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झारखंड की राजनीति का फ्लैश बैक : युवराज को हरा कर विधायक बने थे घनश्याम महतो

विवेक चंद्र रांची : सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र का पहला चुनाव 1967 में हुआ था. ईचागढ़ राजघराने के युवराज प्रभात कुमार आदित्यदेव क्षेत्र के पहले विधायक बने. उन्होंने कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ते हुए निर्दलीय प्रत्याशी घनश्याम महतो को हराया था. लेकिन, 1969 में युवराज हार गये. इस चुनाव में फॉरवर्ड […]

विवेक चंद्र

रांची : सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र का पहला चुनाव 1967 में हुआ था. ईचागढ़ राजघराने के युवराज प्रभात कुमार आदित्यदेव क्षेत्र के पहले विधायक बने.

उन्होंने कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ते हुए निर्दलीय प्रत्याशी घनश्याम महतो को हराया था. लेकिन, 1969 में युवराज हार गये. इस चुनाव में फॉरवर्ड ब्लॉक के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए उन्होंने घनश्याम महतो ने राज परिवार को मात दे दी थी. युवराज की हार के बाद 1972 के चुनाव में ईचागढ़ के राजा को मैदान में आना पड़ा.

राजा शत्रुघ्न आदित्यदेव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और 10,000 से अधिक मतों के अंतर से घनश्याम महतो को हरा दिया. हालांकि, पांच साल बाद 1977 के चुनाव में राजपरिवार का कोई सदस्य मैदान में नहीं उतरा. घनश्याम महतो एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतरे. उन्होंने बड़े अंतर से झारखंड पार्टी के प्रत्याशी मंगल प्रसाद को हराया. 1980 में युवराज प्रभात कुमार आदित्यदेव फिर से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतरे. लेकिन, वह घनश्याम महतो से पार नहीं पा सके. युवराज चुनाव हार गये. हालांकि, वह निराश नहीं हुए.

1985 में युवराज ने हार का बदला ले लिया. वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत गये. उन्होंने झामुमो के प्रत्याशी व झारखंड आंदोलनकारी निर्मल महतो को पांच हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया. घनश्याम महतो इस बार फॉरवर्ड ब्लॉक के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. उनको कुल 5022 वोट ही मिले.

इस बीच निर्मल महतो की हत्या हो गयी. 1990 का चुनाव निर्मल महतो के भाई सुधीर महतो ने झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ा. युवराज कांग्रेस का टिकट लेकर उतरे. लेकिन जीत नहीं सके. सुधीर महतो ने करीब 25,000 वोटों से चुनावी किला फतह किया.

इसके बाद ईचागढ़ की राजनीति में अरविंद कुमार सिंह उर्फ मलखान सिंह का प्रवेश हुआ. भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर मलखान सिंह 1995 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद अगले 25 सालों से ईचागढ़ की राजनीति सुधीर महतो और मलखान सिंह के बीच ही घूमती रही. 2000 में मलखान सिंह दोबारा ईचागढ़ के विधायक बने. लेकिन, 2005 में सुधीर महतो ने उनको पटखनी देते हुए सीट छीन ली.

श्री महतो राज्य के उप मुख्यमंत्री भी बनाये गये. हालांकि, 2009 के चुनाव में वह तीसरे नंबर पर रहे. झाविमो के टिकट पर चुनावी दंगल में उतर कर मलखान सिंह तीसरी बार जीत कर विधायक बने. चुनाव के बाद सुधीर महतो की गोली मार कर हत्या कर दी गयी. 2014 में भाजपा ने साधुचरण महतो को टिकट दिया. साधुचरण महतो ने जीत हासिल की. उन्होंने झामुमो की सविता महतो को हराया. मलखान सिंह इस बार तीसरे नंबर पर रहे थे.

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