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मेदिनीनगर : इंतजार की भी हद होती है
मेदिनीनगर : आखिर क्या कहते हैं, कितना दिन इंतजार करें. सब बेकार है भाई. होता वही है, जो पहले से तय होता है. अब इ समर्पण, सर्वे, रायशुमारी सब केवल खानापूरी है. रिपोर्ट में टाइट थे, लेकिन फिर भी लड़ाई से बाहर हो गये, क्या कहेंगे. धैर्य रखिये, सब ठीक होगा. राजनीति में चलता रहता […]
मेदिनीनगर : आखिर क्या कहते हैं, कितना दिन इंतजार करें. सब बेकार है भाई. होता वही है, जो पहले से तय होता है. अब इ समर्पण, सर्वे, रायशुमारी सब केवल खानापूरी है. रिपोर्ट में टाइट थे, लेकिन फिर भी लड़ाई से बाहर हो गये, क्या कहेंगे. धैर्य रखिये, सब ठीक होगा. राजनीति में चलता रहता है.
इंतजार करिये. इतना सुनना था कि चुनाव लड़ने के लिए आतुर नेताजी बोल पड़े. क्या बात करते हैं. कितना इंतजार करें. इंतजार की भी कोई हद होती है. पब्लिक को क्या कहेंगे. पहले तो रोक कर रखे थे कि इस बार टिकट फाइनल है. लोग फोन करके तबाह कर दिये हैं. जवाब दे नहीं पा रहे हैं.
क्या कहें कि फिर से पांच साल इंतजार कीजिए. क्या गारंटी है कि फिर टिकट मिल जायेगा. राजनीति में जिंदा रहना है, तो चुनाव लड़ना ही पड़ेगा. नहीं तो फिर पूछने वाला भी कोई नहीं मिलेगा. इसलिए चलिए चुनाव लड़ते हैं. देखते हैं होता क्या है.
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