पताल की इमारत 1857 के संघर्ष की साक्षी हैं.

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