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वर्ष भर रफ्ता-रफ्ता झारखंड राजनीतिक में बदलती रही तस्वीर, तीन उपचुनाव ने राजनीतिक रोमांच को परवान चढ़ाया

आनंद मोहन कुर्सी की लड़ाई किसी भी मोर्चे पर नहीं दिखी लेकिन रांची : वर्ष 2018 राजनीतिक मोर्चे पर सामान्य सा वर्ष रहा. राज्य बड़े राजनीतिक उथल-पुथल से दूर रहा. राज्य में एनडीए की सरकार पटरी पर रही. झारखंड में सत्ता के अस्थिर होने का दौर खत्म हुआ. कुर्सी की लड़ाई किसी भी मोर्चे पर […]

आनंद मोहन
कुर्सी की लड़ाई किसी भी मोर्चे पर नहीं दिखी लेकिन
रांची : वर्ष 2018 राजनीतिक मोर्चे पर सामान्य सा वर्ष रहा. राज्य बड़े राजनीतिक उथल-पुथल से दूर रहा. राज्य में एनडीए की सरकार पटरी पर रही. झारखंड में सत्ता के अस्थिर होने का दौर खत्म हुआ. कुर्सी की लड़ाई किसी भी मोर्चे पर नहीं दिखी. सत्ता का केंद्र राजनीतिक उठा-पटक से दूर शासन-प्रशासन के काम में जुटा रहा, लेकिन तीन विधानसभा सीटों में उपचुनाव ने राजनीतिक रोमांच को परवान चढ़ाया.
सिल्ली, गोमिया और कोलेबिरा में उपचुनाव हुए. उपचुनाव में झारखंड की राजनीति गरम रही. पक्ष-विपक्ष के बीच राजनीतिक रंजिश तेज रही. सिल्ली उपचुनाव के नतीजे ने सबको चौंकाया. सिल्ली से विधायक रहे अमित महतो को दो वर्ष से अधिक की सजा हुई, तो विधायिकी गयी. उन्होंने अपनी पत्नी सीमा देवी को मैदान में उतारा. आजसू अध्यक्ष व पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश कुमार महतो को सिल्ली में हार का मुंह देखना पड़ा. सिल्ली और गोमिया में झामुमो ने अपनी सीट बरकार रखी. वर्ष 2018 झामुमो के लिए बेहतर रहा और सीटों का नुकसान नहीं हुआ.
इधर, वर्ष के अंत में कोलेबिरा उपचुनाव ने विदा होते वर्ष में राजनीतिक आयाम बदले. कोलेबिरा में झापा और एनोस एक्का का परंपरागत गढ़ ध्वस्त हुआ. विक्सल कोंगाड़ी की अप्रत्याशित जीत ने जाते-जाते इस वर्ष ने कांग्रेस को सौगात दी. कोलेबिरा उपचुनाव में यूपीए का महागठबंधन का संभावित ढ़ांचा भी दरका, लेकिन भाजपा को सफलता हाथ नहीं लगी.
भाजपा ने सांगठनिक ढांचा मजबूत किया : भाजपा सरकार में रहने के साथ-साथ सांगठनिक रूप से सक्रिय रह कर ग्रास रूट में पार्टी का स्वरूप खड़ा किया.
केंद्रीय नेतृत्व के टास्क पर प्रदेश भाजपा जुटी रही. 19 सूत्री कार्य योजना को मूर्त रूप दिया. राज्य के 29 हजार बूथों में 25 हजार तक पहुंचने का दावा किया. पंचायत और शहरों के बूथ केंद्रों में पार्टी कार्यकर्ता की टीम खड़ी की. वर्ष भर भाजपा ने सरकार की उपलब्धियां बताने और विभिन्न कार्यक्रमों को लेकर अभियान चलाया. 2018 में आजसू पार्टी के अंदर खटास बढ़ी. तमाड़ से आजसू विधायक विकास मुंडा ने पार्टी छोड़ी. वहीं, आजसू ने विकास मुंडा को निलंबित किया. कांग्रेस को फायदा हुआ, तो झामुमो ने अपनी साख बरकार रखी. वहीं, झाविमो राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन में लगा रहा.
चुनावी तैयारियों का वर्ष रहा
वर्ष 2018 का वर्ष लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तैयारी का वर्ष रहा. चुनाव की आहट के साथ पक्ष-विपक्ष के बीच राजनीतिक गरमा-गरमी रही. इसका असर सड़क से सदन तक दिखा. मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष के बीच तकरार रही. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी खुल कर चला. पूरे वर्ष में सदन में पक्ष-विपक्ष के बीच अनुकूल माहौल नहीं बन पाये. सदन की कार्यवाही व्यवस्थित तरीके से नहीं चल पायी. वर्ष भर रफ्ता-रफ्ता झारखंड में राजनीतिक तस्वीर बदलती रही.

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