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मकदमपुर मंदिर में वैष्णवी माता दुर्गा की महिमा अपरंपार

वसीम अख्तर, पुरैनी : अष्टमी के दिन से पुरैनी बाजार स्थित रॉय ब्रदर्स दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है. जानकारी के अनुसार लगभग एक सौ वर्षों से पुरैनी बाजार स्थित रॉय ब्रदर्स दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना की जा रही है. इस मंदिर का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी […]

वसीम अख्तर, पुरैनी : अष्टमी के दिन से पुरैनी बाजार स्थित रॉय ब्रदर्स दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है. जानकारी के अनुसार लगभग एक सौ वर्षों से पुरैनी बाजार स्थित रॉय ब्रदर्स दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना की जा रही है. इस मंदिर का न केवल धार्मिक महत्व है बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है. कहा जाता है कि 1920 में चौसा प्रखंड के पैना में नवरात्र के मौके पर अस्त्र कला दिखाने की प्रतियोगिता हुई थी.

इसमें कोसी क्षेत्र के दर्जनों पहलवान के अलावा पुरैनी के दो भाई छोटका नूनू व बड़का नूनू ने भी शिरकत की थी. प्रतियोगिता में छोटका नूनू ने सारे पहलवानों को पिछाड़कर मिसाल कायम की थी. जीत की खुशी में दोनों भाई ने दूसरे धार्मिक स्थल से मिट्टी लाकर पुरैनी बाजार स्थित जमीन में दुर्गा मंदिर की स्थापना की जो अब देवी शक्ति के नाम से विख्यात है. रॉय ब्रदर्स दुर्गा मंदिर में छाग की बलि देने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है.
भक्तों को खाली हाथ नहीं लौटाती मां : प्रखंड के मकदमपुर स्थित मंदिर में वैष्णवी माता दुर्गा की महिमा अपरंपार है. माता शक्ति स्वरूपा तो है ही साथ ही यहां अपनी मुराद लेकर आये श्रद्धालु कभी खाली हाथ नहीं लौटते.
इस दुर्गा मंदिर की गाथा बताते हुए ग्रामीणों कहते है कि 16वीं शताब्दी में वर्तमान में जहां मां दुर्गा की मंदिर स्थापित है. वहां कुम्हार (मिट्टी का बर्तन बनाने वाले) लोग रहा करते थे. उनलोगों के बच्चे मिट्टी का मूर्ति बनाकर खेलते थे. मूर्ति को विसर्जन करने के लिए जब उठाया गया तो मूर्ति नहीं उठ रही थी.
तब सारे ग्रामीण इकट्ठा हुए और पान फुलायस किया अब जाकर मूर्ति उठी और तब बलि भी दिया गया और उस समय से ही विधिवत दुर्गा पूजा प्रारंभ हुआ. गांव के पुजारी स्व बाबुलाल झा द्वारा ईंट और खपरैल का मंदिर बनाया गया और विजयादशमी के अवसर पर ग्रामीणों के सहयोग से मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना प्रारंभ हुआ.
स्थानीय लोगों ने बताया कि करीब 32 वर्ष पूर्व गांव के बहियार में एक बाहरी सांढ़ जो बलशाली था. वह कही से चला आया और वह गांव के ही एक बूढ़े सांढ़ से भीडंत कर बैठा गांव का बूढ़ा सांढ़ उससे पराजित होकर माता के मंदिर में आकर अपना माथा रगड़ने लगा और वह पुन: उस सांढ़ के पास गया और उससे भीड़त किया और इस बार गांव के बुढ़े सांढ़ ने उसे जान से ही मार डाला तब से ग्रामीणों की माता के प्रति और भी आस्था बढ़ गयी. ग्रामीण बताते हैं की जब जब गांव पर किसी प्रकार का संकट आया है ग्रामीणों ने माता के दरबार में जाकर माथा टेका है तो सारी मुसीबते दूर हुई है.

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