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झारखंड के कुपोषित बच्चे

बच्चे देश का भविष्य हैं. इन्हें संवारना देश को संवारना है, परंतु झारखंड सरकार की उदासीनता के कारण देशभर में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे इसी प्रदेश में हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. सीएनएनएस की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में जन्म से लेकर चार साल तक के कुपोषित बच्चों की संख्या 42.9 फीसदी है. ये आंकड़े यकीनन […]

बच्चे देश का भविष्य हैं. इन्हें संवारना देश को संवारना है, परंतु झारखंड सरकार की उदासीनता के कारण देशभर में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे इसी प्रदेश में हैं.
यह दुर्भाग्यपूर्ण है. सीएनएनएस की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में जन्म से लेकर चार साल तक के कुपोषित बच्चों की संख्या 42.9 फीसदी है. ये आंकड़े यकीनन आदिवासी बहुल राज्य झारखंड के लिए अशुभ हैं. निस्संदेह झारखंड सरकार के लिए कुपोषण बड़ी समस्या है. दुर्भाग्य से राज्यभर के 38432 आगनबाड़ी केंद्र के जरिये बंटने वाला पूरक पोषाहार कार्यक्रम गत चार महीने से बाधित है.
छह महीने से लेकर तीन साल तक के बच्चों को सरकार रेडी टू इट भोजन उपलब्ध करा रही है, जो आपूर्तिकर्ता कंपनी का टर्म समाप्त हो जाने के कारण जून से ही बंद है. अरबों रुपये प्रचार-प्रसार में खर्च करने वाली सरकार की उदासीनता का यह परिणाम है. विधानसभा चुनाव में बच्चों का कुपोषण चुनावी मुद्दा बनाया जाना चाहिए.
मिथिलेश कुमार पांडेय, केरेडारी, हजारीबाग

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