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रघुराम राजन की सलाह : सेक्शन सात के इस्तेमाल से आरबीआई-सरकार के रिश्तों में आयेगी खटास

नयी दिल्ली : विभिन्न मसलों पर सरकार और देश के केंद्रीय बैंक के बीच जारी आपसी टकराव के बीच रिजर्व बैंक के पूर्व बेबाक गवर्नर रघुराम राजन ने दोनों को कई अहम सलाह दी है. एक तरफ उन्होंने रिजर्व बैंक को सलाह देते हुए कहा कि उसकी भूमिका धीर-गंभीर फैसले लेने वाले की होनी चाहिए, […]

नयी दिल्ली : विभिन्न मसलों पर सरकार और देश के केंद्रीय बैंक के बीच जारी आपसी टकराव के बीच रिजर्व बैंक के पूर्व बेबाक गवर्नर रघुराम राजन ने दोनों को कई अहम सलाह दी है. एक तरफ उन्होंने रिजर्व बैंक को सलाह देते हुए कहा कि उसकी भूमिका धीर-गंभीर फैसले लेने वाले की होनी चाहिए, न कि केवल बयानबाजी करने वाले की हो. उन्होंने हिंदी के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स को दिये साक्षात्कार में सलाह दिया है कि अगर रिजर्व बैंक के संचालकों की भूमिका धीर-गंभीर हो, तो सरकार को भी चाहिए कि वह आनन-फानन में सेक्शन सात के इस्तेमाल पर जोर न दे. इसके इस्तेमाल से आरबीआई और सरकार के बीच रिश्तों में खटास आ जायेगी.

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रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि सरकार की ओर से सेक्शन सात का इस्तेमाल नहीं किये जाने वाली बात अच्छी खबर है. उन्होंने कहा कि इससे दोनों के रिश्ते बदतर हो जायेंगे, जो बहुत ही चिंता की बात है. उन्होंने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच बातचीत जारी है और दोनों एक-दूसरे का सम्मान भी करते हैं. हम इस बात से सहमत हैं कि रिजर्व बैंक सरकार का एक संगठन है, लेकिन उसे भी सरकार की ओर से एक संस्था होने के नाते कुछ कर्तव्य और जिम्मेदारियां भी सौंपी गयी है. इसमें कुछ खास कर्तव्य भी हैं. बातचीत के आधार पर दोनों के बीच सम्मान होना चाहिए. उन्होंने कहा कि दोनों को एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र का ध्यान रखते हुए सम्मान करना चाहिए. दोनों के अधिकार क्षेत्रों में अगर दखल देने के बाद समस्या ही पैदा होगी. उन्होंने उम्मीद जाहिर किया है कि रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र का सम्मान किया जायेगा.

रिजर्व बैंक राजनीतिक प्रदर्शन या हित साधने का साधन नहीं

पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि केंद्रीय बैंक के संचालन सीट पर केंद्र सरकार बैठी है और वह एक सीट बेल्ट की तरह है. अब यह फैसला सरकार को करना है कि वह सीट बेल्ट पहनना चाहती है या नहीं. सीट बेल्ट पहनने से दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से बचाव में सहायता मिलती है. सरकार विकास को बढ़ावा देने के बारे में सोचती है, तो आरबीआई वित्तीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करता है. उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के पास नहीं कहने का अधिकार है, क्योंकि वह स्थिरता बरकरार रखने के लिए जिम्मेदार है. यह राजनीतिक प्रदर्शन या अपना हित साधने का साधन नहीं है. केंद्र और रिजर्व बैंक एक-दूसरे के विचारों से असहमत हो सकते हैं, लेकिन फिर भी एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र का सम्मान करना होगा.

टैक्सपेयर्स के पैसे से निजी कंपनियों को बेल आउट पैकेज देने से बढ़ेंगी समस्याएं

उन्होंने कहा कि वित्तीय संकट की स्थिति में रिजर्व बैंक को ही फैसला लेना होगा कि एनबीएफसी तरलता की समस्या से जूझ रही है या सॉल्वेंसी के मुद्दे से. करदाताओं के पैसे से निजी इकाइयों को बेल आउट करने से समस्याएं खड़ी होंगी. एनबीएफसी की तरलता के मुद्दे को सुलझाने के लिए ओएमओ एक बढ़िया विचार है. बैंकों को एनबीएफसी को बॉन्ड की गारंटी देने के लिए मंजूरी देना बढ़िया विचार है. उन इकाइयों के जरिये लोन देना बढ़िया विचार है. इसमें एनबीएफसी को सीधे लोन दे सकते हैं. एनबीएफसी के लिए कोई भी हस्तक्षेप परेशानी में फंसी खुद कंपनियों के बीच से आना चाहिए.

मैं लाभांश को बहाना चाहता था क्लीनर और मैकेनिकल प्रोसेस

पूर्व गवर्नर राजन ने कहा कि रोलओवर के लिए चिंतित कंपनियों को बैलेंस शीट को सुधारने के लिए अब इक्विटी बढ़ाने का समय है. केंद्र सरकार के पास बेल आउट के लिए जाना एनबीएफसी के पास अंतिम विकल्प होना चाहिए. उन्होंने कहा कि जब से यह मुद्दा विवादित हुआ, इस पर कई बार व्यापक रूप से चर्चा का प्रयास हुआ. बजट नजदीक आने पर लाभांश पर चर्चा करना और मुश्किल हो जाता है. उन्होंने कहा कि मैं लाभांश को एक क्लीनर और मैकेनिकल प्रोसेस बनाना चाहता था, लेकिन यह नहीं हो पाया. आरबीआई की इक्विटी का वैल्यू केंद्र की संपत्ति है, आरबीआई सरकार की सब्सिडिअरी है. भारत के पास ‘बीएए’ रेटिंग है और वह केवल इसी रेट पर कर्ज ले सकता है. रिजर्व बैंक के इक्विटी की रेटिंग ‘एएए’ है.

सरकार को मुनाफे से अधिक लाभांश नहीं दे सकता रिजर्व बैंक

उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक को अलग से पूंजी से भरपूर इकाई बनाये रखने से वैश्विक बाजारों में इसका उसे फायदा मिल सकता है. अकाउंटेंट ने रिजर्व बैंक को मुनाफे से अधिक लाभांश नहीं देने की सलाह दी है, क्योंकि डिविडेंड अकाउंटिंग, क्रेडिट वर्थिनेस और आरबीआई द्वारा रुपये की छपाई से लाभांश देना मुश्किल हो जाता है. हाल में रुपये में आये अवमूल्यन की वजह से रिजर्व बैंक की इक्विटी की वैल्यू बढ़ी है. सरकार को रिजर्व बैंक मुनाफे से अधिक लाभांश नहीं दे सकता है. अगर रिजर्व बैंक सरकार को मुनाफे से अधिक लाभांश देता है, तो मुद्रास्फीति के हालात पैदा होंगे. अगर लाभांश के बदले उसी अनुपात में सरकार उसे बॉन्ड की बिक्री करती है, तो इससे मुद्रास्फीति के हालात पैदा नहीं होते.

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