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दलित को राष्ट्रपति बनाने की जीतन राम मांझी की मांग, अब तक ये हुए दलित राष्ट्रपति

पटना. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने देश का अगला राष्ट्रपति दलित समाज से बनाने की मांग है. उन्होंने दिल्ली मे एक बयान में कहा कि अगला राष्ट्रपति दलित समाज से होना चाहिए. वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल इस वर्ष 25 जुलाई को पूरा हो रहा है. देश के अगले राष्ट्रपति का […]


पटना.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने देश का अगला राष्ट्रपति दलित समाज से बनाने की मांग है. उन्होंने दिल्ली मे एक बयान में कहा कि अगला राष्ट्रपति दलित समाज से होना चाहिए. वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल इस वर्ष 25 जुलाई को पूरा हो रहा है. देश के अगले राष्ट्रपति का चुनाव होना है. राष्ट्रपति का पद गैर राजनीतिक हैं, लेकिन इस पद की चुनाव प्रक्रिया में राजनीतिक और दलगत समीकरण से ही उम्मीदवारों की जीत-हार तय होती है. राष्ट्रपति के चुनाव जिस निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, उसमें संसद के दोनों सदनों तथा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशाें की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ही भाग लेते हैं. इस दृष्टि से राष्ट्रपति चुनाव के लिए पिछले एक साल से राजनीतिक समीकरण गढ़े जा रहे हैं. पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों की भूमिका ही निर्णाय होगी. जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ एनडीए की घटक है.

देश में अब तक 13 राष्ट्रपति हुए हैं. इनमें दलित समाज से एक राष्ट्रपति हुए केआर नारायणन.

केआर नारायण 1997 में राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे और 2002 तक इस पद रहे. इससे पहले वह भारत के उपराष्ट्रपति थे. उन्होंने 21 अगस्त 1992 को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. वे दलित समाज के पहले और अंतिम राष्ट्रपति थे.

केआर नारायणन कांग्रेस के उम्मीदवार थे. तब नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. केआर नारायणान को वाम और दूसरे दलों ने भी अपना समर्थन दिया था. नारायणन के राष्ट्रपति बनने को भारतीय लोकतंत्र में दलितों के सबसे बड़े सम्मान और सामाजिक-राजनीतिक प्रतिरोध के परिणाम के रूप में देखा गया था. 1992 में खुद नारायणान ने उप राष्ट्रपति बनने के बाद अपने गृह राज्य के केरल विश्वविद्यालय द्वारा अपने सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में तात्कालिक जातिवादियों पर तंज कसते हुए यह बात कही थी. केआर नारायणन ने कहा था, ‘आज मुझे उन महापुरुषों के दर्शन नहीं हो रहे हैं, जिन्होंने दलित होने के कारण इस विश्वविद्यालय में मुझे प्रवक्ता बनने से वंचित कर दिया था. हालांकि उन्होंने मुझे प्रवक्ता पद पर नहीं चुन कर अच्छा ही किया, क्योंकि तब शायद आज मुझे उप राष्ट्रपति बनने का सुनहरा अवसर नहीं मिलता और न ही केरल राज्य को यह गौरव मिलता.’

दरअसल, उन्हें इस विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में जातीय भेदभाव के कारण अंग्रजी का व्याख्याता नहीं बनने दिया गया और उसके विराेध में उन्होंने तब दीक्षांत समारोह में एमए की अपनी डीग्री नहीं थी. यह डिग्री उन्होंने उपराष्ट्रपति बनने के बाद, करीब चार दशक बाद, 1992 के इसी कार्यक्रम में ली थी.

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