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बेटियों की समान भागीदारी से रफ्तार पकड़ेगी Indian Economy, जानिये किसने कही ये बात

नयी दिल्ली : देश की श्रमशक्ति में यदि महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाये, तो इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 27 फीसदी तक की वृद्धि होगी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टिन लेगार्ड और नॉर्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सोल्बर्ग ने एक संयुक्त दस्तावेज में यह बात कहीहै. विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) […]

नयी दिल्ली : देश की श्रमशक्ति में यदि महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाये, तो इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 27 फीसदी तक की वृद्धि होगी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टिन लेगार्ड और नॉर्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सोल्बर्ग ने एक संयुक्त दस्तावेज में यह बात कहीहै. विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा दावोस में वार्षिक सम्मेलन की शुरुआत के ठीक पहले प्रकाशित दस्तावेज में दोनों नेताओं ने 2018 को महिलाओं की कामयाबी का साल बनाने की वकालत की.

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उन्होंने कहा कि महिलाओं के प्रति भेदभाव और हिंसा का समय लद चुका है. लेगार्ड और सोल्बर्ग इस साल की वार्षिक महिला सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही हैं. यह सम्मेलन कल से शुरू होगा. भारत की सामाजिक उद्यमी चेतना सिन्हा भी इस सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगी. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत 70 देशों के प्रमुख शामिल होंगे.

सम्मान और अवसर सार्वजनिक संवाद का अहम हिस्सा

दोनों नेताओं ने कहा कि महिलाओं के लिए सम्मान व अवसरों की जरूरत अब सार्वजनिक संवाद का अहम हिस्सा होने लगा है. उन्होंने कहा कि महिलाओं और लड़कियों को सफल होने का अवसर मुहैया कराना न केवल सही है, बल्कि यह समाज एवं अर्थव्यवस्था को भी बदल सकता है.

श्रमशक्ति में पुरुषों के बराबर महिलाओं की भागीदारी जरूरी

उन्होंने कहा कि आर्थिक तथ्य खुद अपनी कहानी कहते हैं. श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर करने से जीडीपी को गति मिलेगी. उदाहरण के लिए ऐसा करने पर जापान की जीडीपी नौ फीसदी और भारत की जीडीपी 27 फीसदी तेज होगी. दोनों ने कहा कि यह किसी भी देश के लिए चुनौती है, एक ऐसा लक्ष्य जिससे हर देश को फायदा होगा. यह सार्वभौमिक अभियान है.

महिलाओं को पिछड़ा रखने की वजह हर जगह मौजूद

लेगार्ड और सोल्बर्ग ने कहा कि महिलाओं को पिछड़ा रखने के कुछ कारक हर जगह हैं. करीब 90 फीसदी देशों में लैंगिक आधार पर रुकावट डालने वाले एक या अधिक कानून हैं. कुछ देशों में महिलाओं के पास सीमित संपत्ति अधिकार हैं, जबकि कुछ देशों में पुरुषों के पास अपनी पत्नी को काम से रोकने का अधिकार है.

काम और परिवार के बीच बिठाना होगा तालमेल

उन्होंने कहा कि कानूनी रुकावटों से इतर काम और परिवार में तालमेल बिठाना, शिक्षा, वित्तीय संसाधन तथा समाजिक दबाव भी रुकावट हैं. उन्होंने कहा कि महिलाओं को परिवार का पालन करने के साथ ही कार्यस्थल पर सक्रिय रखने में मदद करना महत्वपूर्ण है.

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