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महाराजगंज संसदीय सीट: नाम की लड़ाई में उलझे महारथी, जानें कुछ खास बातें

संजय कुमार पांडेयमहाराजगंज : वर्ष 1991 में पहली बार जीतने वाली भाजपा का गढ़ बन चुकी है महाराजगंज संसदीय सीट. मौजूदा सांसद पंकज चौधरी यहां से पांच बार संसद पहुंच चुके हैं और वे छठी बार संसद पहुंचने के लिए भाजपा के टिकट पर आठवीं बार मैदान में हैं. 1999 और 2009 में क्रमशः सपा […]

संजय कुमार पांडेय
महाराजगंज : वर्ष 1991 में पहली बार जीतने वाली भाजपा का गढ़ बन चुकी है महाराजगंज संसदीय सीट. मौजूदा सांसद पंकज चौधरी यहां से पांच बार संसद पहुंच चुके हैं और वे छठी बार संसद पहुंचने के लिए भाजपा के टिकट पर आठवीं बार मैदान में हैं. 1999 और 2009 में क्रमशः सपा व कांग्रेस के हाथों सीट गंवाने वाली भाजपा अपने गढ़ में कड़ी लड़ाई में उलझ गयी है.

सपा-बसपा के साथ आने के बाद गठबंधन उम्मीदवार कुंवर अखिलेश सिंह दलित-यादव और मुस्लिम मतदाताओं के भरोसे उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत अपने पिता और यहां से दो बार के सांसद हर्षवर्धन के नाम के सहारे मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही हैं.

महाराजगंज संसदीय सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें सदर, पनियरा, सिसवा, फरेंदा और नौतनवां शामिल हैं. भाजपा के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह समेत कई दिग्गज यहां रैलियां कर चुके हैं. केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की सभा भी प्रस्तावित है. गठबंधन के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ताकत दिखा चुके हैं. कांग्रेस के लिए पी चिदंबरम व राजबब्बर भी मैदान में आ चुके हैं.

पंकज चौधरी केंद्र व प्रदेश सरकार की उपलब्धियों के भरोसे और मोदी फैक्टर के दम पर अपनी जीत पक्की मान रहे हैं. पिछड़ा वर्ग से होने के कारण उन्हें सवर्ण के साथ ही ओबीसी मतदाताओं के समर्थन की उम्मीद है.सपा उम्मीदवार अखिलेश वर्ष 1999 में सांसद रह चुके हैं. पिछले चुनाव में सपा-बसपा को मिले मतों के आधार पर उन्हें मुख्य मुकाबले में माना जा रहा है. कांग्रेस की सुप्रिया की स्थिति भी अपेक्षाकृत ठीक मानी जा रही है.

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