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वादी रही अशांत

जम्मू-कश्मीर में अशांति की आग भड़काये रखने के मामले में पाकिस्तान पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष कहीं ज्यादा हमलावर साबित हुआ है. लोकसभा में पेश तथ्यों के मुताबिक एक साल के भीतर पाक की तरफ से संघर्ष-विराम के उल्लंघन की घटनाओं में 230 फीसदी का इजाफा हुआ है. जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान […]

जम्मू-कश्मीर में अशांति की आग भड़काये रखने के मामले में पाकिस्तान पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष कहीं ज्यादा हमलावर साबित हुआ है. लोकसभा में पेश तथ्यों के मुताबिक एक साल के भीतर पाक की तरफ से संघर्ष-विराम के उल्लंघन की घटनाओं में 230 फीसदी का इजाफा हुआ है.
जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की तरफ से संघर्ष-विराम के उल्लंघन की इस साल 771 घटनाएं हुई हैं. अगर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हुईं ऐसी घटनाओं को जोड़ लें, तो यह संख्या बढ़कर 881 हो जाती है. साल 2014 से तुलना करें, तो स्थिति और भी ज्यादा गंभीर नजर आती है. उस साल ऐसी कुल 153 घटनाएं हुई थीं.
तीन साल के भीतर इनमें लगभग छह गुना इजाफा हुआ है. पाकिस्तान के साथ सीमा पर संघर्ष-विराम का करार 2003 से अमल में है और इसे दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य बनाये रखने के लिहाज से एक कसौटी की तरह देखा जाता है.
संघर्ष-विराम की शर्तों के पालन से आम जनता के जान-माल की हिफाजत भी होती है. लेकिन इनके उल्लंघन से भारतीय सैन्य बलों के साथ नागरिकों को भी जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा है. इस साल 30 लोगों की जान गयी है. जम्मू-कश्मीर में सेना, अर्द्ध-सैन्यबल और सूबे की पुलिस लोगों की हिफाजत कर रहे हैं. सुरक्षा बलों की मुस्तैदी का ही नतीजा है कि इस साल बीते चार सालों के मुकाबले अलग-अलग घटनाओं में सबसे ज्यादा (203) आतंकवादी मारे गये.
आतंक से लोहा लेते हुए हमारे 75 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए. इस साल आतंकवाद की घटनाओं (कुल 335) में भी पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है. आतंकी हमलों में 37 नागरिक भी मारे गये हैं. यह संख्या पिछले साल और 2015 की तुलना में दोगुना से ज्यादा है. जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर में अमन बहाली की चुनौती बरकरार है.
आतंकी हमलों और संघर्ष-विराम के उल्लंघन की बढ़ी हुई घटनाएं पाकिस्तान और उसकी शह पर जारी अशांति की कोशिशों के बरक्स जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार को अपनी पहलकदमियों को तेज करना चाहिए. घाटी में भरोसा कायम करने तथा सभी पक्षों की बात सुनने के लिहाज से वार्ताकार की व्यवस्था कर सरकार ने एक अच्छा कदम उठाया है और इसे जारी रखा जाना चाहिए. कश्मीर में सीमा-पार से अलगाववाद को मिल रही वित्तीय मदद के नेटवर्क को तोड़ने में भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कुछ कामयाबी मिली है. उग्र भीड़ द्वारा पत्थर फेंकने की घटनाएं भी कम हुई हैं.
इस साल नागरिकों द्वारा आतंकियों को खदेड़ने की कुछ सकारात्मक खबरें भी आती रही हैं. आतंकवादियों को सक्रिय रखने के पाकिस्तान के मंसूबों की आक्रामकता को घाटी में सरकार की पहलों से पैदा हुई बेचैनी का नतीजा भी माना जा सकता है. ऐसे में जरूरी है कि अलगाववाद और आतंकवाद के खिलाफ कोशिशों की ठोस समीक्षा कर सरकार अपनी सुरक्षा रणनीति और कूटनीति को और धार दे.

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