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चीफ एयर मार्शल ही नहीं, एक कुशल राजदूत भी थे ”भारत का अर्जन”, जानें कुछ अनछुर्इ बातें…

डिजिटल टीम, प्रभात खबर भारतीय वायूसेना के एकमात्र मार्शल अर्जन सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे.वे केवल 1965 की जंग में केवल पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले एकमात्र एयर मार्शल के रूप में ही नहीं, बल्कि एक कुशल राजनयिक के तौर पर भी जाने जायेंगे. शनिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल […]

डिजिटल टीम, प्रभात खबर

भारतीय वायूसेना के एकमात्र मार्शल अर्जन सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे.वे केवल 1965 की जंग में केवल पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले एकमात्र एयर मार्शल के रूप में ही नहीं, बल्कि एक कुशल राजनयिक के तौर पर भी जाने जायेंगे. शनिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अर्जन सिंह ने 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग में अहम भूमिका निभायी थी. वह भारतीय वायुसेना के ऐसे अधिकारी हैं, जिन पर पूरा देश गर्व महसूस करता है.

इसे भी पढ़ेंः 1965 में पाकिस्तान के दांत खट्टे करने वाले एयर मार्शल अर्जन सिंह नहीं रहे

98 साल के मार्शल ऑफ इंडियन एयरफोर्स अर्जन सिंह भारत के ऐसे तीसरे सैन्य अधिकारी हैं, जिन्हें 2002 में राष्ट्रपति भवन में 85 वर्ष की आयु में मार्शल ऑफ इंडियन एयरफ़ोर्स का सम्मान दिया गया था. उनके अलावा, 1971 की जंग के नायक एसएचएफ जे मानेकशाॅ और भारत के पहले थल सेनाध्यक्ष केएम करियप्पा को फाइव स्टार रैंक से सम्मानित किया गया है. इन दोनों सैन्य अधिकारियों को फील्ड मार्शल रैंक मिला है. आइये जानते हैं उनके बारे में कुछ अनछुए पहलू…

  • मार्शल अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को पाकिस्तान के फैसलाबाद के में हुआ था. वह मार्शल रैंक पर प्रमोट होने वाले भारतीय वायुसेना के अब तक के इतिहास में इकलौते अधिकारी हैं.
  • मार्शल अर्जन सिंह 1 अगस्त, 1964 से 15 जुलाई, 1969 तक भारतीय वायुसेना के प्रमुख रहे. पाकिस्तान के साथ 1965 की जंग में उनके नेतृत्व में भारतीय वायुसेना के अभूतपूर्व प्रदर्शन के बाद उन्हें एयर चीफ मार्शल पद पर प्रमोट किया गया.
  • मार्शल अर्जन सिंह लगातार पांच साल तक इंडियन एयरफोर्स प्रमुख के पद पर रहने वाले एकमात्र अधिकारी हैं. अभी तक किसी दूसरे अधिकारी ने इतने लंबे समय तक भारतीय वायुसेना के प्रमुख पद पर अपनी सेवाएं नहीं दी हैं.
  • मात्र 19 साल की उम्र में मार्शल अर्जन सिंह ने रॉयल एयरफोर्स कॉलेज ज्वॉइन किया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बर्मा (म्यांमार) में पायलट और कमांडर के तौर पर अदम्य साहस और वीरता का प्रदर्शन किया.
  • अप्रैल 2016 में मार्शल अर्जन सिंह के 97वें जन्मदिन के मौके पर तत्कालीन एयरफोर्स चीफ अरुप राहा ने पश्चिम बंगाल स्थित पनागढ़ एयरफोर्स बेस का नाम उनके नाम पर रखा था. पनागढ़ एयरबेस अब एमआईएफ अर्जन सिंह के नाम से जाना जाता है. यह पहली बार था, जब एक जीवित ऑफिसर के नाम सैन्य प्रतिष्ठान का नाम रखा गया.
  • वायुसेना के इतिहास में एयर वाइस मार्शल के पद पर सबसे लंबे समय तक सेवा देने का रिकॉर्ड भी अर्जन सिंह के नाम है.
  • साल 1971 में मार्शल अर्जन सिंह को स्विटरलैंड में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया. इसके अलावा, उन्होंने वेटिकन सिटी और केन्या में भी देश के लिए अपनी सेवाएं दीं.
  • उन्होंने 1944 में इंफाल अभियान में स्क्वाड्रन लीडर के तौर पर अपनी स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया. 15 अगस्त, 1947 को उन्होंने लाल किले के ऊपर से फ्लाई-पास्ट का नेतृत्व किया था. आजादी के बाद पहली बार लड़ाई में उतरी भारतीय वायुसेना की कमान अर्जन सिंह के हाथ में थी. 1965 की जंग में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत में उनकी भूमिका बहुत बड़ी थी.
  • अपने पूरे करियर में मार्शल अर्जन सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौर के लड़ाकू विमानों के साथ 60 अलग-अलग तरह के विमानों को उड़ाया. उन्होंने नैट और वैंपायर विमानों के साथ-साथ सुपर ट्रांस्पोर्टर विमानों के साथ भी उड़ान भरी. उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.
  • जब 27 जुलाई, 2015 को पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के निधन के बाद जब उनका पार्थिव शरीर दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर लाया गया था, तो उनके अंतिम दर्शन के लिए अर्जन सिंह भी पहुंचे थे. उस समय अर्जन सिंह व्हीलचेयर पर थे. फिर भी उन्होंने कलाम को व्हीलचेयर से खड़े होकर सैल्यूट करते हुए श्रद्धांजली अर्पित की.

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