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निर्यातकों की संस्था फियो ने कहा-आयात पर अंकुश नहीं, निर्यात बढ़ाने पर ध्यान दे सरकार

नयी दिल्ली : सरकार को चालू खाते के घाटे को बढ़ने से रोकने के लिए निर्यात बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. आयात पर अंकुश लगाने से इसमें किसी तरह की उल्लेखनीय मदद मिलने की संभावना नहीं है. भारतीय निर्यातक संगठनों के महासंघ ‘फियो’ के अध्यक्ष गणेश गुप्ता ने शनिवार को कहा कि सरकार को […]

नयी दिल्ली : सरकार को चालू खाते के घाटे को बढ़ने से रोकने के लिए निर्यात बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. आयात पर अंकुश लगाने से इसमें किसी तरह की उल्लेखनीय मदद मिलने की संभावना नहीं है. भारतीय निर्यातक संगठनों के महासंघ ‘फियो’ के अध्यक्ष गणेश गुप्ता ने शनिवार को कहा कि सरकार को बढ़ते चालू खाते के घाटे (कैड) और रुपये में गिरावट से निपटने के लिए आयात पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए.

इसे भी पढ़ें : फियो ने कहा, 2018-19 तक भारत का निर्यात 750 अरब डॉलर तक पहुंचेगा

गणेश गुप्ता ने कहा कि यदि हम संरक्षणवाद को अपनाने वाले देशों की जमात में शामिल नहीं होते हैं, तो मैं नहीं समझता हूं कि हमें आयात पर अंकुश लगाने चाहिए. उम्मीद है कि इससे मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने यह भी कहा कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के समक्ष कैड का 2.5 फीसदी पर होना चिंता की बात नहीं है. तीन फीसदी से नीचे रहने पर परेशानी वाली कोई बात नहीं है.

उन्होंने कहा कि हमारे पास विदेशी मुद्रा का उपयुक्त भंडार है, जो 10 माह के आयात के लिए काफी है. सरकार ने गिरते रुपये और बढ़ते कैड को नियंत्रित करने के लिए शुक्रवार को कई कदमों की घोषणा की है. मसाला बांड पर विदहोल्डिंग कर हटाने, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में राहत और गैर-जरूरी आयातों पर अंकुश लगाने का फैसला किया गया है.

फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि सरकार को निर्यातकों के लिए जल्द ही नकदी की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि सरकार को गैर-जरूरी उत्पादों के आयात पर अंकुश लगाना ही है, तो उसे महंगे इलेक्ट्रॉनिक सामानों, रेफ्रिजरेटर, घड़ियों, सोना और महंगे जूते और कपड़ों पर यह अंकुश लगाने पर विचार किया जा सकता है. हालांकि, व्यापार निर्यातकों ने सोने जैसी वस्तु पर आयात प्रतिबंध लगाये जाने को लेकर चिंता जतायी है.

उनका मानना है कि इस तरह के कदमों से व्यापार घाटा कम करने में कोई मदद नहीं मिलेगी. चालू खाते का घाटा यानी कैड देश में आने वाली और देश से बाहर निकलने वाली कुल विदेशी मुद्रा के अंतर को कहते हैं. जब कम विदेशी मुद्रा आती है और बाह्य प्रवाह अधिक होता है, तो यह घाटे की स्थिति होती है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह घाटा जीडीपी का 2.4 फीसदी रहा.

व्यापार घाटा बढ़ने और डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आने से कैड पर दबाव बढ़ रहा है. 12 सितंबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 72.91 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया. हालांकि, कारोबार की समाप्ति पर यह 71.84 रुपये प्रति पर बंद हुआ.

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