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नहीं रहे पूर्व सांसद बटेश्वर हेंब्रम, 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर जीता था चुनाव, दो बेटे की हो चुकी है मौत, छोटा बेटा है नाइट गार्ड

सरैयाहाट प्रखंड के कोठिया-खिरधना गांव स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली दुमका/रांची : दुमका के पूर्व सांसद बटेश्वर हेंब्रम नहीं रहे. वे 87 साल के थे. पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. इधर दो-तीन दिनों से उनकी तबीयत ज्यादा ही खराब हो गयी थी. मंगलवार की देर रात उन्होंने सरैयाहाट प्रखंड के […]

सरैयाहाट प्रखंड के कोठिया-खिरधना गांव स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली
दुमका/रांची : दुमका के पूर्व सांसद बटेश्वर हेंब्रम नहीं रहे. वे 87 साल के थे. पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. इधर दो-तीन दिनों से उनकी तबीयत ज्यादा ही खराब हो गयी थी. मंगलवार की देर रात उन्होंने सरैयाहाट प्रखंड के कोठिया-खिरधना गांव स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली. ईमानदार छवि और सादगीपूर्ण जीवन की वजह से इलाके में खासे चर्चित थे. वे शिक्षक थे.
सरकारी सेवा में थे. सामाजिक जीवन में उनकी अभिरुचि थी. यही वजह थी कि उन्हें उनके दोस्तों ने राजनीति में जाने के लिए प्रेरित किया था. इसलिए वे जनसंघ व बाद में जनता पार्टी से जुड़े. श्री हेंब्रम ने 1977 में दुमका संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की और लोकसभा पहुंचे. वे रेलवे बोर्ड के सदस्य भी रहे थे.
पूर्व सांसद के निधन पर सीएम रघुवर दास ने शोक जताया है. बटेश्वर हेंब्रम के निधन की खबर सुनकर महिला बाल विकास एवं समाज कल्याण मंत्री डॉ लुईस मरांडी खिरधना गांव पहुंची. अंतिम दर्शन कर उनके पार्थिव शरीर पर श्रद्धासुमन अर्पित किया. बाद में अनुमंडल पदाधिकारी राकेश कुमार, प्रखंड विकास पदाधिकारी मुकेश मछुवा भी पूर्व सांसद के घर पहुंचे.
खपरैल के मकान में रहता है आज भी पूरा परिवार : गौरतलब है कि पूर्व सांसद बटेश्वर हेंब्रम का परिवार भी खपरैल के मकान में ही रहता है. उन्होंने अंतिम सांस भी वहीं ली.
ताउम्र अभावों के बीच उनका परिवार और बच्चे भले ही रहे, पर पिता के सम्मान को कभी भी ठेस नहीं पहुंचने दिया. यही वजह है कि उनकी आलोचना करनेवाला भी कोई नहीं था. हर कोई उन्हें भगवान की तरह मानता और देखता था. बटेश्वर हेंब्रम की ईमानदारी की मिसाल आज भी दुमका जिला में दी जाती है. उनके मित्रों और करीबियों को इस बात पर फक्र महसूस होता है कि कि बटेश्वर जैसी शख्सियत के वे करीब रहे.
दो बेटे की हो चुकी है मौत, छोटा बेटा है नाइट गार्ड
आज किसी छोटे से नेता के घर में कोई बीमार पड़ जाये, तो महंगे से महंगे अस्पताल में उसका इलाज करवा लेता है. ऐसे वक्त में भी स्व हेम्ब्रम के दो बेटों की बीमारी से असमय मौत हो गयी. इलाज के अभाव में वे काल के गाल में समा गये. बटेश्वर ने अपने बेटे-बेटियों की नौकरी के लिए कभी पैरवी नहीं की. उनकी छह संतानें हुईं. तीन पुत्र और तीन पुत्रियां. तीन पुत्रों में दो सोनाराम मुर्मू (2001)और सूर्यदेव मुर्मू (2010) का निधन हो चुका है.
कहते थे कि इस बात का दु:ख तो है कि बच्चों के लिए रोजी-रोटी का इंतजाम नहीं कर सके, लेकिन इस बात का मलाल नहीं कि वे बहुत धनवान नहीं हैं. बटेश्वर का बड़ा बेटा बीएसएफ में था. उनकी बहू अपने पति की मौत के बाद मिलने वाले वाजिब हक के लिए लड़ रही है. छोटा बेटा ब्रह्मदेव मामूली मानदेय पर नाइट गार्ड है. पांच हजार रुपये प्रति माह वेतन मिलते हैं. एक बेटी सुशीला हेम्ब्रम भी मामूली मानदेय पर काम करतीं हैं.
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जताया शोक
रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दुमका के पूर्व सांसद बटेश्वर हेंब्रम के निधन पर शोक जताया है. श्री दास ने कहा कि स्व हेंब्रम की कमी हमेशा खलेगी़ उनकी सादगी लोगों के लिए प्रेरणा थी़ ईश्वर स्व हेंब्रम की आत्मा को शांति प्रदान करें व उनके परिजनों को दु:ख सहने की ताकत दें़
रेल बजट पर संसद में दिया था 42 मिनट भाषण
रेलवे बोर्ड के सदस्य के तौर पर उन्हें संसद में रेल बजट पर भी भाषण देने का अवसर मिला था. उन्होंने तब 42 मिनट तक भाषण दिया था. बटेश्वर ने 1962, 1967 एवं 1971 में दुमका जिले के जामा विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं सके. पिछले कुछ दशक से वे राजनीति से दूर थे. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से वे दुखी भी थे. परिवार में अपने पीछे पत्नी सोनामुनी मुर्मू, पुत्र ब्रह्मदेव समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं.

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