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एक और आजाद सुबह

हर दुखियारी आंख से आंसू पोंछ लेने के वादे के साथ हमने आजादी की विहान-वेला में कदम रखा था और हर पंद्रह अगस्त की सुबह यह वादा अपने हासिलों के सालाना इम्तिहान की तरह आ खड़ा होता है. हासिलों के खाते में दर्ज करने को बहुत कुछ है. जैसे यही कि जिस देश को आजादी […]

हर दुखियारी आंख से आंसू पोंछ लेने के वादे के साथ हमने आजादी की विहान-वेला में कदम रखा था और हर पंद्रह अगस्त की सुबह यह वादा अपने हासिलों के सालाना इम्तिहान की तरह आ खड़ा होता है. हासिलों के खाते में दर्ज करने को बहुत कुछ है. जैसे यही कि जिस देश को आजादी की शुरुआती दहाइयों में अनाज की कमी की वजह से दूसरे देशों की तरफ देखना पड़ता था, वही मुल्क चार दशकों से खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है और वक्त-जरूरत दुनिया के अनेक मुल्कों की सहायता करने में कभी पीछे नहीं हटता.

हम गिना सकते हैं कि कभी सूई से लेकर जहाज तक तमाम जरूरी चीजों और उनके बनाने के हुनर के लिए हम विकसित देशों के मोहताज थे, पर आज भारत बेमिसाल प्रतिभा और रचना-कौशल के बूते चंद्रयान और मंगलयान के जरिये न सिर्फ आकाश की ऊंचाइयां माप रहा है, बल्कि उसकी मेधावी संतानें साइबर सिटी से सिलिकन वैली तक कामयाबियों की नयी इबारतें लिख रही हैं. मैदान चाहे व्यापार का हो या खेल का, विज्ञान का हो या आर्थिक-सांस्कृतिक सहयोग और समन्वय का- आज दुनिया के रंगमंच पर भारत की भूमिका को बड़े सम्मान से देखा जाता है. अब ताकतवर देशों या समूहों के पास यह सहूलियत नहीं रही कि वे फैसले कर दें और उसमें भारत की रजामंदी की फिक्र न करें. हम तरक्की की राह पर बढ़ती जाती सबसे तेज-रफ्तार अर्थव्यवस्था हैं और दुनिया को भी मालूम है कि इस सदी की संभावनाओं का मुख्य-द्वार भारत से ही खुलता है.

जब हमने ‘लोकतंत्र’ होने और बने रहने के संकल्प के साथ सफर की शुरुआत की, तो इसे हमारा रूमानी ख्याल बताकर हंसी उड़ानेवालों और देश के बंट जाने का अंदेशा जतानेवालों की कमी नहीं थी. वे कहते थे कि व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का आदर्श ऐसे किसी देश में सफल नहीं हुआ, जहां व्यापक निरक्षरता, हद दर्जे की गरीबी और सामाजिक जीवन में हजारों भेद हों. लेकिन हम अखंड और अविभाज्य इकाई के रूप में लोकतंत्र की यात्रा में सदा गतिशील रहे, और आज तो विकसित देशों को भी सामंजस्यपूर्ण बहुसंस्कृतिवाद तथा समावेशी धर्मनिरपेक्षता के पाठ पढ़ा सकते हैं. हजारों साल की पुरातन सभ्यता के वारिस के बतौर 71 सालों का यह सफर बहुत छोटा है. लिहाजा अपनी उपलब्धियों पर गर्व होना हमारे लिए लाजिमी है. परंतु वह गर्व ही कैसा, जिसमें अपनी कमियों-खामियों को देखने-परखने की ललक न हो?

हमें याद रखना होगा कि ‘आजादी’ का अर्थ हमारे लिए सिर्फ आर्थिक तरक्की तक सीमित नहीं. वह हमारे लिए कतार में खड़े सबसे वंचित व्यक्ति के लिए सबसे आगे खड़े हो सकने के मौके गढ़ने का नाम है. आजादी सिर्फ मध्यवर्गीय सपनों को साकार करने की सहूलियत का नाम नहीं, देश के हर नागरिक के लिए भेदभाव से परे गरिमापूर्वक जीवन जीने लायक परिवेश रचने का नाम है. इस कसौटी पर अपनी आजादी को परखने की जरूरत हमेशा बनी रहेगी!

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