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धनबाद : लालफीताशाही की भेंट चढ़ी भूली वाल्मीकि नगर की दलित महिला, दो वर्षों से खाने के पड़ गये थे लाले, लोगों ने किया चंदा तो उठी लाश

मोहन गोप, धनबाद : जब तक सिर पर मैला ढोती रही, परिवार की गाड़ी जैसे-तैसे चल रही थी. कुछ पैसे आने पर दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता था. धंधा आगे भी जारी रहता, किंतु धनबाद नगर निगम ने मैला ढोने के कार्य को कलंक मान इसे बंद करा दिया. भूली के वाल्मीकि […]

मोहन गोप, धनबाद : जब तक सिर पर मैला ढोती रही, परिवार की गाड़ी जैसे-तैसे चल रही थी. कुछ पैसे आने पर दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता था. धंधा आगे भी जारी रहता, किंतु धनबाद नगर निगम ने मैला ढोने के कार्य को कलंक मान इसे बंद करा दिया. भूली के वाल्मीकि नगर की उषा देवी काम-धाम बंद होने से तंगहाली का जीवन जीने लगी. अभाव उसका साथी हो चला.

निगम के जिन अधिकारियों व कर्मचारियों ने उषा पर मैला ढोने से रोका था, उन्होंने बाद के दिनों में सुधि तक नहीं ली. रोजगार का दूसरा साधन नहीं होने से बदहाल जीवन जी रही उषा आखिरकार शनिवार को परलोक सिधार गयी. वादे कर निगम ने उसे जरूरी सुविधाएं मुहैया नहीं करायीं. मुहल्ले वालों व समाजसेवियों की मदद से उषा की लाश का अंतिम संस्कार हुआ.
उषा अपनी बेटी-दामाद के साथ यहां रह रही थी. घर की माली हालत बेहद खराब है. उषा के पति राजेंद्र राम 15 वर्ष पूर्व लापता हो गये थे. प्रभात खबर ने आठ जुलाई, 2018 को अभावग्रस्त जीवन से जुड़ी खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी. नगर निगम ने उषा की सुध लेने की बात कही थी, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ.
अक्तूबर 2017 में बंद कराया काम : सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने जिलों में मैनुअल स्कैवेंजर का काम बंद करा कर ऐसे लोगों को पुनर्वास व स्वरोजगार से जोड़ने का लक्ष्य रखा था.
धनबाद में कमेटी बनाकर 34 लोगों को चुना गया था. इस लिस्ट में उषा देवी (सीरियल नंबर-16) का भी नाम था. सिर पर मैला ढोने का काम करने से उसे रोक दिया गया, लेकिन पुनर्वास नहीं हुआ. इस लिस्ट में शामिल किसी भी लाभुक का पुनर्वास आज तक नहीं किया गया. ये लोग तंगहाली में जी रहे हैं.
34 लोगों की पहचान, खजाने में पड़ी रही राशि
सर्वेक्षण के दौरान 34 लोगों की पहचान की गयी थी. श्रमिक नगरी भूली के ए ब्लॉक, रेलवे जोनल ट्रेनिंग स्कूल के आसपास व मटकुरिया रेलवे कॉलोनी के पास वाल्मीकि समाज के लगभग एक सौ परिवार वर्षों से रह रहे हैं. इसमें कई परिवारों का काम मैनुअल स्कैवेंजर था. मंत्रालय के निर्देश पर धनबाद में यह काम बंद करा दिया गया. पुनर्वास व स्वरोजगार के लिए नगर निगम के पास 65 लाख रुपये थे, लेकिन इन पैसों से गरीबों का भला नहीं हुआ.
दूसरी रोजगार नहीं होने के कारण परिवार भुखमरी के कगार पर हैं. ये लोग भूली के आजाद नगर, पांडरपाला, वासेपुर व इसके आसपास इलाकों में जाकर काम करते थे. अखिल भारतीय सफाई मजदूर संघ के राष्ट्रीय सचिव गंगा वाल्मीकि ने उषा देवी की मौत का दोषी नगर निगम को माना है. कहा कि अभी तक पुनर्वास व स्वरोजगार नहीं मिलने पर काफी लोग काफी मायूस हैं. चयनित परिवारों को मुख्य धारा से जोड़ने की जरूरत है.
50 हजार हो गया था कर्ज
उषा को ठंड लगने के बाद ब्रेन हेमरेज हो गया था. आसपास के लोगों ने मदद कर उसे पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया. वहां से उसे रिम्स रेफर कर दिया गया. रिम्स में भी बाहर से कई दवाएं खरीदनी पड़ी. लगभग 50 हजार रुपये का कर्ज बेटी-दामाद पर हो गया. इसके बाद उसे अस्पताल से घर लाया गया. जहां शनिवार को उसने दम तोड़ दिया.
अंगुली की रेखाओं ने भी दिया धोखा
धनबाद. सरकार भले ही गरीबों के लिए कई सरकारी योजनाएं चला रही है, लेकिन जरूरतमंद इससे अभी भी वंचित हैं. उनमें उषा देवी भी थी. उषा देवी (50) का आधार कार्ड नहीं था.
इस कारण उसकाे लाल कार्ड, आयुष्मान कार्ड, उज्ज्वला योजना सहित कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया. दरअसल, आधार कार्ड के लिए उषा देवी ने कई बार पंजीयन केंद्रों का चक्कर लगाया. उसकी अंगुली में रेखाएं सही से नहीं उभरने के कारण आधार नहीं बन पाया. इससे उषा काफी परेशान रहती थी.

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