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इस वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ

संदीप बामजई आर्थिक मामलों के जानकार delhi@prabhatkhabar.in एक तरफ भारत सरकार को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ 7.5 प्रतिशत रहेगा, वहीं नोमूरा ने कहा है कि सरकार की वित्तीय नीतियां ऐसी नहीं हैं, जो जीडीपी ग्रोथ को बढ़ा सकें. नोमुरा के हिसाब से भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.5 प्रतिशत से भी […]

संदीप बामजई
आर्थिक मामलों के जानकार
delhi@prabhatkhabar.in
एक तरफ भारत सरकार को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ 7.5 प्रतिशत रहेगा, वहीं नोमूरा ने कहा है कि सरकार की वित्तीय नीतियां ऐसी नहीं हैं, जो जीडीपी ग्रोथ को बढ़ा सकें. नोमुरा के हिसाब से भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.5 प्रतिशत से भी कम रहेगा.
बहरहाल, कितना ग्रोथ होगा, यह तो आनेवाले वक्त में ही पता चल पायेगा. और आनेवाले दिनों में इस संबंध में कई बातें भी सामने आयेंगी.
नोमुरा ने जो जीडीपी का आकलन किया है, उसके पीछे कुछ ठाेस कारण हैं. इन कारणों को अच्छी तरह समझने की जरूरत है. अर्थव्यवस्था का मूल यही है कि सरकार की आय कितनी है और उसका खर्च कितना है.
बेहतरीन अर्थव्यवस्थाएं वो होती हैं, जिनकी आय ज्यादा और खर्च कम होते हैं. हमारे घरों में भी यही तथ्य काम करता है और हम अपनी आय ज्यादा चाहते हैं, जबकि हर हाल में खर्च को कम रखने की कोशिश करते हैं. लेकिन, इस समय भारत सरकार का खर्च ज्यादा है और आय कम, इसलिए अर्थव्यवस्था की कुछ चुनौतियां तो हैं ही.
दरअसल, हम बड़े निर्यातक देश नहीं हैं, बल्कि उपभोग करनेवाले देश हैं और सेवा देनेवाले देश हैं. इसलिए हमारे पास आमदनी की समस्या तो बनी ही रहेगी. सरकार के पास आय का स्रोत सिर्फ टैक्स है, जिसे बढ़ाये जाने की जरूरत है. यदि आय नहीं बढ़ेगी, तो वित्तीय घाटा बढ़ेगा. किसी भी सरकार के लिए वित्तीय घाटे को कम करने के लक्ष्य होने ही चाहिए. दरअसल, हमारी सरकारों को अपनी सभी जन-योजनाओं को चलाने के लिए बहुत पैसा चाहिए होता है.
इस संदर्भ में यह खबर अच्छी है कि पिछले दिनों आरबीआई ने सरकार की मदद की है. आरबीआई ने सरकार को 28 हजार करोड़ रुपये दिया है, ताकि सरकार का काम सुचारू रूप से चल सके. बीते साल सितंबर में भी आरबीआई ने सरकार की मदद की थी.
हम बड़ी और तेज गति से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था के साथ ही कुछ जरूरी चुनौतियाें से भी होकर गुजर रहे हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. इस महीने की शुरुआत में भारत सरकार ने बजट में कृषि क्षेत्र के लिए प्रावधान किया, उससे सरकार पर कुछ बोझ बढ़ा है.
यह बोझ एक लाख करोड़ रुपये तक है और चूंकि यह खर्च है, इसलिए जरूरी यह है कि सरकार को आय भी आये, तभी संभव है कि वह वित्तीय घाटे को कम कर पायेगी. अगर आमदनी कम होगी और खर्च ज्यादा होगा, तो यह अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है. इसलिए कुछ चुनौतियां है सरकार के सामने, लेकिन वह इसे संभालने की कोशिश में फिलहाल सफल होती नहीं दिख रही है.
भारत की अर्थव्यवस्था में 67 प्रतिशत उपभोग का हिस्सा है. पिछले डेढ़-दो दशक में कई नयी एेसी चीजें बदली हैं, जिसकी वजह से हमें आंकड़े निकालने की प्रक्रिया तो बदलनी ही पड़ेगी. इसलिए सरकार कह रही है कि डेटा को वह नये फॉर्मेट के आधार पर तय कर रही है.
यह बात ठीक भी है, क्योंकि यह वक्त की जरूरत भी है कि हम अपने आंकड़ों-आकलनों को नयी प्रक्रिया के तहत शुद्धता के मानक पर ले आयें.
लेकिन, यह ठीक नहीं कि सरकार अपने मुख्य सांख्यिकीविद् से कोई बात न कर खुद ही सब कुछ तय करे. सरकार और मुख्य सांख्यिकीविद् के बीच में संवादहीनता से सवाल तो उठेंगे ही. शायद यही सब देखते हुए ही नोमुरा ने अपना आंकड़ा दिया है.
भारत सरकार की उम्मीद हो या फिर नोमुरा का आकलन, ये हमारे लिए बहुत जरूरी तथ्य हैं, क्योंकि इन्हीं सब आधार पर ही मार्केट में निवेशक निवेश करते हैं. जब निवेश बढ़ता है, तो अर्थव्यवस्था गति पकड़ती है.
किसी भी तरह के आंकड़े की शुद्धता जरूरी है, नहीं तो उस पर सवालिया निशान लगना तय है और इसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर ही पड़ेगा. इसलिए जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े का संशोधन आज एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. चूंकि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़नेवाला देश बन गया है, इसलिए सरकार सोच रही है कि आंकड़े निकालने का आधार और प्रक्रिया आदि नये हों.
यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत सरकार जीडीपी के डेटा को खुद ही संशोधित कर रही है. यहां तक कि पिछले साल के जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों को भी सरकार संशोधित कर रही है, ताकि यह दिखाया जा सके कि हम साढ़े सात प्रतिशत से ऊपर चल रहे हैं. इस मसले पर कई सवाल उठ रहे हैं.
दरअसल, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के डेटा संग्रहण के आधार पर ही जीडीपी ग्रोथ, मुद्रास्फीति और कई अन्य आंकड़े निकलते हैं. भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के मुख्य सांख्यिकीविद् ने कुछ दिन पहले ही यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि सरकार जीडीपी ग्रोथ के संशोधन खुद कर रही है.
सांख्यिकीविद् ने कहा कि सरकार जब खुद यह डेटा बना रही है, तो फिर उसकी सत्यता संदिग्ध हो सकती है. हालांकि, इसमें दूसरी बात यह भी है कि पहले जो जीडीपी का डेटा था, वह बहुत पुराने फॉर्मेट में बना हुआ था.
चूंकि अब भारत की अर्थव्यवस्था में कई नये आयाम जुड़ गये हैं और लगातार बढ़ते हुए हम एक उपभोग वाली अर्थव्यवस्था की तरफ जा रहे हैं. इसलिए नये तरह से जीडीपी का डेटा निकालने की जरूरत भी महसूस की जा रही है. यह जरूरी भी है, लेकिन इसका तरीका सही होना चाहिए.

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