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36 वर्ष पूर्व केरल में लगी थी इवीएम पर रोक, नया नहीं है विवाद, विश्वसनीयता पर उठते रहे हैं सवाल

चुनावों के दौरान इवीएम की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में रही है. भाजपा के केंद्र और कुछ राज्यों में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने पर विपक्ष ने इवीएम से छेड़छाड़ के आरोप लगाये थे. कुछ हैकर्स भी इवीएम को हैक करने का दावा करते रहे हैं. यह पूरा बवाल 5-10 सालों से ही […]

चुनावों के दौरान इवीएम की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में रही है. भाजपा के केंद्र और कुछ राज्यों में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने पर विपक्ष ने इवीएम से छेड़छाड़ के आरोप लगाये थे. कुछ हैकर्स भी इवीएम को हैक करने का दावा करते रहे हैं.

यह पूरा बवाल 5-10 सालों से ही नहीं चल रहा. 36 साल पहले केरल के विधानसभा चुनाव में भी इवीएम को कठघरे में खड़ा किया जा चुका है. उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इवीएम से हुए चुनाव को रद्द करते हुए चुनाव आयोग को बैलट पेपर से फिर चुनाव करवाने के निर्देश दिये थे.

चुनाव आयोग ने देश में सबसे पहले केरल के एर्नाकुलम जिले में इवीएम का परीक्षण किया था, लेकिन इसके लिए संसदीय स्वीकृति नहीं ली गयी थी. परवूर निर्वाचन क्षेत्र के 84 बूथों में से 50 पर इवीएम से वोटिंग करायी गयी. 19 मई 1982 को मतदान हुए. बैलट पेपर की तुलना में इवीएम वाले बूथों पर मतदान जल्‍दी समाप्त हो गया. वोटों की गिनती भी बैलट पेपर की तुलना में जल्दी पूरी हो गयी. सीपीआइ के सिवन पिल्लई को 30,450 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एसी जोस को 30,327 मत. पिल्लई ने जोस को 123 मतों से शिकस्त दी थी.

बैलट से हुआ चुनाव, बदल गया परिणाम

चुनाव परिणाम आने के साथ ही कांग्रेस ने इवीएम की तकनीक पर सवाल खड़ा कर दिया. जोस ने हाइकोर्ट में याचिका दाखिल कर बताया कि चुनाव आयोग ने बिना संसदीय स्वीकृति के इवीएम का इस्तेमाल किया है. उन्होंने जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 और चुनाव अधिनियम 1961 का हवाला भी दिया, लेकिन हाइकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. जोस सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो फैसला उनके पक्ष में आया. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इवीएम वाले 50 बूथों पर फिर से बैलट पेपर के जरिये चुनाव कराने के निर्देश दिये.

इवीएम के उपयोग के लिए अधिनियम में संशोधन

सुप्रीम कोर्ट के 1984 में आए आदेश के बाद चुनाव आयोग ने इवीएम के उपयोग को रोक दिया था. 1992 में संसद ने इवीएम के उपयोग को वैध बनाने के लिए दोनों अधिनियम में संशोधन किया. 1998 के बाद से लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में इवीएम का उपयोग किया जाने लगा. हाल ही में इवीएम पर फिर से सवाल उठे तो चुनाव आयोग ने वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपेट) पेश किया, ताकि चुनावों में पारदर्शिता बनी रहे.

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