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मजबूत होते रिश्ते

इरान उन कुछ देशों में है, जिसके साथ भारत के संबंध सदियों पुराने हैं. आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के पारंपरिक आयामों तथा नयी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के मद्देनजर आपसी सहयोग को मजबूत करने की दिशा में ईरानी राष्ट्रपति डॉ हसन रूहानी का दौरा एक मील का पत्थर है. राष्ट्रपति रूहानी के साथ आये विदेश मंत्री मोहम्मद […]

इरान उन कुछ देशों में है, जिसके साथ भारत के संबंध सदियों पुराने हैं. आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के पारंपरिक आयामों तथा नयी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के मद्देनजर आपसी सहयोग को मजबूत करने की दिशा में ईरानी राष्ट्रपति डॉ हसन रूहानी का दौरा एक मील का पत्थर है. राष्ट्रपति रूहानी के साथ आये विदेश मंत्री मोहम्मद जरीफ ने सही ही कहा है कि विभिन्न समझौतों पर सहमति महत्वपूर्ण है ही, पर सबसे अहम है पुरानी दोस्ती का और भी गहन होना. चाबहार परियोजना न सिर्फ दोनों देशों के लिए, बल्कि एशिया के इस हिस्से के लिए बेहद फायदेमंद है.
इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए रेल जैसी इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी जरूरतों तथा व्यापार के नियमों को सरल बनाने पर हुए समझौते आर्थिक सहयोग को ठोस स्थायित्व देंगे. आतंकवाद और हिंसा से ग्रस्त एशिया के राजनीतिक माहौल में शांति और स्थिरता स्थापित करने के प्रयास में भारत और ईरान की उल्लेखनीय भूमिका है. राष्ट्रपति रूहानी और प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान, सीरिया और यमन में अमन-चैन की बहाली को लेकर भी जरूरी बातचीत की है. इन मसलों और प्रधानमंत्री मोदी के हालिया कूटनीतिक कोशिशों पर नजर डालें, तो ईरानी राष्ट्रपति के दौरे का महत्व स्पष्ट होता है. प्रधानमंत्री मोदी ने मई, 2016 में ईरान का दौरा किया था. उसके बाद से वे इजरायल और फिलीस्तीन समेत कुछ अरब देशों की यात्रा कर चुके हैं. मध्य-पूर्व की राजनीतिक जटिलता और विभिन्न देशों के आपसी टकराव के वातावरण में भारतीय प्रधानमंत्री द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को बेहतर करने और परस्पर विश्वास कायम करने में कामयाब रहे हैं. इस लिहाज से यह भारत की विदेश और व्यापारिक नीतियों की स्पष्टता तथा राजनयिक क्षमता का सूचक है. यह उल्लेखनीय है कि दक्षिणी और मध्य एशिया के साथ मध्य-पूर्व में ईरान का अच्छा-खासा दखल है.
ईरान के साथ-साथ इन इलाकों में स्थित देशों के साथ भारत के हित भी व्यापक रूप से जुड़े हुए हैं. ऐसे में ईरान के साथ रिश्तों में बेहतरी उत्साहजनक तो है ही, साथ ही यह भी अहम है कि अन्य देशों के साथ भारत की नीतियों को लेकर ईरान को भी दिक्कत नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत के बाद राष्ट्रपति रूहानी ने अपने बयान में साफ कहा है कि हमारे बीच में कोई असहमति नहीं है और दोनों देश आपसी रिश्तों को मजबूत करने के लिए कृतसंकल्प हैं. दोनों देशों के बीच हुए 15 समझौते यह इंगित करते हैं कि तेल और बंदरगाह के अलावा अन्य कई क्षेत्रों में सहयोग और भागीदारी की संभावनाएं मौजूद हैं.
प्रधानमंत्री मोदी अक्सर कहते रहे हैं कि क्षेत्रीय सहभागिता को व्यापक बनाकर ही शांति और समृद्धि के साझा लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है. कुछ पड़ोसी देशों की आक्रामकता के बावजूद भारत के साथ अनेक देश संबंध मजबूत करने के आकांक्षी हैं. राष्ट्रपति रूहानी और प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत इसका ताजा उदाहरण है.

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