पत्थलगड़ी आंदोलन भी हमें कुछ सीख देने की कोशिश कर रहा है
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संस्थाएं हो रहीं कमजोर, इस कारण टूट रहा लोगों का विश्वास : सुनीता नारायण
पत्थलगड़ी आंदोलन भी हमें कुछ सीख देने की कोशिश कर रहा है संस्थाएं मजबूत होंगी, तो भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा रांची : सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा है कि प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार सुनिश्चित करने के लिए भारत बहुत से आंदोलन और अभियानों का गवाह रहा […]
संस्थाएं मजबूत होंगी, तो भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा
रांची : सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा है कि प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार सुनिश्चित करने के लिए भारत बहुत से आंदोलन और अभियानों का गवाह रहा है. इन सभी आंदोलनों से कुछ न कुछ सीख मिलती है. पत्थलगड़ी आंदोलन भी हमें कुछ सीख देने की कोशिश कर रहा है.
इस तरह की स्थिति इसलिए पैदा हो रही है, क्योंकि हमारी संस्थाएं कमजोर हो रही हैं. संस्था कमजोर होने से लोगों का उसके प्रति विश्वास टूट रहा है. कुछ वर्ष पहले तक हम स्कीम के कमजोर होने की बात कहते थे, लेकिन अब संस्था की कमजोरी पर चर्चा हो रही है. उम्मीद है कि इसी के बीच से रास्ता निकलेगा. संस्थाएं मजबूत होंगी, तो भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा. सुनीता नारायण सोमवार को होटल ली लैक में द सेकेंड स्ट्रगल नाम से आयोजित पब्लिक मीटिंग व मीडिया ब्रीफिंग में बोल रही थीं.
आज भी गांवों तक नहीं पहुंचा पा रहे स्वास्थ्य और शिक्षा : सत्पथी
इस मौके पर राज्यपाल के पूर्व प्रधान सचिव संतोष कुमार सत्पथी ने कहा कि हमलोगों ने 18 साल की उम्र में बिजली देखी थी, लेकिन तब भी गांव में एक सरकारी स्कूल होता था. उससे हम लोग प्रभावित होते थे. आज यही व्यवस्था समाप्त हो गयी है. तीन साल पहले राज्य में करीब 65 लाख बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. 10 लाख निजी स्कूल पढ़ते हैं. निजी स्कूल में पढ़ने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. राजभवन कर्मियों के 102 बच्चे स्कूल जाते हैं, उसमें एक भी बच्चा सरकारी स्कूल में नहीं जाता है.
इसका मतलब है कि हमने संस्था को कमजोर कर दिया. स्वास्थ्य की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. क्या, इसके बावजूद हम गांव तक स्वास्थ्य और शिक्षा नहीं पहुंचा कर क्राइम नहीं कर रहे हैं? पंचायत तो बना दिया गया, लेकिन अधिकार नहीं दिया. पंचायतों में कर्मी नहीं हैं. कहते हैं पंचायत में भ्रष्टाचार है, क्या केंद्र और राज्य इससे अछूते हैं. जब तब हम नीचे की व्यवस्था को दुरुस्त नहीं करेंगे, इस तरह की समस्याएं आती रहेंगी. असल में पत्थलगड़ी पूरी तरह गवर्नेंस का मुद्दा है. अगर गांव के लोग यह पूछ रहे हैं कि आजादी के इतने दिनों के बाद बच्चों का भविष्य क्या है, तो आपको यह बताना होगा. आप इससे भाग नहीं सकते हैं.
बाहर के लोगों ने भड़काया ग्रामीणों को : मनीष रंजन
खूंटी के पूर्व डीसी सह पर्यटन विभाग के सचिव डॉ मनीष रंजन ने कहा कि वहां पदस्थापन के दौरान मैंने एक एक्टिविस्ट के रूप में काम करने की कोशिश की. पत्थलगड़ी के कई कार्यक्रमों में खुद हिस्सा लिया. लोगों की भावना से सहमत था. लेकिन, बाद में गांव के लोगों को गुजरात, चाईबासा व अन्य बाहरी लोगों ने भड़काना शुरू किया. गांव के लोगों को यह बताने लगे कि जहां पत्थलगढ़ी है, वहां दूसरे लोग नहीं घुस सकते हैं. इसके बाद गांव के लोगों ने पत्थलों पर ऐसा लिखना शुरू किया.
कुंवर सिंह केसरी की पुस्तक (हेवेंस लाइट्स ऑवर ग्रिड्स) का जिक्र किया जाने लगा. इससे आपसी लगाव खत्म होने लगा. आर्टिकल-13 की गलत व्याख्या की जाने लगी. सरकार हर हाल में लोगों की भागीदारी चाहती है. इसके लिए आदिवासी विकास समिति और आदिवासी ग्राम विकास समिति का गठन किया गया. प्री बजट परिचर्चा शुरू की गयी. योजना बनाओ अभियान के माध्यम से लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की गयी. इसके बावजूद कांकी जैसी घटनाएं घटी. बाहरी हस्तक्षेप नजर आने लगा.
बताया जाने लगा कि बच्चे स्कूल नहीं जायेंगे, जबकि जो ऐसा कह रहे थे, उनके बच्चे बड़े शहरों में या विदेशों में पढ़ रहे थे. इससे निबटने के लिए 65 एनजीओ का सहारा लिया गया. यहां 50 लाख रुपये की अफीम पकड़ी गयी. गांव के लोगों को यह समझाने की कोशिश की गयी कि आज अंग्रेजों का शासन नहीं है. आपकी सेवा में लगे लोग आपके बीच के ही हैं. इसके बाद भी अविश्वास का माहौल पैदा किया गया. इसके लिए सरकार को और संवेदनशील होना होगा.
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