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देश में कृषि के पिछड़ेपन का कारण युवाओं का मोहभंग

संगोष्ठी. भारतीय कृषि व युवा विषय पर पूर्व वीसी ने रखे विचार दरभंगा : किसी भी राष्ट्र और समाज की उर्जा उसकी युवा शक्ति में समाहित होती है. जो राष्ट्र अपनी युवा शक्ति का बेहतर इस्तेमाल करता है, वह आगे बढ़ता है. ऐसा नहीं कर पाने वाला राष्ट्र तमाम संसाधनों के बावजूद विकास के दौड़ […]

संगोष्ठी. भारतीय कृषि व युवा विषय पर पूर्व वीसी ने रखे विचार

दरभंगा : किसी भी राष्ट्र और समाज की उर्जा उसकी युवा शक्ति में समाहित होती है. जो राष्ट्र अपनी युवा शक्ति का बेहतर इस्तेमाल करता है, वह आगे बढ़ता है. ऐसा नहीं कर पाने वाला राष्ट्र तमाम संसाधनों के बावजूद विकास के दौड़ में पिछड़ जाता है. भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का एकमात्र कारण है युवाओं का कृषि से मोहभंग होना है.
आजकल के युवाओं ने खेती-बाड़ी से स्वयं को अलग कर लिया है. यहां तक की अधिकांश किसान भी नहीं चाहते कि उनकी अगली पीढ़ी कृषि को पेशा के रूप में अपनाएं. यह बातें डॉ प्रभात दास फाउंडेशन एवं नागेन्द्र झा महिला महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘भारतीय कृषि और युवा’ विषयक संगोष्ठी में लनामिवि के पूर्व कुलपति सह अर्थशास्त्री प्रो़ राजकिशोर झा ने कही. उन्होंने बताया कि उत्पादन में भारतीय कृषि का कोई सानी नहीं है,
परंतु मार्केटिंग में हम पिछड़ जाते है. किसान तन-मन-धन लगाकर खेती करता है. फसल काटकर जब उसे बेचने बाजार जाता है, तो उसे उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता. मक्का, गेहूं, जौ आदि हमारे इलाके में उपजता है, परंतु उससे बिस्कुट दिल्ली, कोलकाता आदि से बनकर हमारे बाजारों में बिकता है. कृषि उत्पादन से इसपर आधारित उद्योगों की मांग तो पूरी हो जाती है, पर किसानों को उचित हक नहीं मिलता है. कंपनियां मालामाल पर किसान बेहाल
उपलब्ध कराने होंगे बेहतर आर्थिक अवसर: अध्यक्षता करते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ ऋषि कुमार झा ने कहा कि बिना कृषि के मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यही कारण है कि घाटे के बावजूद किसान खेती से मुंह नहीं मोड़ते हैं. युवा वर्ग इसलिए खेती से नहीं जुड़ पाता है, क्योंकि उनकी भी कुछ आकांक्षाएं होती है. वे बेहतर तरीके से जीना चाहते हैं. इसलिए गांव से पलायन कर जाते हैं. युवाओं के पलायन को भी कृषि के जरिए रोका जा सकता है.
कृषि के क्षेत्र में बेहतर आर्थिक अवसर उपलब्ध कराना होगा, तभी युवा कृषि को कैरियर के रूप में अपनाएंगे. संचालन डॉ महादेव झा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने किया. इससे पूर्व कॉलेज की छात्राएं शेफाली भारद्वाज, माला कुमारी, गुड़िया कुमारी आदि ने भी अपना विचार रखा. संगोष्ठी में डॉ सतीश कुमार झा, डॉ अशोक कुमार मिश्रा, डॉ आभा मिश्रा, डॉ वीणा मिश्रा, डॉ एसी झा, भगवान कुमार, निर्भय कुमार निराला, आशुतोष सरगम, अनिल सिंह, राजकुमार गणेशन, मनीष आनंद, नवीन कुमार, मोहन साह उपस्थित थे.
कुव्यवस्था के कारण कृषि बनी घाटे का सौदा
अर्थशास्त्र विभाग के डॉ सुजीत कुमार झा ने कहा कि भारतीय कृषि पूर्णरूप से सशक्त है, परंतु कूव्यवस्था के कारण कृषि घाटे का सौदा बन गई है. खेतों में बंपर उत्पादन होता है. गोदामों में अनाज रखने की जगह नहीं बचती है. फिर किसानों को लाभ नहीं मिलता है. इसका एकमात्र कारण कृषि के विकास के लिए उचित रोडमैप का अभाव और कुव्यवस्था है. यदि देश में कृषि को सुव्यवस्थित कर दिया जाए तो हम अपनी 27 प्रतिशत क्षमता से पूरी दुनिया का पेट भर सकते हैं.
कृषि घाटे का सौदा इसलिए बना हुआ है, क्योंकि जहां एक श्रमिक की आवश्यकता है वहां पूरा परिवार लगा हुआ है. बोआई के मौसम में खाद-बीज आदि का मूल्य बढ़ जाता है, पर जब कृषि उत्पाद बाजार में आता है तो उसका भाव गिर जाता है. डॉ झा ने सुझाव दिया कि युवाओं को खेती के लिए वैज्ञानिक पद्धति से कॉलेज स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाय. कुटीर एवं कृषि आधारित घरेलू उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए. इसके बाद ही भारतीय मुनाफा बटोरेंगे और पैसे की चाहत में युवा वर्ग भी खेती की ओर रूख करेगा.
सब्जी, फल व फूल की खेती के प्रति किसानों
में बढ़ रहा आकर्षण
अर्थशास्त्र के विद्वान प्रो झा ने कहा कि 48 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हैं, पर 15-20 फीसदी ऐसे किसान हैं जो दूसरे की भूमि पर खेती करते हैं. ऐसे किसानों को बैंक से ऋण मिलना तो दूर प्राकृतिक आपदाओं में सरकारी मुआवजा भी नहीं मिलता है. फिर भी वैज्ञानिक ढ़ंग से खेती का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है
सब्जी, फल, फूल आदि की खेती की ओर युवाओं का झुकाव हो रहा है, परन्तु उनकी तायदाद नगण्य है. युवाओं को खेती की ओर आकर्षित करना होगा. युवा पीढ़ी कृषि की ओर तभी आकर्षित होगी जब कृषि मुनाफे का सौदा बनेगी.
क्लास में जातियों के आधार पर तय हैं सीटें!

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