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शिक्षकों की जल्दी भर्ती

सुदृढ़ शिक्षा तंत्र के बिना कोई भी देश विकास की राह पर मजबूती के साथ आगे नहीं बढ़ सकता है. अनेक क्षेत्रों में प्रगति के बावजूद देश में शिक्षा की बेहतरी पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है. संसाधनों और पाठ्यक्रमों के अभाव का क्या रोना, जब 48 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ही शिक्षकों के लगभग […]

सुदृढ़ शिक्षा तंत्र के बिना कोई भी देश विकास की राह पर मजबूती के साथ आगे नहीं बढ़ सकता है. अनेक क्षेत्रों में प्रगति के बावजूद देश में शिक्षा की बेहतरी पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है.

संसाधनों और पाठ्यक्रमों के अभाव का क्या रोना, जब 48 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ही शिक्षकों के लगभग पांच हजार पद रिक्त हैं. नये केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जहां 48 फीसदी पद खाली हैं, वहीं इलाहाबाद और दिल्ली जैसे पुराने व प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में रिक्तियों का आंकड़ा क्रमशः 64.44 और 47.7 फीसदी है. इन तथ्यों से राज्य-स्तरीय एवं अन्य केंद्रीय संस्थानों की हालत का अनुमान लगाया जा सकता है.

ज्यादातर संस्थानों में शिक्षण-प्रशिक्षण संविदा और तदर्थ शिक्षकों के भरोसे है. पर इस स्थिति में बहुत जल्दी सकारात्मक परिवर्तन की आशा है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देशभर के संस्थानों को छह महीने के भीतर सभी खाली पदों को भरने का निर्देश दिया है. आयोग के अंतर्गत 900 से अधिक विश्वविद्यालय और 40 हजार से अधिक कॉलेज हैं. यूजीसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा हर स्तर पर भर्ती प्रक्रिया की निगरानी की जायेगी.

अगर कोई संस्थान इस निर्देश पर अमल नहीं करेगा, तो उसके अनुदान को रोकने की चेतावनी भी जारी की गयी है. पिछले वर्ष जुलाई में सरकार ने संसद में कहा था कि स्वायत्त संस्थान होने के कारण शिक्षकों की भर्ती की जिम्मेदारी विश्वविद्यालयों की है.

लेकिन रिक्तियों की बड़ी संख्या तथा तदर्थ व संविदा शिक्षकों को रखने का चलन यह इंगित करता है कि न तो संस्थानों ने गंभीरता दिखायी है और न ही यूजीसी ने जरूरी दबाव बनाया. बहरहाल, अगले छह माह में हजारों शिक्षकों की स्थायी बहाली 3.7 करोड़ छात्रों के भविष्य को संवारने की दिशा में बड़ी पहल हो सकती है.

वर्तमान में देश में उच्च शिक्षा और शोध की दिशा में व्यवस्थागत सुधार की बड़ी दरकार है. साथ ही, इस क्षेत्र में सावर्जनिक निवेश को भी बढ़ाना होगा. प्रस्तावित नयी शिक्षा नीति में इन पहलुओं पर ध्यान दिया गया है. जो देश उच्च शिक्षा पर अधिक खर्च करते हैं, उनके संस्थान वैश्विक सूची में अग्रणी होते हैं. ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में भारतीय मेधा का लोहा दुनिया मानती है, परंतु शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों की सूची में हमारे विश्वविद्यालय दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं.

आखिर उच्च शिक्षा में पांच लाख रिक्त पदों के साथ बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल भी नहीं की जा सकती हैं. केंद्र सरकार ने अपने पहले सौ दिनों के शैक्षणिक एजेंडे में खाली पदों पर बहाली को प्राथमिकता देकर अत्यंत सराहनीय पहलकदमी की है. इसके साथ 10 अन्य उत्कृष्ट संस्थानों को दर्जा दिये जाने की कार्य-योजना भी है.

उम्मीद है कि यूजीसी के निर्देश के अनुसार सभी संस्थान निर्धारित समय पर नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरी कर लेंगे. इससे न सिर्फ छात्रों को पूर्णकालिक शिक्षक मिलेंगे, बल्कि समूचे शैक्षणिक परिवेश में नयी ऊर्जा का संचार भी होगा.

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