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100 साल की हुई पहले विश्वयुद्ध में इजराइल को नाजी सेना से बचाने वाली और आरा दंगा शांत करने वाली बिहार माउंटेट मिलिट्री पुलिस

पटना : पहले विश्वयुद्ध में इजराइल के हाइफा शहर को नाजी गुट की सेना से बचाने वाली और आरा के पीरो का दंगा शांत करने वाली हैदराबाद की अश्वारोही सेना से बनी बिहार की माउंटेट मिलिट्री पुलिस (एमएमपी) शनिवार 19 अक्तूबर को सौ साल की हो गयी. इस मौके पर उसे नयी पहचान मिलने जा […]

पटना : पहले विश्वयुद्ध में इजराइल के हाइफा शहर को नाजी गुट की सेना से बचाने वाली और आरा के पीरो का दंगा शांत करने वाली हैदराबाद की अश्वारोही सेना से बनी बिहार की माउंटेट मिलिट्री पुलिस (एमएमपी) शनिवार 19 अक्तूबर को सौ साल की हो गयी. इस मौके पर उसे नयी पहचान मिलने जा रही है. वर्तमान प्रतीक ” सवार के साथ शांत खड़ा घोड़ा ‘ अब छलांग लगायेगा.
शताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नये प्रतीक चिह्न का लोकार्पण करेंगे. इसी दौरान एक मैमोरियल भी स्थापित किया जायेगा. निशाना लगाते अश्वारोही की प्रतिमा लोहे की है.
यह आठ फुट ऊंची, आठ क्विंटल वजनी और करीब 12 फुट लंबी है. कमांडेंट सुशील कुमार के नेतृत्व में समारोह के लिए दिन रात काम किया जा रहा है. कार्यक्रम की तिथि 19 और 20 अक्तूबर थी, लेकिन मुख्यमंत्री का समय नहीं मिलने से कुछ दिन आगे बढ़ गया है. सीएम का समय मिलते ही नयी तिथि घोषित कर दी जायेगी.
इतिहास को सहेजा जा रहा
अधिक समय से पीले – कमजोर पड़े कागजों पर मोतियों की तरह चमक रहे इतिहास को सहेजा जा रहा है. देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ लेकिन एमएमपी आरा को पहला हिन्दुस्तानी कमांडेंट चार दिन बाद मिला. 19 अगस्त 47 को ब्रिटिश कमांडेंट एवं आइपी अफसर डीवी मोरे से एसक्यू रिजवी ने अश्वारोही सैन्य पुलिस के कमांडेंट का चार्ज लिया.
इतिहास का गौरवमयी यह पल स्क्वाड्रन आर्डर नंबर 297 में दर्ज दर्ज है. आजाद भारत में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए 1947 में पहला पुरस्कार 30 रुपये का मिला था. दारोगा धर्मराज यादव पहले व्यक्ति थे जिसने एममपी को अश्व प्रतियोगिताओं में स्पर्ण पदक दिलाया. इनके नाम छह स्वर्ण, एक रजत, एक कांस्य पदक दर्ज हैं.
नेपाल सीमा क्षेत्र के उपद्रव को किया शांत
एमएमपी आरा ने आजाद भारत में भी कई दंगों को काबू किया. मार्च- अप्रैल 1950 में नेपाल सीमा सुलग रही थी. दरभंगा जयनगर में उपद्रव रोकने के लिए एमएमपी भेजी गयी. कुछ ही दिन में वहां शांति ला दी.
इसके लिए एक मई, 1950 को घुड़सवार दस्ते को पुरस्कृत किया गया. 06 सितंबर, 1949 को आरएसएस प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर भागलपुर दौरे के कारण दिल्ली तक में खलबली मची हुई थी. उस हालात में एमएमपी को तैनात की गयी थी. यह बल सरकार की उम्मीद पर खरा उतरा. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के 25 -27 नवंबर 1950 के जमशेदपुर दौरे में भी इस बल ने अपनी शक्ति और सराहनीय काम से देश को परिचय कराया.
घुड़सवार हमलों का सिलसिला भले ही थम गया हो लेकिन इनकी गौरव गाथा आज भी कोने -कौने में गूंज रही है. एमएमपी का खेलों में भी बड़ा योगदान है. इस एमएमपी ने खेलों में करीब 28 स्वर्ण, 20 रजत और 10 कांस्य पदक जीते हैं. बल का इतिहास रोमांचित करने वाला है. इस कारण मैं भी इसका कमांडेंट होने और शताब्दी समारोह का हिस्सा होने के कारण रोमांचित हूं. आयोजन की तैयारी चल रही है.
सुशील कुमार, कमांडेंट एमएमपी ,आरा सह एसपी भोजपुर

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